मीडिया के कडे हस्तक्षेप के बाद ही कार्यवाही के लिए उठती है कलम
गोण्डा। सरकार जिस कार्य के लिए विभाग को करोडों रूप्ये वेतन के साथ अन्य सुख सुविधाओं से लैस करती है वन विभाग उसी कार्य को छोडकर अन्य सभी कार्यो में लिप्त रहता है, इतना ही नही वन्यजीवों के सरंक्षण के लिए राष्ट्ीय सहित अर्न्तराष्ट्ीय स्तर पर अभियान भी चलाये जाते है लेकिन सरकार सहित अर्न्तराष्ट्ीय संस्थाओं के मंशा और दिशा निर्देशों को जनपद का वन विभाग किस तरह एक कान से सुन दूसरे से निकाल देता है इसकी बानगी देखनी हो तो जनपद के रेंज पंडरी कृपाल और परसपुर की कुछ घटनाओं पर नजर डालने की आवश्यकता है। जिनमें वन्यजीवों की दुर्घटना में मौत हो या फिर उनका अवैध शिकार दोनों ही मामलों में विभाग ने कार्यवाही तो दूर मामले की लीपापोती करने का ही काम किया है।
पहला मामला परसपुर रेंज से जुडा है जहां पिछले 16 अक्टुबर को खेत में लगे ब्लेड वाले तार में फसंकर एक बारहसिंघा बुरी तरह घायल हो गया, तत्काल कुछ जागरूक नागरिकों द्वारा फारेस्ट गार्ड गौरीशंकर मिश्र को घटना की जानकारी दी गयी लेकिन उन्होनेंं न तो अपने मूल कर्तव्य को ही सम्मान दिया और न ही वन्यजीवों की अहमियत को, सूचना मिलने के बाद भी घटना स्थल पर न तो श्री मिश्र पहुचें और न ही अन्य वन्यकर्मी, विभाग की लापरवाही का नतीजा रहा कि देर रात बुरी तरह घायल बारहसिंघे की मौत हो गयी।
17 अक्टूबर को जब मीडिया ने मामले में हस्तक्षेप किया तब जाकर विभाग की नींद टूटी और औपचारिकता निभाने वन्यकर्मियों ने घटना स्थल पर जाने का प्रयास किया परन्तु यहां एक और चौकाने वाला मामला सामने आया, घटना स्थल के लिए निकले वन्यकर्मी को अपने ही क्षेत्र का ज्ञान नही था जिस कारण वे बारहसिंघे का शव तक नहीं खोज पाये इस बीच मिली सूचना के अनुसार बारहसिघें के शव को कुत्तों ने नोच नोच कर खा लिया और उसके कुछ अवशेष एक खेत में पडे हुए दिखाई दिये।
दूसरा मामला पंडरी कृपाल रेंज का है जहां के उज्जैनीकला बीट अर्न्तगत बाबागंज के पास अज्ञात वाहन की चपेट में आने से एक हिरन की मौत हो गयी, यहां भी विभाग ने अपनी चिरपरिचित शैली का परिचय देते हुए हिरन का पोस्टमार्टम करा उसका अन्तिम संस्कार कर अपने कर्तव्यों को भी अतिंम संस्कार कर दिया। घटना की जानकारी जब मीडिया को हुयी और क्षेत्र के वन दरोगा कन्हैया सिंह से मामले की जानकारी और की गयी कार्यवाही के बावत बात हुयी तो उन्होनें बडे गर्व से बताया कि मृतक हिरन की मौत अज्ञात वाहन के चपेट में आने से हुयी है और उसका पोस्टमार्टम करा अिंतंम संस्कार करा दिया गया है। जब श्री सिंह से यह पूछा गया कि क्या इस पर किसी के खिलाफ कोई कार्यवाही भी की गयी है तो उनका उत्तर था कि अज्ञात के विरूद्व कोई कार्यवाही नहीं की जाती, जिस पर उनसे यह पूछा गया कि जब कोई कार्यवाही ही नहीं करनी थी तो हिरन का पोस्टमार्टम क्यों कराया गया उसका वैसे ही अतिंम संस्कार क्यों नहीं किया गया जिस पर वन दरोगा के पास कोई उत्तर नही मिला ओैर वे बगले झाकने लगे। प्रकरण जब रेन्जर ओ पी लाल के पास पहुचां तो उन्होनें भी पहले तो वन दरोगा वाली ही बात दोहराई परन्तु बाद में अज्ञात के विरूद्व तुरन्त केस काटने का निर्देश भी दिया।
