ज़िंदगी पिछले दो वर्षों के शुरुआत और मध्यांन में जिन विकट परिस्थितियों से गुजरी वह किसी से भी अनभिज्ञ और अछूती नहीं रहीं । हर्जाना ही हर्जाना, आम इंसान को भरना पड़ा । कभी अपनों को खोकर, तो कभी लॉकडाउन के दौरान पलायन, छोटे- मोटे व्यवसायों का बंद होना, भुखमरी, जान बचाने को ऑक्सिजन सिलेंडर, दवाइयों की कालाबाज़ारी और न जाने क्या-क्या ऐसी घटनाएँ घटी कि जनमानस की आत्मा काँप उठी ।
आर्थिक ढाँचा ऐसा चरमराया कई परिवारों का कि उसका शिकार कितने ही मासूम बच्चे बने । दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए जद्दोजहत होती रही । माता-पिता की विषम परिस्थिति का सीधा असर बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर पड़ा। फ़ीस समय पर न भर पाने के कारण वे कई-कई दिन अपनी कक्षा में नहीं जा सके और इन सबसे एक परिवार को किस मानसिक पीड़ा,प्रताड़ना का अनुभव हुआ होगा यदि आप ये कल्पना मात्र भी कर लें तो रूह छटपटा जाएगी।
नन्ही मुस्कान इतनी बेबस कभी न थी जितनी कि करोना काल में हुई ।
हर तरह का तांडव हुआ धरा पर ! जीवन में क्या अर्थ,क्या मौत ! सम्पूर्ण मानव जाति ने एक बहुत बड़ा भुगतान किया अपने कर्मों का, प्रकृति की छबि को धूमिल करने का ।
थोड़ा सा ज़िंदगी पर की गई प्रार्थनाओं का असर शुरू हुआ ही था, थोड़ा सा लाचार हुए लोग अपने काम से दुबारा संभलने का प्रयास कर ही रहे थे और खुद को एक आस से फिर जीवित कर रहे थे कि करोना की तीसरी लहर ने अब अपना ज़ोर पकड़ लिया है । जिन्होंने खो दिए हैं बेटे, बहन-भाई, किसी नन्हे ने अपनी माँ-पिता और न जाने कितने ही अपने अनमोल रिश्ते !!!
वे भीतर से डरे-सहमे हैं कि सचमुच ज़िंदगी को कहाँ से शुरू करें ?
कहाँ से जुटाएँ इतनी हिम्मत खुद में पुनः “लॉकडाउन से लोक-डाउन देखने की !!”
लोगों ने कितना भी खुद को अपने कार्यक्षेत्र में ऑनलाइन व्यस्त किया,ख़ुशी से या मजबूरी से किंतु, ज्यों परिंदे के पर कटने पर उसको दर्द महसूस होता है कुछ वैसा अनुभव समा गया है भीतर । बच्चों का शारीरिक विकास बेतहाशा अवरुद्ध हुआ है । दिन-रैन मोबाइल,कम्प्यूटर, लैप्टॉप ही पढ़ते-पढ़ाते खेलने के साथी बन गए हैं । बढ़ती उम्र के कई बच्चे स्कूल पूरा पासआउट हो गए, कॉलेज वाले कई कॉलेज पासआउट हो गए । बड़ी-बड़ी नौकरी वालों को ऑनलाइन / ऑफ़्लाइन काम करने की बढ़िया व्यवस्था है पर वे भी इस विपदा से अछूते नहीं रहे ।
बड़े ऊँचे दर्जे के व्यापारियों के घरों पर लॉकडाउन से नफ़ा-नुक़सान का उतना असर नहीं आता,किंतु मारे गए थे मध्यम वर्ग के वे लोग जिनका काम-धंधा सामान्य स्तर का होता है, या नौकरी अस्थायी होती हैं या कम तनख़्वाह वाले निम्नवर्गीय लोग जो डेली वेज़िस पर कमाते खाते हैं ।
नव वर्ष की शुरुआत से पहले ही करोना के नए वेरियेंट के कारण स्थिति सामान्य नहीं रही है । दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों की तो बड़ी तीव्रता से स्थिति बिगड़ती है नाइट कर्फ़्यू के बावजूद अब रोज़ बढ़ते करोना केस ऐसे हालात न पैदा कर दें कि नववर्ष में जहां एक नई उम्मीद,नई शुरुआत का वक्त होता है वहीं लॉकडाउन से लोक-डाउन हो जाए और जग किसी तिमिर में न समाए।
बस दुआएँ, नेकी और हौंसला अफ़्ज़ाई यही अस्त्र-शस्त्र हैं हमारे पास जिनका उपयोग खुलकर कीजिए ।
भावना अरोड़ा ‘मिलन’