श्रद्वांजलि देने की भी नहीं है अनुमति, बनारस की संस्था ने उठाया मामला
नीलगंज पंश्चिम बंगाल। अभी तक आप जालियावालां बाग की घटना से ही अवगत होगें जहंा अंगे्रजों ने लाखों भारतीयों की निर्मकतापुर्वक हत्या या कहें नरसंहार किया था परन्तु इसी तरह की और कोई घटना भारत में कही भी घटी हो आप अवश्य अनभिज्ञ होगें, लेकिन हम आज आपकों इसी तरह के एक और नरसंहार से रूबरू कराने जा रहे है जहंा जालियावालां बाग के तर्ज पर दो चार नही पूरे 2300 सैनिकों की हत्या रातोंरात कर दी गयी तथ्य को छुपाने के लिए उनके श्वों को नदी में फेंक दिया गया। हैरानी की बात तो यह है कि आज भी किसी को इन शहीदों को श्रद्वांजलि तक अर्पित करने का अवसर नही दिया जा रहा।
घटना वर्ष 1947 की है जब आजादी के महानायक सुभाषचन्द बोस की आजाद हिन्द सेना के 2300 सैनिकों को बन्दी बनाकर प्रदेश के नीलगंज क्षेत्र में स्थित अंगेजों के आर्मी कैम्प में लाया गया और मशीनगन चला कर उन सभी को मौत की नींद सुला दिया गया। 25 सिंतम्बर 1945 को किये गये इस नरंसंहार को छुपाने के लिए अंगेे्रजों ने पास में ही बह रही नौआई नदी में फेंक दिया गया। जानकारों की माने तो इस नंरसंहार से जहंा आर्मी कैम्प की पूरी जमीन लाल हो गयी थी वही नदी का पानी भी रंक्तरंजित हो गया था।
इतिहास के किसी अनपढे पन्ने में गुमनाम यह घटना उस समय सामने आयी जब उत्तर प्रदेश के सुभाष संस्था के महासचित तमल सान्याल ने इस जगह पर इन शहीदों को श्रद्वाजंलि देने का एक कार्यक्रम आयोजित करना चाहा और आजादी के बाद इस जगह पर खुले सेन्ट्ल इन्स्टीटयूट फार जूट एंड एलायड रिसर्च से कार्यक्रम की अनुमति मांगी परन्तु इन्स्टीटयूट ने अनुमति देने से यह कहते हुए मना कर दिया कि कार्यक्रम के लिए केन्द्रीय गुह मंत्रालय ही अनुमति दे सकता है।
सुभाष संस्था के महासचिव तमल सान्याल ने बताया कि आजादी से पहले यहां पर साहेब बागान हुआ करता था इसी में एक आर्मी कैम्प भी था जहंा ब्रिटिश सेना के अधिकारी रहा करते थे, यही पर आजाद हिन्द फौज के 2300 युद्व बन्दियों को लाया गया था जिन्हें पूर्व नियोजित योजना के तहत 25 सिंतम्बर 1945 को नरसंहार के द्वारा मौत के घाट उतार दिया गया। इस घटना में इतना खून बहा था की आर्मी कैम्प की पूरी जमीन खून से लाल हो गयी थी। इतना ही नही घटना केा छुपाने के लिए पास ही बहने वाली रौनाई नदी में शवों को फेंक दिया गया जिससे नदी का पानी भी लाल हो गया था।
उस समय घटना सामने आने पर आर्मी ने इसकी जाचं भी करायी थी जिसकी रिपोर्ट में यह स्पष्ट लिखा गया था कि घटना तो हुयी है परन्तु शव कहा गये पता नही चला। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस पर शोध कर चुके कोलकाता विश्वविद्यालय के शोधार्थी डा0 जयंत चैधरी के मुताबिक आजाद हिन्द फौज के सैनिकों का शव ट्कों में भरकर नदी पर लाया गया उसमें से कुछ शवों को आसपास के जंगलों में भी फेंक दिया गया, जिनमें से कुछ सैनिकों के श्वाों के ताड के पेडों पर पडे होने के सबूत भी मिले थे।