इसी तरह का एक और मामला भी पंडरी कृपाल रेंज का ही है जो राज्य पक्षी हंस से जुडा हुआ है, पिछले 23 नवम्बर को ही क्षेत्र के टिकरिया गावं में एक शातिंप्रिय समुदाय के लोगों द्वारा शांति स्थापित करने की नीयत से राज्य पक्षी हंस का शिकार कर लिया, राज्य पक्षी हसं के लिए एक दूसरे समुदाय जिसमे हंस के लिए एक आस्था भी होती है को जब इस घटना की सूचना मिली तो उनमें आक्रोश फैला और मामला पुलिस तक पहुचां जहां से वन विभाग को सूचना दी गयी। सूचना पर पहुचें वन दरोगा नन्दगोपाल ने प्राथमिक उपचार के बाद हंस को तो अपने कब्जे में ले लिया परन्तु साल पुर चौकी पर ही मौजूद आरोपी को अपने कब्जें में लेना उचित नहीं समझा।
वन दरोगा नन्दगोपाल से जब इस वाबत जानकारी चाही गयी तो उन्होनें मीडिया को भी गुमराह करते हुए बताया कि हंस का प्राथमिक उपचार कराने के उपरांत उसे छोड दिया गया है जबकि पुलिस चौकी पर मौजूद कुछ प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि हंस की उपचार के दौरान ही मौत हो गयी थी। यहां एक और चौकाने वाला मामला दिखाई दिया जिसमें वन दरोगा नन्द गोपाल ने बताया कि हंस को वहां से लगभग 18 किलोमीटर दूर गुमडी पर छोड दिया गया है जबकि घटना स्थल वहां से मात्र दो किलोमीटर हैं अब यहां यह भी सवाल उठता है कि वन दरोगा जैसे पद पर तैनात नन्दगोपाल को इतना भी नहीं पता कि हंस हमेशा जोडे में रहता है और यदि उनमें से एक किसी कारण बिछुड जाता है तो दूसरा वहीं इंतजार करता है ओैर इंतजार करते करते वही पर मर जाता है। यदि जानकारी थी तो उन्होनें उसे उसके साथी के पास क्यों नहीं छोडा।
इतना ही नहीं जब आरोपी स्थानीय पुलिस चौकी में मौजूद था तो उसे अपनी हिरासत में क्यों नहीं लिया गया और उसके विरूद्व बाद में केस काटने का क्या औचित्य रह गया। स्थानीय लोगों की माने तो नन्द गोपाल भ्रष्टाचार मे ंआकठ डुबे हुए है और उन्होनें आरोपियों से एक लम्बी डील की है जिसका नतीजा उनको अपनी हिरासत में न लेने के रूप में सामने आयी है।
उपरोक्त घटनायें यह साबित करती है कि वन विभाग ही स्वयं वन्यजीवों के लिए काल बन चुका है उसकी भ्रष्टाचारी नीति वन्यजीवों पर आफत की तरह बरस रही है ओैर वन्यजीवों के हत्यारों का मनोबल सातवे आसमान पर है क्योंकि उन्हें यह पता है कि किसी भ वन्यजीव की हत्या कर देने पर मात्र कुछ रूप्यों में मामला आसानी से निपट जायेगा।