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आखिर क्यों है इस गांव के ग्रामीण कब्रों के साथ जीवन यापन को विवश

Written by Vaarta Desk

दो समुदायों के विवाद में कब्रिस्तान में नही मिल रही है जगह

इटावा। आपने लोगों को यह तो कहते जरूर सुना होगा कि तुम्हे मरने के बाद दो गज जमीन भी मयस्सर नही होगी, यही कहावत इस गावं पर पुूरी तरह सटीक बैठ रही है इस गावं के लगभग प्रत्येक घर में चार से पाचं कब्र मिल जाना आम बात है।

आज हम बात कर रहे है इस गावं की जहां लोग अपनो के मरने के बाद उनकी कब्र अपने ही घर में बनाने को विवश है आखिर क्यों

यह चैकाने वाला मामला जनपद इटावा के चकरनगर तहसील के तकिया मजरा का है जहा दो समुदायों के विवाद के चलते एक समुदाय को अपने लोगों की कब अपने ही घरों में बनाना पड रहा है। जानकारों की माने तो इस मजरे में मुस्लिमों के दो समुदाय फकीर और मनुहारों के है जिनमें से लगभग सौ घर फकीरों और दस परिवार मनुहारो के हैंे। कुछ वर्ष पहले प्रशासन ने मनुहारों को कब्रिस्तार के लिए जगह दे दी यही जगह इन दो समुदायों के लिए विवाद का कारण बन गयी।

मनुहारो ने प्रशासन से मिली जगह पर फकीरो को अपने मृतकों की कब्र बनाने से रोक दिया, आर्थिक रूप से विपन्न फकीरो ने पुनः प्रशासन से गुहार लगाई लेकिन स्थानीय राजनीति और प्रशासन की लापरवाही उन पर भारी पडी और उन्हें विवश होकर अपनों की कब्र अपने की घर में बनानी पडी।

70 के दशक से चला आ रहा यह विवाद आज भी नही सुलझा जिसका नतीजा यह रहा कि फकीरों के घरों में आंगन से लेकर चुल्हे के पास तक कब्र बन गयी, आज तो हालत यह हो गयी है कि किसी किसी घर में चार से लेकर पाचं कब्रें घरों में हो गयी और लोग इन्ही कब्रों के साथ रहने को आदी हो चुके हैंे।

मुस्लिम धर्मगुरूओं की माने तो यह ईस्लाक के भी खिलाफ है इस्लाम में कब्रों को भी जिन्दा इन्सान की तरह ही माना गया है उनकी शांित के लिए ही उन्हें कब्रिस्तान में दफनाया जाता है जहंा उन्हें किसी तरह की परेशानी का अनुभव न हो।

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