इस महीने गलत वरासत का है ये दूसरा मामला
कार्रवाई के बाद भी नहीं थम रहे राजस्वकर्मियों के कारनामें, जिलाधिकारी को सीधे दे रहे चुनौती
गोण्डा। उत्तरप्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रदेश के राज्यपाल की तुलना स्थानीय लेखपालों से की जाती है, ये माना जाता है की जितना अधिकार प्रदेश के राज्यपाल को है उतना ही अधिकार स्थानीय लेखपाल को भी प्राप्त है वो चाहे को किसी को हज़ारों एकड़ भूमि का स्वामी बना दे, चाहे तो जमींदार को खेतिहर मजदूर बना दे।
ग्रामीणों की ये तुलना बेवजह भी नहीं है इसकी बानगी भी बहुतायत में सामने आती रहती हैं लेकिन उच्चाधिकारियों का काम चलाऊ नीति या फिर कहे भ्रस्टाचार को समर्थन की नीति के चलते इन पर कार्रवाई नहीं होती और इनका भ्रस्टाचार फलता फूलता रहता है। हाँ ये बात आवश्य हैं की विगत दिनों इनके कारनामों पर उस समय अंकुश आवश्य लगा था ज़ब तत्कालीन जिलाधिकारी मार्कण्डेय शाही ने विशेष ध्यान देते हुए कई लेखपालों पर ताबड़तोड़ कार्रवाई करते हुए इनपर काफ़ी हद तक लगाम लगाया था लेकिन उनके स्थानांतरण के बाद आये ढीले ढाले और कामचलाऊ जिलाधिकारीयों ने इनके काकस को मजबूती प्रदान कर दी है।
फिलहाल बात करे वर्तमान की तो इसी माह के आरम्भ में जिलाधिकारी नेहा शर्मा को शिकायत मिली की लेखपाल ने भूमि की वरासत वास्तविक उत्तराधिकारी को न कर किसी और को कर दी है जिसे तत्काल सज्ञानं लेते हुए जिलाधिकारी ने आदेश निरस्त कर संसोधित आदेश पारित करते हुए मामले की जाँच उपजिलाधिकारी को सौंप दी।
हैरानी की बात तो ये हैं की एक तरह से जिलाधिकारी के कार्रवाई को अंगूठा दिखाते हुए पक्षवाड़े के भीतर ही एक और भ्रस्ट लेखपाल ने इसी तरह का कारनामा जिलाधिकारी के सामने रखते हुए उन्हें चुनौती दे दी। इस मामले में लेखपाल और राजस्व निरीक्षक ने भ्रस्टाचार की पराकाष्ठा को पार करते हुए मृतक के आश्रित और वरासत के वास्तविक उत्तराधिकारी पत्नी और बेटों के होते हुए मृतक के माँ और पिता को कर दिया गया।
प्रकरण जिले के सदर क्षेत्रअंतर्गत गिर्द गोण्डा के ग्राम कटौली परसिया रानी का है जहाँ के निवासी मो अतीक की मृत्यु के बाद उनकी संपत्ति की वरासत उनकी पत्नी मुनोबरन और बेटों को न कर मृतक के पिता गुलाम हुसैन तथा उनकी माँ रकीबुल निशा को कर दी गई।
प्रकरण पर लेखपाल संतोष पाण्डेय का पक्ष जानने के लिए उनके फोन पर संपर्क का प्रयास किया गया लेकिन कई बार के प्रयास के बाद भी उन्होंने फोन उठाकर अपना पक्ष रखने की आवश्यकता नहीं समझी जो इस बात को भी प्रमाणित करता है की मनबढ़ राजस्व कर्मियों को अब न तो शासन और न ही प्रशासन का कोई डर रह गया है।