उत्तर प्रदेश लाइफस्टाइल

“मिशन शक्ति” …महिला सुरक्षा और सम्मान का इवेंट…. संकल्प और हकीकत भी या सिर्फ मजाक

Written by Reena Tripathi

राज्य सरकार ने महिला की सुरक्षा सम्मान और स्वाभिमान के लिए पूरे प्रदेश में मिशन शक्ति अभियान की शुरुआत करते हुए साफ कह दिया है कि बेटी पर बुरी नजर डालने वालों की दुर्गति तय है जो लोग नारी गरिमा और उसके स्वाभिमान को दुष्ट प्रभावित करने की कोशिश करेंगे उनके लिए यूपी की धरती में कोई जगह नहीं……….पढ़कर और सुनकर हंसी नहीं आई आपको.( क्या वास्तव में यह बात सही है तो ऐसे अपराधियों को सरकार बना क्यों दे रही है)

180 दिन के इस अभियान में पहले चरण में 9 दिन यानी कि नवरात्र के नौ देवियों के दिनों में महिला सुरक्षा सम्मान और स्वाभिमान के प्रति लोगों को जागरूक किया जाएगा….. क्या वाकई हम सभ्य समाज में रहते हैं जहां महिलाओं के सम्मान के लिए नौ देवियों की पूजा करने वाले हम और आप आज भी जागरूकता के मोहताज हैं।

और दूसरे चरण में महिलाओं के प्रति दुष्ट प्रवृत्ति रखने वाले व्यक्तियों तथा सभ्य समाज में बाधा बनने वालों को चिन्हित किया जाएगा… और जो पहले से चिन्हित है और वर्तमान सरकार में या विपक्ष में शायद शामिल भी उन्हें सजा कब दी जाएगी…. उन्नाव जैसे कई कांड जहां लड़की जलाकर मार दी गई, वही एक बाहुबली नेता सेंगर के द्वारा एक बच्ची के पूरे परिवार को तहस-नहस कर दिया गया……. ऐसे ही ना जाने कितने केस.

आज महिलाओं को यंत्र तंत्र और मंत्र के नहीं कड़ाई से 1090, 181, 1076,102और 100 नंबर पिंक बूथ, महिला आयोग इत्यादि होने के बाद भी न्याय के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है… क्या इतने कड़े कानून नहीं बनाए जा सकते कि ऐसे मामलों में समय पर न्याय दिया जा सके और अपराधियों को ऐसी सजा ताकि फिर कोई नया अपराधी पैदा ना हो , महिला सुरक्षा और सम्मान एक इवेंट न होकर सुदृढ़ संकल्प बने।

ऑपरेशन दुराचारी के तहत समाज के सहयोग से सभ्य समाज में बाधा बनने वालों को सजा दिलाई जाएगी…. इसका कहने का क्या मतलब है क्या सरकार सजा देने में अक्षम हो गई है और अब समाज को अपने हाथों में हथियार उठाना होगा…..सुना है महिलाओं से अभद्रता करने वालों की तस्वीरें चौराहों पर लगाई जाएंगी…… इससे क्या होगा क्या अत्याचारी की संख्या इतनी कम है मुझे लगता है यदि वास्तविक रूप से ऐसे अपराधियों की फोटो लगाई जाए तो शायद एक शहर भी कम पड़ जाए चौराहा तो बहुत छोटी चीज है…. यह भी एक मजाक है आप समझते रहिए, राजनीतिज्ञों का काम है मजाक करना।

