गोंडा। कोरोना महामारी के इस दौर में प्रवासी श्रमिकों की समस्याओं को केवल तात्कालिक ढंग से समझना अदूरदर्शिता होगी।मूलभूत प्रश्न यह है कि कोई अपना जन्मस्थान,अपनी जन्मभूमि क्यों छोड़ता है? प्रवासियों के आँकड़े अस्पष्ट हैं,शायद इनकी संख्या 25 – 30 करोड़ से अधिक है। ये शौकिया नहीं बल्कि मजबूरी में पलायन करते हैं। ये बातें आचार्य मनोज दीक्षित, कुलपति डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, अयोध्या ने श्री लाल बहादुर शास्त्री डिग्री कॉलेज,गोंडा के समाजशास्त्र विभाग द्वारा आयोजित ” भारत में प्रवासी श्रमिक: समस्याएं एवं संभावनाएं” विषयक राष्ट्रीय वेबिनार में कहीं।
वेबिनार का उद्घाटन करते हुए उन्होंने कहा कि यह समझने की बात है कि पंजाब, हरियाणा आदि प्रांतों से उत्तर प्रदेश और बिहार की तरह श्रमिक या कामगार पलायन क्यों नहीं करते। महात्मा गाँधी और दीन दयाल उपाध्याय के ग्राम स्वराज की अवधारणा के विफल होने का यह प्रमाण है, अन्यथा इतनी बडी संख्या में श्रमिकों का पलायन नहीं होता।कुलपति प्रो. दीक्षित ने इस अवसर पर ई-सेमिनार के सफलता की शुभकामनाएं दीं। महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ के समाजशास्त्र विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष डॉ. बृजेश कुमार सिंह ने कहा कि प्रव्रजन का मूल कारण बेरोजगारी, सामाजिक असुरक्षा, आर्थिक असुरक्षा, जनसंख्या विस्फोट, बड़ा परिवार, जमीनों की कमी, खेती में मुनाफा की कमी, सामंती व्यवस्था है। उन्होने कहा कि इस महामारी के समय में दुखद यह है कि दिल्ली और महाराष्ट्र राज्य की सरकारों ने अपने कामगारों, श्रमिकों के प्रति जिम्मेदारी के साथ संवेदनशीलता नहीं दिखाई है। इसका मुख्य कारण इनका मतदाता के रूप में नामांकित न होना है। उन्होने कहा कि प्रवासियों की समस्याएं विभीषिका का रूप धारण कर चुकी हैं। कोई समाजशास्त्री, पत्रकार, साहित्यकार इन बातों को उनकी पीड़ा और परेशानी के घनत्व के साथ कैसे कह पाएगा ? उन्होंने कहा कि सामाजिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक सुरक्षा प्रदान किए बिना श्रमिकों का पलायन नहीं रोका जा सकता। प्रवासियों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने के लिए उन्होंने योगी सरकार की तारीफ भी की।
डॉ. आशीष सक्सेना, अध्यक्ष, समाजशास्त्र विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज ने सामाजिक दूरी की धज्जियां उड़ाते हुए लोगों को लक्षित करते हुए कहा कि जब तक किसी देश के लोग जागरूक और अनुशासित न हो, तब तक किसी बड़े मिशन को पूरा करना संभव नहीं है। उन्होने कहा कि संवेदनशीलता बिना मानवीय भावना के नहीं आती। सच यह है कि हमारी सरकारों को ग्रामीण विकास पर सघन रूप से ध्यान देने की जरूरत है। श्रमिकों की समस्याएं तभी समाप्त होंगी और ग्रामोत्थान भी तभी हो सकेगा।
दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में
समाजशास्त्र विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष डॉ. मानवेंद्र सिंह ने कहा कि शहरों के प्रति बढ़ता हुआ आकर्षण अनेक समाजशास्त्रीय विश्लेषण की मांग करता है। इसमें गरीबी, बेरोजगारी, सामाजिक असुरक्षा जैसे कारक तो हैं ही, इसके साथ ही हमारी मनोवैज्ञानिक जरूरतें भी हैं। उन्होंने श्रम सुधार के संबंध में प्रदेश सरकार की विभिन्न योजनाओं को इसके लिए जरूरी बताया जिसमें मजदूरों, श्रमिकों, कामगारों को स्थानीय स्तर पर काम मिल सके और वे बेहतर जीवन जी सकें।
