राष्ट्रीय लाइफस्टाइल

“सोशल मीडिया का अमानवीयकरण” संगोष्ठी का हुआ आयोजन

Written by Reena Tripathi

समाज और व्यक्तिगत जीवन मे सोशल मीडिया के प्रभावों पर हुई व्यापक चर्चा

सामाजिक दर्पण सोशल मिरर फाउंडेशन ग्वालियर मध्यप्रदेश से संचालित है निरंतर सामाजिक मुद्दों पर आयोजनों के अंतर्गत सोशल मीडिया के अमानवीयकरण विषय पर लाइव संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में सामाजिक मुद्दों से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार विकास त्रिपाठी ,शिक्षिका मृदुल मौर्य ,महिला पत्रकारिता से जुड़ी वरिष्ठ पत्रकार ममता सिंह, भारतीय नागरिक परिषद के महामंत्री रीना त्रिपाठी तथा पटल की संस्थापिका एवं संचालिका शिक्षिका एवम कई सामाजिक जागरूकता मंच से जुड़ी हुई शकुन्तला तोमर ने प्रतिभाग किया।

जैसा की सर्वविदित है बदलते परिवेश में मोबाइल सोशल मीडिया की महती भूमिका है और समय के साथ सोशल मीडिया के दुरुपयोग या मर्यादा हनन के केस अक्सर देखने को मिलते हैं। वर्तमान रफ्तार के युग में सोशल मीडिया का एक चेहरा अमानवीय भी हो रहा है।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए रीना त्रिपाठी ने बताया कि इंटरनेट एक वर्चुअल वर्ड है, जिसमे सोशल मीडिया एक विशाल नेटवर्क विभिन्न वेबसाइटों का समूह होने के कारण अक्सर हमें कुछ अप्रत्याशित तस्वीरें वीडियो देखने को मिल जाते हैं जिनकी वर्तमान में कोई प्रासंगिकता नहीं है, जिन्हें देखकर मन विचलित होता है जिन्हें पढ़कर और सुनकर भावनाएं आहत होती हैं फिर भी कड़े नियम कानून ना होने के कारण, सोशल मीडिया पर इस तरह की पोस्ट है अक्सर देखने को मिलती हैं।

वरिष्ठ पत्रकार ममता सिंह ने सोशल मीडिया के मानवीयकरण का एक चेहरा लव जिहाद के रूप में सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वाले लड़के लड़कियों द्वारा अक्सर एक दूसरे को ठगी का शिकार बनाने के मामलों को संज्ञा नित कराते हुए कहा कि कड़े कानून क्रियान्वित होने चाहिए जिससे कि फेक आईडी से लोग भावनाओं को आहत ना करें। परिवार में संयुक्त परिवार की अवधारणा को ध्यान में रखते हुए एक दूसरे के साथ बैठकर खानपान और बातचीत का सिलसिला पुनः शुरू किया जाना चाहिए ताकि मोबाइल से बढ़ती नजदीकियां कुछ कम हो सके। आने वाली पीढ़ी को कुछ अच्छे परिवारिक संस्कार मिल सके।

संगोष्ठी में विकास त्रिपाठी ने बताया कि वर्तमान परिवेश में सोशल मीडिया का अच्छा पहलू यदि हमें विभिन्न रूपों में मिलता है विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपने हितों को साधने के लिए सोशल मीडिया का बहुत ही अच्छा उपयोग किया है परंतु ज्यादा सोशल मीडिया को समय देने के कारण आपसी संबंधों में दूरियां आ गई हैं बच्चे ज्यादा से ज्यादा समय मोबाइल और इंटरनेट को दे रहे हैं और इन सब में महती भूमिका अभिभावकों की रहती है।

सोशल मीडिया के अमानवीयकरण और बच्चों में एडवेंचरस फोटो खींचने की परंपरा क्या उचित है ???सोशल मीडिया का युवाओं पर विशेषकर किशोरावस्था में पहुंचे हुए बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है ?इस प्रश्न का उत्तर देते हुए शिक्षिका मृदुल मौर्य ने बताया कि बच्चों के कोमल मन और मस्तिष्क पर सोशल मीडिया के अमानवीयकरण का बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ रहा है। बच्चे टेक्नोलॉजी के दबाव में आ रहे हैं कोरोना काल में ऑनलाइन क्लास होने की वजह से बच्चे ज्यादा से ज्यादा समय मोबाइल को दे रहे हैं जिसके कारण उनकी एकाग्रता में कमी आ रही है। फिजिकल एक्सरसाइज कम हो रही है। और इन सब का प्रभाव बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर निश्चित रूप से नकारात्मक ही पड़ रहा है।

