जून,2013 में जब नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय राजनीति में दाखिल हुए थे-तब विपक्ष की हर कमजोरी पर करारा वार करने की उनमें आक्रामकता थी,समाज के हर वर्ग के लिए उनके पास ‘अच्छे दिन’का वादा था, देवराज इन्द्र की तरह जुमलों की बारिश करने में सक्षम थे,अंबानी और अडाणी जैसे मित्रों की पूंजी थी, मीडिया प्रबंधन से सौदेबाजी कर लेने की कुशलता थी,इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने में अप-संस्कृति फैलाने वाली आरएसएस की फौज थी,दो-दो रूपया पाकर ट्विटर,फेसबुक, व्हाट्स ऐप के माध्यम से संस्कारहीन गालियां बकने वाले बेरोजगारों की फौज थी,हर घटना को स्वयं अपने पक्षमें भुनाने का वाक्-चातुर्य था,उम्र के छः दशक पूरा कर लेने के बाद भी वह ऊर्जावान शख्सियत थे।
सार्वजनिक राजनीति में एक शून्यता थी-सवा सौ साल पुराना राजनैतिक संगठन होने का दावा करने वाली पार्टी-कांग्रेस-का नेतृत्व ऐसे लोगों के पास था और आज भी है,जिनके लिए पार्टी उनकी जागीर है।जिन्हें इस देश की कौन कहे,अपनी पार्टी की कौन कहे अपने परिवार के संस्कार और उसूलों की मुकम्मल जानकारी है,ऐसा नहीं दिखता।इस नेतृत्व को अपने व्यक्तिगत, पारिवारिक, सांगठनिक, सार्वजनिक विरासत को सहेजने,संवारने,पुष्पित,पल्लवि त,परिमार्जित, परिष्कृत,संवर्द्धित करने के प्रति कोई निष्ठा और समर्पण नहीं दिखता।कांग्रेस के अतिरिक्त अखिल भारतीय उपस्थिति और अहमियत रखने वाला कोई राजनैतिक संगठन नहीं था।अलग-अलग प्रदेशों में क्षेत्रीय राजनैतिक दल जरूर थे और हैं,लेकिन इनमें किसी के पास भी कोई अखिल भारतीय विजन और मिशन का अभाव था और आज भी है। कांग्रेस के अखिल भारतीय स्वरूप के प्रादेशिक संस्करण की तरह ये क्षेत्रीय दल क्षेत्रीय क्षत्रपों के वर्चस्व वाले, क्षेत्रीय आकांक्षाओं और अपेक्षाओं को भुनाने की नीयत से खड़े संगठन हैं।
इस सार्वजनिक शून्यता को नरेन्द्र मोदी ने अपनी गर्जनाओं और जुमलों से भर दिया। नरेन्द्र मोदी की ज्ञान, क्षमता, ऊर्जा, कौशल, योग्यता,दक्षता, निपुणता, विशेषज्ञता का आलम यह रहा कि बिना सोचे-समझे 8नवंबर,2016को अचानक नोटबंदी की घोषणा कर दी, राष्ट्रीय स्तर पर अफरातफरी मच गई-आम जनजीवन में ही नहीं वित्त व्यवस्था के प्रशासनिक हलकों में भी।भारतीय रिजर्व बैंक को 30दिनों में 50से ज्यादा बार अपने दिशा निर्देश बदलने पड़े।लगभग 150से ज्यादा लोग लाइन में खड़े-खड़े मर गए,लेकिन मोदी यह समझा पाने में कामयाब हो गए कि व्यापक राष्ट्रहित में इतनी कुर्बानी तो देनी ही पड़ेगी।नोटबंदी के बाद जीएसटी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को रसातल में पहुंचा दिया। लेकिन मोदी यह भ्रम फैलाने में कामयाब हो गए कि जीएसटी का उद्देश्य टैक्स चोरों पर नकेल कसना है और सरकारी राजस्व में श्रीवृद्धि है।2019के आम चुनाव के ठीक पहले पुलवामा कांड हो गया।मोदी यह समझाने में कामयाब हो गए कि भाजपा को वोट पुलवामा के शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि है।2019के आमचुनाव में मोदी और भाजपाको 2014के मुकाबले भी ज्यादा 303सीटें मिली।
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पंकज श्रीवास्तव
वरिष्ठ पत्रकार “रांची” झारखण्ड
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