उत्तर प्रदेश शिक्षा

21वीं सदी में मानव अधिकारों का संरक्षण डिजिटल व्यवधानों से निपटने की हमारी क्षमता पर निर्भर करेगा

लखनऊ। नई प्रौद्योगिकी के त्वरण ने सामाजिक मूल्यों, डेटा प्रणाली, संस्थागत पहचान, और विभिन्न राज्य सेवाएं को प्रभावित करने वाले नए खतरे उत्पन्न किए हैं। इन खतरों को मुख्य रखते, डॉ०राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्विद्यालय में डिजिटल मानवाधिकारों पर अंत: विषय व्याख्यान आगे बढ़ा। उक्त व्याख्यान उत्तर  प्रदेश मानवाधिकार आयोग एवम डॉ०राम मनोहर लोहिया राष्टीय विधि विश्वविद्यालय लखनऊ के संयुक्त तत्वाधान में चल रहे प्रोजेक्ट  “डिजिटल मानवाधिकार : उत्तर प्रदेश राज्य में उभरते आयाम एवम चुनौतियां” के तहत  प्रो. एस.के.भटनागर, कुलपति आरएमएलएनएलयू, न्यायमूर्ति बाला कृष्ण नारायण अध्यक्ष, यूपीएचआरसी और डॉ. ए.पी. सिंह विभागाध्यक्ष, आरएमएलएनएलयू के सरंक्षण में चल रहा है।

प्रोजेक्ट निदेशक डॉ०अमनदीप सिंह और डॉ०विकास भाटी ने सभी अतिथि वक्ताओं और प्रतिभागियों का स्वागत कर कार्यक्रम  की शुरुआत की।

प्रथम वक्ता के रूप में स्कूल ऑफ लॉ, इग्नू की डॉ. गुरमीत कौर ने गोपनीयता और साइबर सुरक्षा के बीच सामान्य हितों और तनाव पर अपने विचार व्यक्त किए। साइबर सुरक्षा नीति गोपनीयता को कैसे प्रभावित कर सकती है, इस पर विचार करते हुए उन्होंने बताया  कि साइबर सुरक्षा के लिए चुनौतियां गोपनीयता और डेटा सुरक्षा के लिए भी चुनौतियां हैं, और साइबर स्पेस गवर्नेंस  और सुरक्षा एक वैश्विक मुद्दा है। अंत में, डॉ. गुरमीत कौर ने ऑनलाइन गोपनीयता सुरक्षा के एक महत्वपूर्ण तत्व के रूप में साइबर सुरक्षा पर संवाद उत्पन्न करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण नीति निर्देशों की ओर इशारा किया। साइबरस्पेस की जटिलताओं और खतरों के बढ़ते परिष्कार के लिए जरूरी है कि सभी संगठन गोपनीयता संरक्षण और साइबर सुरक्षा के मुद्दों को गंभीरता से लें।

दूसरे वक्ता डॉ. ईशा यादव, संकाय (मनोविज्ञान), राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय ने मनोवैज्ञानिक मुद्दों और डिजिटल युग की चुनौतियों पर चर्चा की। उन्होने बताया कि व्यक्तियों और समूहों के मनोविज्ञान पर इंटरनेट और साइबरस्पेस का गहरा प्रभाव पड़ा  है। यह अध्ययन करने का सही समय है कि प्रौद्योगिकी की संस्कृति, विशेष रूप से आभासी वास्तविकता, इंटरनेट और सोशल मीडिया, मानव मन और व्यवहार को कैसे प्रभावित कर रही है।उन्होंने इस बिंदु पर ध्यान केंद्रित किया कि अंतःविषय डिजिटल मानवाधिकार न्यायशास्त्र समय की आवश्यकता है और यह सतत विकास लक्ष्यों के कार्यान्वयन से संबंधित कई मुद्दों को हल करेगा।
तीसरे वक्ता  डॉ. अपर्णा  सिंह , विधि संकाय ,राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय ने बताया कि हम गहन सामाजिक परिवर्तन और विघटन के दौर में हैं, लगभग एक विवर्तनिक बदलाव, जो डिजिटल संचार अवसंरचना के तेजी से विस्तार और डिजिटल प्रौद्योगिकी को तेजी से अपनाने से लाया गया है। डिजिटल तकनीक ने उन साधनों को बदल दिया है जिनके माध्यम से दुनिया भर में मानवाधिकारों का प्रयोग और उल्लंघन दोनों किया जाता है। इंटरनेट मानवाधिकारों की एक श्रृंखला की प्राप्ति और आर्थिक विकास में तेजी लाने के लिए एक अनिवार्य उपकरण बन गया है। फिर भी, हर दिन नए उदाहरण सामने आ रहे हैं कि कैसे डिजिटल प्रौद्योगिकियां मानवाधिकारों को कमजोर करने में भूमिका निभाती हैं। डॉ. अपर्णा  सिंह ने कहा कि 21वीं सदी में मानव अधिकारों का संरक्षण डिजिटल व्यवधानों से निपटने की हमारी क्षमता पर निर्भर करेगा।

चौथे वक्ता गिरधारी सिंह, अधिवक्ता दिल्ली उच्च न्यायालय ने बताया कि रोजमर्रा की जिंदगी में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का बढ़ता उपयोग उपयोगकर्ता की सुविधा को सुगम बनाने में एक प्रेरक शक्ति है। मगर इस माध्यम की कुछ कमियां भी हैं। श्री सिंह ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी जैसे  गंभीर मुद्दे पर अपने विचार व्यक्त किये। भारत में इंटरनेट के तेजी से विकास के साथ बाल शोषण और चाइल्ड पोर्नोग्राफी का खतरा बढ़ रहा है।चाइल्ड पोर्नोग्राफी को कम करने के लिए कई अंतरराष्ट्रीय और घरेलू पहल की गई हैं। हालाँकि, अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है। इंटरनेट से चाइल्ड पोर्नोग्राफी को पूरी तरह से हटाने के लिए मौजूदा तकनीक में सुधार की जरूरत है। ऐसे में , इंटरनेट पर चाइल्ड पोर्नोग्राफी के खिलाफ लड़ाई केवल नियामक उपायों, फ़िल्टरिंग तकनीकों और स्व-नियमन के संयोजन से प्राप्त की जा सकती है।

प्रोजेक्ट निदेशक डॉ०अमनदीप सिंह और डॉ०विकास भाटी के द्वारा धन्यवाद् ज्ञापन के बाद व्याख्यान का दूसरा दिन समाप्त हुआ।

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राजेंद्र सिंह

राजेंद्र सिंह (सम्पादक)

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