परखनली शिशू तकनीक को अब तक समझा जाता था कलंक
महाराष्ट्/गुजरात। लगातार घट रही आबादी और जन्म मृत्यू अनुपात में भयंकर अन्तर होने के कारण अभी तक इस समुदाय ने कलंक समझे जाने वाले आईवीएफ तकनीक को भी अपनाने का फैसला कर लिया है, हालांकि सरकारी तौर पर भी इस समुदाय की आबादी को बढाने का फैसला और उसके लिए कई योजनाओं का संचालन केन्द्र की सरकार कर रही है।
जी हां हम बात कर रहे है बहुत ही सीमित संख्या में प्रमुखता से महाराष्ट और गुजरात में रहने वाले पारसी समुदाय की। सदियों पहले ईरान से भारत आये जरथु्रस्त पंरपरा के पालक इस समुदाय ने सबसे पहले गुजरात को अपना घर बनाया उसके बाद कुछ पारसियों ने मुम्बई को भी अपना ठिकाना बना लिया।
देश के विकास में अहम स्थान रखने वाले इस समुदाय की आबादी वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार मात्र 57264 बतायी गयी जबकि वर्ष 1941 मेंं करायी गयी पहली जनगणना में इस समुदाय की संख्या एक लाख चौदह हजार बतायी गयी थी। पारसियों की जनसंख्या में भारी गिरावट की वजह जन्म म्त्यू दर का भारी अन्तर है, इस समुदाय में जहां प्रतिवर्ष जन्मदर 200 है वही मृत्यूदर 800 के लगभग है।
इस समुदाय की घटती आबादी से चिन्तित केन्द्र सरकार ने जहां जियो पारसी योजना का संचालन किया वही समुदाय ने भी अभी तक कंलकं समझे जाने वाले आईवीएफ तकनीक को अपनाने का फैसला किया है। सरकार की योजना में आर्थिक मदद के अलावा प्रसव से सम्बिंधत इलाल और मेडिकल रिम्बर्समेन्ट जैसी सुविधाओं की भी घोषणा की है। इस योजना में जो पारसी युवा बुजूर्ग दम्पत्तियों की देखभाल और सेवा करते हें उन्हें अर्थिक मदद, बुजूर्ग दम्पत्तियों द्वारा बच्चों की देखभाल के लिए दस वर्ष तक प्रतिवर्ष तीन हजार रूपये की मदद के साथ 60 वर्ष से उपर के बुजूर्गो को चार हजार रूपये महीने की मदद दे रही है।
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