प्रोफेसर श्वेता प्रसाद, समाजशास्त्र विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी ने प्रवासी महिला श्रमिकों की समस्याओं को अपने वक्तव्य के केंद्र में रखा। उन्होंने कहा कि प्रायः लोग महिला श्रमिकों की समस्याओं को विस्मृत कर जाते हैं। कोरोना के इस दौर में किस तरह महिलाएं अपने बच्चों को लादे हुए विभिन्न महानगरों से हजारों किलोमीटर दूर अपने गांव की ओर सड़क मार्ग से पैदल चल पड़ी, रास्ते में उन्होंने बच्चों का जनन किया, तरह-तरह की मुश्किलों में पड़ी। इन तमाम पक्षों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। सरकार को अपने सभी नागरिकों की बहुस्तरीय समस्याओं को समझने और उसे सुलझाने के लिए सतत प्रयत्नरत रहना चाहिए।
एलबीएस कॉलेज के सेवानिवृत्त प्राचार्य एवं समाजशास्त्र विभाग के अध्यक्ष डॉ. हरि प्रकाश श्रीवास्तव ने प्रवासी, अप्रवासी, प्रव्रजक, परिव्राजक, मायग्रेशन और इमिग्रेशन जैसे शब्दों के सचेत प्रयोग पर बल देते हुए कहा कि कई शब्द अपरिभाषित होने के कारण अलग-अलग अर्थों के लिए प्रयुक्त होते रहते हैं। उन्होंने कहा कि समाजशास्त्र की शब्दावली में वर्तमान परिस्थितियों को कर्षक एवं विकर्षक कारक के आधार पर देख सकते हैं। समसामयिक भारत एवं विश्व में श्रमिकों का उलटा प्रवाह शुरु हो गया है। अभी तक जहां वे गांव और छोटे कस्बों से महानगरों की ओर जाते थे अब वे पुनः वापस आ रहे हैं, इसके पीछे कोरोना जैसी महामारी है। उन्होंने कहा कि शिक्षा रोजगार नौकरी और काम की तलाश में लोग माइग्रेट करते हैं लेकिन वर्तमान परिस्थिति में राज्य सरकारों के बीच समन्वय न होना दुखद है।
विषय प्रवर्तन करते हुए शास्त्री कॉलेज में समाजशास्त्र विभाग के अध्यक्ष डॉ. रामसमुझ सिंह ने कहा कि प्रवास केवल आर्थिक कारण से नहीं होता, बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक कारण, राजनीतिक कारण और प्राकृतिक कारण भी इसके लिए जिम्मेदार होते हैं। यह जरूर है कि प्रायः लोग रोजगार की तलाश में प्रव्रजन करते हैं और उसके लिए अलग-अलग राज्यों में उद्योग धंधों का असमान विकास जिम्मेदार है। उन्होंने यह भी कहा कि मौजूदा समय में धन-संपत्ति पद और प्रतिष्ठा को अधिक महत्व देने के कारण यह पलायन और बढ़ा है।
महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. वन्दना सारस्वत ने कुलपति, सभी अतिथियों, वक्ताओं, प्रतिभागियों, शोधकर्ताओं, महाविद्यालय परिवार के सदस्यों का इस ई-सेमिनार में स्वागत किया।
कार्यक्रम के अंत में महाविद्यालय के मुख्य नियंता डॉ जितेंद्र सिंह ने सभी वक्ताओं के वक्तव्य की समीक्षा करते हुए कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित सहित सभी आमंत्रित अतिथियों, वक्ताओं, प्रतिभागियों के प्रति आभार ज्ञापित किया।
इस अवसर पर समाजशास्त्र विभाग की सह आचार्य डॉ. शशिबाला, डॉ. रचना श्रीवास्तव सहायक आचार्य समाजशास्त्र विभाग, डॉ विजय शुक्ल सहायक आचार्य समाजशास्त्र विभाग और महाविद्यालय के विभिन्न विभागों के प्राध्यापक गण तथा देश के विभिन्न हिस्सों से विद्वान एवं शोधार्थी-प्रतिभागी इस वेबिनार में योजित हुए और विमर्श को संभव बनाया।
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