बड़े ही नहीं युवा भी अवसाद की जद में हैं। 10 साल के बच्चे से लेकर 18 साल के युवाओं में तेजी से अवसाद (डिप्रेशन) घर कर रहा है। इसकी बहुत सी वजह हैं। माता-पिता अपनी उम्मीदों को बच्चे पर थोपते हैं। पढ़ाई का पहले से ही दबाव रहता है। यह बातें बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. आशुतोष वर्मा ने यहां दी।
शुक्रवार को इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स की ओर से केजीएमयू के कलाम सेंटर में यूपी पेडिकॉन की 39 वीं कान्फ्रेंस का आगाज हुआ। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. दिनेश चन्द्र पांडेय ने बताया कि मोबाइल-कम्प्यूटर और टीवी बच्चों सेहत का सबसे बड़ा दुश्मन बन गया है। छह साल की उम्र तक बच्चे को मोबाइल, कम्प्यूटर टीवी आदि से दूर रखें। इससे नजर कमजोर हो सकती है। छह साल से अधिक उम्र के बच्चे माता-पिता की देख-रेख में आधा एक घंटे मोबाइल देख सकते हैं। वह भी 20-20 मिनट के अंतराल पर। इंदौर के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. जेएस टुटेजा ने किशोरों में बढ़ रहे मानसिक तनाव पर चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि देश में किशोर स्वास्थ्य क्लीनिक खोलने की जरूरत है। माता-पिता बच्चों से लगातार संवाद रखे।
बस नौ मिनट के दुलार से नहीं बिगड़ेंगे बच्चों से रिश्ते
पीजीआई में बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. पियाली भट्टाचार्या व कान्फ्रेंस के संयोजक डॉ. आशुतोष वर्मा ने बताया कि काफी संख्या में दम्पत्ति दोनों कामकाजी हैं। उनके पास बच्चों के संग वक्त गुजरने तक का मौका नहीं रहता है। ऐसे में सिर्फ नौ मिनट बच्चों के बीच गुजारें। इससे बच्चे में खुशी बढ़ेगी। माता-पिता के प्रति बच्चे का स्नेह बढ़ेगा।
ये है फार्मूला
-सुबह बच्चे के उठने के बाद माता-पिता उसे गले लगाएं। तीन मिनट दुलार करें।
-स्कूल से जब बच्चा घर लौटे तो उसे तीन मिनट तक प्यार करें। उसकी टाई सही करें। पीठ थपथपाएं। चेहरे और सिर पर स्नेह से हाथ फेरें।
-सोने से ठीक पहले बच्चे से तीन मिनट बातें करें। चिपकाकर लिटाएं।