निश्चित रूप से क्या आज हमारे समाज को दिखावे और आडंबर की जरूरत है क्या ?? क्या वास्तविक रूप से भारतीय समाज में महिलाएं असुरक्षित हो गई है???
यदि हां तो फिर स्कूलों में महिला सुरक्षा हेतु पाठ्यक्रम क्यों नहीं बनाया जाता महिलाओं को उनकी शारीरिक सुरक्षा के लिए मानसिक रूप से सुदृढ़ क्यों नहीं बनाया जाता है क्यों किसी लड़की के साथ रेप होने के बाद उसे ही कटघरे में और उसके परिवार को ही पूछताछ के दायरे में रखा जाता है क्यों मरने के बाद चरित्र सही ना होने और उस लड़की ने ही कोई गलती की होगी इस बात पर प्रश्नचिन्ह लगाने का काम पुलिस, प्रशासन और सारा तंत्र एकजुट होकर करने लगता है क्यों लड़कियों को अपनी सुरक्षा और सुरक्षा के बीच लड़ाई करनी पड़ती है?????

निश्चित रूप से साल में दो बार धार्मिक श्रद्धा और नियम के तहत हमने नारी को सम्मान दिया और शारदीय नवरात्र तथा वासंती नवरात्र में लगभग 18 दिन देवी के रूप में कन्याओं को पूजा और इस समय को छोड़कर हो सकता है इस दौरान भी बहुत सी घटनाएं होती हो जिससे महिलाओं का सम्मान अस्मिता और मन के हजार टुकडे होते हो…. इस समय को हम अनदेखा भी कर देते हैं तो भी बाकी के पूरे साल महिलाओं को भोग की वस्तु समझना ज्यादा हितकारी कारी लगता है।
वाकई यदि दिल से हमने महिलाओं का सम्मान किया होता ,बेटियों को पूजा होता , तो शायद आज हमारे समाज में ही यदि हमारे घर हैवान पैदा नहीं हो रहे तो किसके घर से इस तरह के आता ताई निकलते हैं जो बेटियों के शरीर के टुकड़े टुकड़े नोच कर चील का मुंह से भी बुरी स्थिति में उन्हें पहुंचा देते हैं।हम सामाजिक रूप से ऐसे लोगों का बहिष्कार क्यों नहीं करते।

यदि छेड़खानी, रेप, हत्या और अत्याचार के केस में डरा सहमा परिवार पुलिस तक पता भी है तो शायद अनवरत जारी रहने वाली जलालत fir होने से ही शुरू हो जाती है खुद के ऊपर अत्याचार और अन्याय होने के बावजूद अपराधी की तरह बेतुके बेशर्म सवालों के कटघरे में बच्ची और उसके पूरे परिवार को खड़ा होना पड़ता है इस प्रकार की जांचों में वर्षों क्यों लग जाते हैं ।एक लड़की के जीवन से खिलवाड़ हमारा समाज हमारा पुलिस हमारा तंत्र हमारे राजनेता क्यों और कब तक करते रहेंगे???

मुझे ऐसा लगता है कि समाज जो कि हमने ही बनाया है अतः सबसे पहले हमें हमारे परिवार को इस बात पर शर्म आनी चाहिए कि हमने बेटियां पैदा की थी और यदि की है तो हम ऐसा समाज क्यों नहीं बना पाए कि उन्हें गर्व से सर उठा कर चलने में डर असहजता और शर्म महसूस ना होती…….. महिलाओं की सुरक्षा के लिए गिनती के 180 दिन का अभियान सरकार को चलाना ना पड़ता।
एक व्यक्ति से उसका परिवार शुरू होता है उसके परिवार से समाज समाज से राज्य और राज्य से देश फिर यदि इन सभी चीजों की शुरुआत एक व्यक्ति ने की है तो क्या दोषी आज हम सब नहीं है क्या हम सबको अपनी आत्माओं में झांक कर नहीं देखना चाहिए कि इस तरह के अन्याय होने के बाद हम एक-दो दिन व्हाट्सएप फेसबुक और मीडिया में हो-हल्ला तो मचाते हैं और इसके बाद सब कुछ भूल कर अगली होने वाली घटना का इंतजार करते हैं।

