धर्म राष्ट्रीय

गणेश स्थापना पश्चात गणेश जी के विसर्जन की कथा, बता रहे ज्योतिषाचार्य अतुल शास्त्री

Written by Vaarta Desk

हिंदू पंचांग में भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी अत्यंत ही महत्वपूर्ण और शुभ तिथियों में से एक है क्योंकि इस दिन गणेश चतुर्थी के रूप में मनाई जाती है। यह गणेश उत्सव 10 दिनों तक चलता है, जिसकी तैयारियां काफी दिन पहले से ही आरंभ हो जाती है। लगभग दस दिनों तक चलने वाले इस पर्व का समापन अनंत चतुर्दशी के दिन होता है।

भादो माह की गणेश चतुर्थी संपूर्ण भारत वर्ष में श्रद्धा एवं भक्ति के साथ मनाई जाती है। सामान्यतः: प्रत्येक माह में आने वाली शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है, लेकिन भाद्रपद माह में भगवान श्री गणेश के जन्म को चतुर्थी तिथि से संबंधित माना गया है। साथ ही इसे महाभारत ग्रंथ की उत्पति के साथ भी जोड़ा गया है, जिसे श्री वेद व्यास जी ने भगवान श्री गणेश जी की सहायता से पूर्ण किया था। कथा के अनुसार, जब महर्षि वेदव्यास महाभारत की रचना का विचार करते हैं, तो वह गणेश जी का आह्वान करते हैं और उनके इस ग्रंथ के पूर्ण करने हेतु सहायता मांगते हैं। गणेश जी ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और उनका साथ देने के लिए तैयार हो गए। यह एक लम्बी प्रक्रिया थी जिसमें काफी समय भी लगा था। इसी कारणवश वेद व्यास जी गणेश की थकान को दूर करने के लिए उन पर मिट्टी का लेप लगा कर और उनके देह को शीतल बनाए रखने की कोशिश की थी। ग्रंथ के पूर्ण होने में दस दिनों का समय लगा था। वह दसवें दिन चतुर्थी के दिन से आरंभ होकर चतुर्दशी के दिन समाप्त हुआ था।

मान्यता है कि श्री वेद व्यास जि द्वारा मिट्टी का लेप लगा कर और गणेश जी की देह को शीतल बनाए रखने के अंतिम दिन श्री वेद व्यास जी ने गणेश जी के शरीर को जल से साफ किया और उन्हें शीतलता प्रदान की। कहा जाता है इन दस दिनों तक वेदव्यास जी ने गणेश भगवान की विभिन्न प्रकार से सेवा आराधना की। यही वजह है कि चतुर्थी के दिन भगवान श्री गणपति जी को स्थापित करने की परंपरा चली आ रही है और चतुर्दशी के दिन गणेश जी को जल में विसर्जित कर दिया जाता है। पौराणिक कथाओं एवं मान्यताओं के आधार पर अब यह परंपरा इस आधुनिक दुनिया में भी मौजूद है। इस पर्व को भले ही अब एक नए रूप में मनाया जाता हो लेकिन उसका भाव आज भी वही है।

गणपति विसर्जन को कई प्रतीकात्मक स्वरूप से जोड़कर देखा जाता है। दर्शन शास्त्र इसे जीव और जगत के मध्य होने वाले चक्र के रूप में स्थापित करता है और इसी के साथ प्रकृति और सृष्टि के मध्य भेद की समाप्ति का स्वरूप भी इसी में झलकता है। इस सृष्टि में उत्पन्न सभी पदार्थों का मिलन प्रकृति के साथ होता है, एवं एक निश्चित समय अवधि पश्चात सभी कुछ उसी में विलीन हो जाता है। ऐसे अनेकों विचार गणपति विसर्जन द्वारा स्वत: अनुभूति में झलक पड़ते हैं और इन सभी का अर्थ शांति एवं स्थिरता को दर्शाने वाला होता है।

About the author

Vaarta Desk

aplikasitogel.xyz hasiltogel.xyz paitogel.xyz
%d bloggers like this: