गोगोई ने अपने ही नेतृत्व में की आपात सुनवाई, पीडिता पर ही लगा दिया गम्भीर आरोप
अपने ही बनाये नियमों की उडाई धज्जी, उठी पद छोड़ने की मांग
दिल्ली। जूनियर असिस्टेंट के तौर पर कार्य कर चुकी एक महिला द्वारा लगाये गये अपने साथ किये गये योन शोषण के अरोपों से जहां उच्चतम न्यायालय की विश्वसनीयता पर गहरा प्रश्नचिन्ह लग रहा है वहीं आरोपी मुख्य न्यायाधीश की उटपटांग हरकतें उन पर लगाये गये आरोपों को और भी बल दे रही है, मुख्य न्यायाधीश ने ऐसे मामलों में बनाये गये नियमों को ताक पर रखते हुए तत्काल इस्तीफा न देते हुए अपने ही नेतृत्व में आपात सुनवाई की ओैर न्यायालय की दुहाई देते हुए पीडिता को ही कटघरे में खडा कर दिया।
हालाकिं पीडिता को एक बडा समर्थन उस समय मिला जब महिला वकीलों के संगठन ने मामले पर प्रेसनोट जारी करते हुए मुख्य न्यायाधीश के इस्तीफे की मांग कर डाली, जारी प्रेसनोट में लिखा गया यह मांग विषेश है कि दर्जे और ताकत में इतना अंतर होने की वजह से हमे यह लगता है कि आरोपों की जांच के दौरान मुख्य न्यायाधीश को अपने पद पर नही रहना चाहिए।
मांग पत्र में यह भी बताया गया है कि ऐसे यौन उत्पीडन के मामलों की जांच का तरीका और कायदा इसी अदालत ने तय किया है परन्तु इस मामले में वह ही इसे लागू नहीं कर रहा है।
मुख्य न्यायाधीश के इस्तीफे की मांग कर रही वकीलों का नेतृत्व कर रही उच्चतम न्यायालय की वरिष्ठ वकील इंदिरा जय सिंह ने एक वार्ता के दौरान बताया कि इस मांग पर महिला वकीलों के अलावा एक हजार से भी ज्यादा लोगों ने अपने हस्ताक्षर कर अपनी सहमति दी है।
ज्ञातव्य हो कि मी टू अभियान का शिकार बन चुके केन्द्रीय मंत्री एम जे अकबर को पिछले वर्ष अक्टूबर में इसी तरह के आरोपो के चलते अपने पद से इस्तीफा देना पडा था जिसमें 20 महिला पत्रकारों ने एम जे अकबर पर योन उत्पीडन का अरोप लगाया था आरोप मे यह भी कहा गया था कि एम जे अकबर एशियन एज सहित अन्य कई अखबारों में संपादक पद पर रहते हुए उनका उत्पीडन किया था।
इंदिरा जय सिंह ने बताया कि इस मामले में कोर्ट की जिम्मेदारी है कि वो इसकी जांच के लिए अधिक विश्वसनीयता रखने वाले लोगों की एक कमेटी बनाये साथ ही उन्होनें यह भी कहा कि यदि ऐसा नही होता है तो यह उच्चतम न्यायालय की विश्वसनीयता को कमतर करेगा।