यह बात तो सर्व विदित है कि भगवान श्री गणेश जी ने ही सुप्रसिद्ध महाभारत काव्य की रचना स्वयं अपने हाथों से की थी. यही वजह है कि विद्या के साथ साथ उन्हें लेखन कार्य का भी अधिपति माना गया है. ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री जी का तो कहना है श्री गणेश जी को पौराणिक लेखक कहें तो गलत नहीं होगा. ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री जी कहते हैं, ”दरअसल श्री गणेश जी ब्रह्माण्ड के प्रथम लेखक हैं क्योंकि महर्षि वेदव्यास जी की छत्रछाया में विशाल काव्य महाभारत का लेखन श्री गणेश जी ने ही किया था. उनका चित्त सदैव स्थिर और शांत रहता है. कैसी भी परिस्थिति हो वे अपना धैर्य नहीं खोते हैं और शांत भाव से अपने कार्य को करते रहते हैं. भगवान श्री गणेश जी की इसी खूबी के चलते महर्षि वेद व्यास उनसे अति प्रभावित थे. जब महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना करने का मन बनाया तो उन्हें महाभारत जैसे महाकाव्य के लिए एक ऐसे लेखक की तलाश थी जो उनके कथन और विचारों को बिना बाधित किए लेखन कार्य करता रहे क्योंकि बाधा आने पर विचारों की सतत प्रक्रिया प्रभावित हो सकती थी.
महर्षि वेद व्यास ने सभी देवी देवताओं की क्षमताओं का अध्ययन किया लेकिन वे संतुष्ट नहीं हुए, तब उन्हें भगवान गणेश जी का ध्यान आया. महर्षि वेद व्यास ने गणेशजी से संपर्क किया और महाकाव्य लिखने का आग्रह किया. भगवान श्री गणेश जी ने वेद व्यास जी के आग्रह को स्वीकार कर लिया लेकिन एक शर्त उनके सम्मुख रख दी. शर्त के अनुसार काव्य का आरंभ करने के बाद एक भी क्षण कथा कहते हुए रूकना नहीं है. यदि ऐसा हुआ तो वे वहीं लेखन कार्य को रोक देंगे. श्री गणेश जी की बात को महर्षि वेद व्यास ने स्वीकार कर लिया, लेकिन उन्होनें भी एक शर्त श्री गणेश जी के सामने रख दी कि बिना अर्थ समझे वे कुछ नहीं लिखेंगे. इसका अर्थ यह था कि गणेश जी को प्रत्येक वचन को समझने के बाद ही लिखना होगा. श्री गणेश जी ने महर्षि वेद व्यास की इस शर्त को स्वीकार कर लिया. इसके बाद महाभारत महाकाव्य की रचना आरंभ हुई. कहा जाता है कि महाभारत के लेखन कार्य पूर्ण होने में तीन वर्ष का समय लगा था. इन तीन वर्षों में श्री गणेश जी ने एक बार भी महर्षि वेद व्यास जी को एक पल के लिए भी नहीं रोका और महर्षि वेद व्यास जी ने बिना किसी बाधा के तीन वर्ष में महाभारत काव्य पूर्ण किया.