लाइव संगोष्ठी के इस पेज में जुड़े हुए डॉक्टर कन्हैयालाल ने बताया कि आज के दौर में युवक और बच्चे हमारी संस्कृति शास्त्र और महापुरुषों के द्वारा रचित साहित्य को पढ़ने में समय नहीं दे रहे हैं और सारा ज्ञान व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी से ही लेना चाहते हैं जिससे पठन-पाठन की प्रक्रिया कमजोर पड़ रही है।

शकुन्तला तोमर ने बताया कि आज समय आ गया है कि हम लोग सोशल मीडिया के दुष्प्रभाव सोशल मीडिया के अमानवीय चेहरे के बारे में समाज को जागरूक करें। उन्होंने इस ओर इंगित किया कि कोरोना महामारी के पहले लगभग दो महीने तक मानव अधिकार प्रोटेक्शन की तरफ से एक मुहिम चलाई गई थी आदरणीय प्रदेश अध्यक्ष राजेंद्र झा जी एवं शकुन्तला तोमर जी एवं जिले की टीम द्वारा प्रतिदिन 2 से 3 घण्टे प्रत्येक वार्ड में हर आयुवर्ग को समाज आस-पड़ोस के लोगों को सोशल मीडिया के मानवीय चेहरे के प्रति जागरूक करना था और इस मुहिम को काफी हद तक सफलता भी मिली। आज बहुत ही गंभीर प्रश्न है कि बच्चों को सोशल मीडिया से दूर किया जाए? हम एक दूसरे को ज्यादा से ज्यादा समय दे, गलतियां किस स्तर पर हो रहे हैं इस पर ध्यान दिया जाए।

शकुंतला तोमर ने बताया कि माना कि कोरोना काल में सोशल मीडिया का सकारात्मक उपयोग किया गया है ,रिश्तो को मजबूत रखने में सोशल मीडिया ने महती भूमिका निभाई तथा सोशल मीडिया का महत्वपूर्ण साधन के रूप में उपयोग किया गया यदि हम सोशल मीडिया का सकारात्मक उपयोग करें तो सामाजिक भलाई भी की जा सकती है पर कभी-कभी सामाजिक भलाई के नाम पर लोग किसी बच्चे के गुमशुदगी की तस्वीर या किसी मृत हुए शरीर की तस्वीर डालकर उस पर लाइक और कमेंट की अपेक्षा करते हैं जो निश्चित रूप से दुखद है।

ममता सिंह ने बताया कि मीडिया वर्ग से जुड़े होने के कारण हमने कई बार देखा है कि किसी दुर्घटना की स्थिति में लोग वहां खड़े होकर अमान वीरता पूर्वक वीडियो बनाते हैं जोकि दुर्घटना से प्रभावित हो रहा है उसकी किसी प्रकार की मदद नहीं करते मंच के माध्यम से अनुरोध किया कि विषम परिस्थिति में यदि कोई दिख जाए तो उसकी मदद करें ना कि वहां खड़े होकर वीडियो बनाएं। समय पर की गई मदद थी कितने निर्दोष लोगों की जान बचा सकती है।

संगोष्ठी में बात निकल कर आई की आज साइबर क्राइम नवयुवकों को भावनात्मक अपराध करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है एडवेंचरस फोटो डालने के चक्कर में कितने ही युवक और युवतियां हादसे के शिकार हो जा रहे हैं ।भावात्मक और फोटो आईडी जोकि फेक हो सकते हैं कि बने हुए खाते बच्चे और युवकों को गुमराह करने तथा नशे की तरफ ले जाने के लिए काफी होते हैं इन सब से निजात दिलाने का एक ही तरीका है कि अभिभावकों को चाहिए कि वह अपने बच्चों को हिंदुस्तान से बचाने के लिए अपना निगरानी तंत्र मजबूत करें।

रीना त्रिपाठी ने बताया कि इंटरनेट से जानकारी प्राप्त करें ना कि अपनी पर्सनल जानकारियों को इंटरनेट के माध्यम से साझा करें क्योंकि आपके द्वारा की गई साझा जानकारियों का दुरुपयोग कभी भी कोई कर सकता है इंटरनेट निश्चित रूप से एक वरदान का युग है परंतु नासमझी और नियमों की जानकारी के बिना यह अभिशाप भी बन सकता है।

