सितम्बर महीने के अंतिम दिन एक और बैंक मैनेजर ने काम के दबाव में मुंबई के अटल सेतू से कूद कर आत्महत्या कर ली है। ये इस महीने में होने वाली तीसरी घटना है। इससे पहले बैंक कर्मचारीयों द्वारा आत्महत्या की दो दुर्भाग्यपूर्ण घटनायें सामने आई है। पहले पुणे के एक 35 वर्ष के युवा बैंकर ने मुंबई में अटल सेतू से कूदकर और फिर बेंगलोर में एक बैंक मेनेजर ने बैंक के अन्दर ही आत्महत्या कर ली। इन दोनों घटनाओं में आत्महत्या के पीछे बैंक प्रबंधन की प्रताड़ना और काम का बोझ का जिक्र किया गया है । बैंकों में आत्महत्या के मामले रुक नहीं रहे हैं। यदि 2024 में अब तक हुई आत्महत्या की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं को देखें तो हर महीने एक आत्महत्या की दुर्भाग्यपूर्ण घटना सामने आई है । सबसे ज्यादा आत्महत्या की दुर्भाग्यपूर्ण घटना तो तब सामने आई जब गुजरात के जुनागड़ के एक बैंक के चीफ मेनेजर ने अपने क्षेत्रीय कार्यालय के बाहर ही अपने को लटका कर अपनी जान दे दी थी । और यदि पिछले 5 वर्षों को देखें तो 100 से जयादा आत्महत्या की दुर्भाग्यपूर्ण घटनायें सामने आई हैं।
बैंक कर्मचारी और अधिकारी काम के दबाव के साथ-साथ कई तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं । इन सभी समस्याओं और दबाव के कई कारण हैं, जेसे दिनप्रतिदिन कर्मचारियों की संख्या में कमी आना, कई तरह के टारगेट, थर्ड पार्टी प्रोडक्ट्स को बेचने का दबाव, निश्चित काम के समय से अधिक समय तक काम का दबाव, छुट्टी वाले दिनों में भी बैंक में आने का दबाव और ऊपर से बैंक प्रबन्धन द्वारा कर्मचारियों/ अधिकारियों का दूर – दूर और ऐसे राज्य में ट्रान्सफर जहाँ भाषा का भी अंतर हो। वहीं दूसरी ओर कुछ प्रबन्धकों और उच्च अधिकारियों का व्यवहार इस समस्या को और गंभीर बना देता है। टारगेट और परफोर्मेंस के नाम पर कभी कभी कुछ प्रबन्धकों और उच्च अधिकारियों द्वारा सबके सामने कर्मचारियों और अधिकारियों को अपशब्दों द्वारा अपमानित करना प्रबंधन का एक हथियार बन गया है, इस सबका असर जहां कर्मचारियों के व्यक्तिगत जीवन और स्वास्थ्य पर पड़ रहा है वहीं कस्टमर सेवा पर भी पड़ता हुआ दिख रहा है। यदि कर्मचारी अधिकारी तनावमुक्त रहेगा तो वह बैंक में तो अच्छी तरह काम कर पायेगा, ग्राहक सेवा भी अच्छी होगी और उसका पारिवारिक जीवन भी अच्छा रहेगा। बैंकों में मानवता का अभाव होता जा रहा है। मानव संसाधन के नाम पर डिपार्टमेंट और अधिकारी तो हैं लेकिन कर्मचारियों की समस्याओं का निदान होता नहीं दिखता।
बैंकों के मर्जेर के बाद बैंकों द्वारा घाटे में चल रही बैंक ब्रांचों को बंद या मर्ज किया जा रहा है जिससे ग्राहक सेवा भी प्रभावित हो रही है। बैंकों में खर्चों में कटोती के नाम पर नई भर्ती नहीं हो पा रही है जिसके कारण कर्मचारियों पर काम का दबाव है, जहाँ बैंकों में काम बढ़ रहा है उस अनुपात में कर्मचारी नहीं हैं जिसका असर ग्राहक सेवा पर भी हो रहा है। अधिकतर बैंक ब्रांचों में 2 से 3 का स्टाफ है लेकिन उनके लिए सभी तरह के टारगेट को पूरा करने की जिम्मेवारी भी है। कर्मचारियों और अधिकारियों को काम के निश्चित समय से अधिक काम करना पड़ता है। सरकार या बैंक प्रबंधन ये सोचता है कि बैंकों में सभी कुछ कम्प्यूटराईज है इसलिय कर्मचारियों की आवयश्कता नहीं, गलत धारणा है। ये सही है कि बैंक अधिकारियों की आल इंडिया ट्रांस्फ्रेबल जॉब है लेकिन नार्थ से साउथ और ईस्ट से वेस्ट और इसके उल्टा भी ट्रान्सफर करके बैंक क्या प्राप्त करना चाहते हैं। जहाँ ट्रान्सफर के कारण बैंकों को कितना ज्यादा खर्च करना पड़ेगा वहीँ कर्मचारी परिवार से दूर होगा, इसका असर अधिकारी के स्वास्थ्य पर भी पड़ेगा। और इसके बाद यदि उच्च अधिकारियों का व्यवहार भी अच्छा न हो तो कर्मचारी अधिकारी दबाव में रहेगा। आये दिन इस तरह के दबाव के कारण कर्मचारी अधिकारी या तो नौकरी छोड़ रहे हैं या आत्महत्या करने की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ भी सामने आ रही हैं।
सरकार को इन सभी समस्याओं की ओर ध्यान देना चाहिए, बैंक कर्मचारी और अधिकारी बैंकों में अच्छे वातावरण में काम कर सकें इसके लिए बैंकों को निर्देश देने चाहिए कि बैंक कर्मचारी अधिकारी की न्यायसंगत ट्रान्सफर पालिसी बनाएं, काम के निश्चित समय अनुसार ही काम हो, उच्च अधिकारियों का व्यवहार अपने कर्मचारियों और अधिकारीयों के प्रति संवेदनशील हो जिससे बैंक अच्छी ग्राहक सेवा दे सकें और सरकार की सभी योजनाओं को भी अच्छी तरह लागू कर सकें। बैंक कर्मचारियों और अधिकारियों के स्वास्थ्य और जीवन से खिलवाड़ करके बैंकों का प्रॉफिट बढाना किसी भी तरह उचित नहीं होना चाहिए। बैंक कर्मचारी अधिकारी मानव पूंजी हैं, उनके साथ सन्वेदनशील मानवीय व्यवहार होना चाहिए और उचित सम्मान मिलना चाहिए।
सरकार को तुरंत एक कमेटी का गठन करना चाहिए जो की आत्महत्याओं के कारण जाने और इन्हें रोकने के लिए दिशा निर्देश जारी करे ताकि बैंकों में इस तरह हो रही दुर्भाग्यपूर्ण आत्म्हत्याओं को रोका जा सकें ।
अशवनी राणा
फाउंडर
वॉयस ऑफ बैंकिंग