सरकार चाहे किसी भी पार्टी की हो पर महिला सुरक्षित रही हो यह सोचने पर भी याद नहीं आता हर रोज हमारे देश में हर रोज न्यूनतम 72 रेप की घटनाएं होती हैं उसमें उम्र नहीं देखी जाती है फिर वह 3 साल की बच्ची हो या 90 साल की बूढ़ी औरत बस इसमें एक ही चीज कॉमन होती है कि वह एक महिला है………

क्या आप सबको नहीं लगता कि महिला सुरक्षा शायद कलयुग में एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह बना हुआ है जिस तरह हम विद्यालयों में छोटी बच्चियों को लगभग 7 से 8 सब्जेक्ट पढ़ाते हैं उसी प्रकार बचपन से उन्हें उनकी सुरक्षा उनकी संवेदनशीलता और वह कैसे अपना गरिमा कौन जीवन जी है इसकी ट्रेनिंग क्यों नहीं दे देते……….. क्यों हमेशा महिलाओं को अपनी सुरक्षा के लिए अपने भाई अपने पिता और अपने पति और बेटे की तरफ असहाय और डेनी निगाहों से देखना पड़ता है।
यदि एक महिला एक परिवार की निर्माण करता हो सकती है तो फिर वह खुद अपने आत्मबल को इतना मजबूत क्यों नहीं कर पाती हम और आप मिलकर हमारी सरकारें मिलकर ऐसी योजनाएं क्यों नहीं बनाती की महिला सिर्फ कागजों में सिर्फ 180 दिन के लिए स्वाबलंबन ना बने ताउम्र उसे इस बात का घर हो सके एक सभ्य समाज में रहती है उसे वासना के भेड़ियों द्वारा नहीं जाएगा उसे बेटी होने का दही जलाकर कहीं गला रेतकर तो कहीं गले की हड्डी तोड़ नहीं दी जाएगी।
सत्ता के गलियारों में बैठी हुई राजनीतिक पार्टियों को सदन में तथा उन सभी संस्थाओं में जहां महिलाओं संबंधी कानून बनाने और समाज में अपना हक लेने खुद को गौरवान्वित महसूस करने का मौका मिल सके महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाना चाहिए क्यों संसद में महिला संबंधित आजादी के 73 साल बाद भी पास नहीं हो पा रहा…….. माना आज गिनती की कुछ महिलाएं हमें संसद विधान परिषद गांव की पंचायतों पुलिस प्रशासन तथा शिक्षा के क्षेत्र में दी जाती हैं पर क्या यह समुचित प्रतिनिधित्व है???

सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों में क्या हम महिलाओं को समानता स्वतंत्रता और गौरव पूर्ण जीवन जीने का अधिकार वाकई में देना चाहते हैं यदि हां तो फिर अपराधियों को टिकट देना बंद करना होगा विशेष तौर पर जो महिला संबंधी अपराध में लंबित अपराधी हैं क्योंकि कहीं ना कहीं सरकार ऐसे अपराधियों को टिकट देकर एक नए रेप होने को प्रश्रय देती है।

वाकई महिला सुरक्षा वह सम्मान भीख में नहीं दिया जा सकता इसके लिए जरूरी है कि हम सब नैतिक रूप से सबल बने हमारे समाज में वासना के लगे हुए चश्मा को निकालने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।

और यदि समाज ऐसे अपराधियों को वास्तव में चुनकर बाहर निकालता है तो चौराहे पर फांसी देने की छूट भी उसी समाज को सरकारों को देनी चाहिए।

शक्ति स्वरूपा ,प्रकृति की जननी नारी सम्मान और सुरक्षा के लिए हम सब अपने मन में संकल्प लेकर जगत जननी मां से प्रार्थना करें कि हमारा देश और हम महिला को इसी रूप में सम्मान दे पाएंगे और 180 दिन बाद महिलाएं सुरक्षित हो जाएंगी।

रीना त्रिपाठी

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Reena Tripathi

(Reporter)

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