संगोष्ठी में निष्कर्ष अतः शकुन्तला तोमर जी ने अपने विचार रखते हुए कहा कि आज जहां सामाजिक मजबूरियों की वजह से न्यूक्लियर फैमिली बढ़ने का प्रचलन जोरों पर है फिर भी हमें कोशिश करनी चाहिए कि हम अपने क्वालिटी टाइम को बच्चों के साथ स्पेंड करें परिवार के साथ बैठे हैं अपनी खुशियों को अपनों के साथ साझा करें फेसबुक इंस्टाग्राम और ट्विटर का साथ कम दें तथा अपने युवाओं और बच्चों को आवाज स्विग्गी वन शैली जो कि इंटरनेट के द्वारा दी गई है जिसमें खुशी और गम दिन और रात के सभी मूवमेंट को युवा इंटरनेट में साझा कर रहे हैं से निकालते हुए ऑनलाइन धोखाधड़ी से बचाते हुए नींद की कमजोर व्यक्तित्व तथा डिप्रेशन के शिकार होने से बचाने का प्रयास करें।

अंत में विकास त्रिपाठी, एडीटर इन चीफ ने बताया कि
संस्कृति क्या है जहां तक मैं समझता हूं सम्बन्धो का ताना बाना है जिनको हम निभाते चले आ रहे है और आज के इस भागमभाग जिंदगी में हम इसी ताने बाने को अपनी भावी पीढ़ी को देने में असफल सिद्ध हो रहे है।और बच्चे भी संचार क्रांति के नित नए आयामो के साथ इस दौर में इन सबसे दूर होते जा रहे है। कई बार ऐसे दुखद और विध्वंसक दृश्यों को परोस दिया जाता है जिन्हें देखकर आत्मा दुखी और मन विचलित हो जाता है फिर भी अपेक्षा की जाती है कि उन पर लाइक और कमेंट किए जाएं क्या यह उचित है??

इसलिए नीति नियंताओ के साथ ही हम सभी की ये जिम्मेदारी है अपनी भावी पीढ़ी को भारतीय संस्कृति से परिचित कराये और सावधानी पूर्वक शोसल मीडिया का निगरानी में एक्सेस करने दे।

सोशल मीडिया की अमानवीयता इसी बात से दर्शाती जा सकती है कि यदि कोई धोखे का शिकार होता है तो वह अपना मन और मस्तिष्क दुख के सागर में डुबो देता है जो हैकिंग का शिकार होता है वह अपना आर्थिक नुकसान कर बैठता है और जो इसके लत के शिकार हो जाते हैं वह अपना समय तो बर्बाद करते हैं कई बार अनजान मौतों के कारण भी बनते हैं। फिर भी इस प्रकार भी क्षति का खामियाजा कोई भी प्लेटफार्म उठाने को तैयार नहीं।

भारतीय नागरिक परिषद के महामंत्री रीना त्रिपाठी ने कहा कि सरल, आसानी से उपलब्ध, सभी सीमाओं को तोड़ता हुआ, सामाजिक जुड़ाव को बढ़ाने का सस्ता तरीका तो सोशल मीडिया हो सकता है परंतु हमें यदि किसी भी कारण से सोशल मीडिया के द्वारा मानहानि, भेजी गई तस्वीरों का दुरुपयोग, महिलाओं की फोटो का गलत साइटों द्वारा इस्तेमाल किया जाना, डिजिटल डॉक्यूमेंट से छेड़खानी या ऑनलाइन आईटी की चोरी, हैकिंग इत्यादि या किसी ऐसी तस्वीर या वीडियो जो कि अशांति फैलाने के लिए काफी है से बचने के लिए जरूरी है कि इनसे जुड़े हुए कानूनों को जाने भारतीय दंड संहिता 1870 के उन सभी प्रावधानों को हमारा युवा हमारे सोशल मीडिया से जुड़े हुए यूजर्स जाने ताकि उनका दुरुपयोग ना हो सके।

तो भारतीय सभ्यता और संस्कृति को बनाए रखने के लिए बच्चों को मानसिक शारीरिक वेदना से बचाने के लिए युवाओं का समय सही दिशा में लगाने के लिए आवश्यक है कि सोशल मीडिया का ज्यादा से ज्यादा सदुपयोग किया जाए …..पर कम समय में। प्रकृति परिवार और समाज से जुड़कर ही हम देश और काल की उन्नति कर सकते हैं और अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य का सपना साकार कर सकते हैं आइए मिलकर सोशल मीडिया के मानवीय चेहरे को दूर करने का प्रयास करें।

सामाजिक दर्पण सोशल मिरर की संस्थापिका शकुन्तला तोमर ने पटल पर उपस्थित सभी श्रोताओं को विद्वानों को साहित्यकारों को सभी सहभागिता करने वाले साहित्यकारों अतिथियों की उपस्थिति को कोटि कोटि नमन एवं आभार व्यक्त किया।

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Reena Tripathi

(Reporter)

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