पर्यावरण संतुलन और आम जनजीवन पर डालता है अनोखा प्रभावित
“नौतपा” इस शब्द से पर्यावरण विद और ज्योतिष से जुड़े लोग तो भलीभांति परिचित होंगे लेकिन आम जन इससे ज्यादातर अपरिचित ही होगा, तो आइये आज हम आपको बता रहे हैं इस शब्द की महिमा।
ग्रीष्म ऋतू का एक पखवाडा ऐसा होता है जिसे नौतपा के नाम से जाना जाता है, इस पक्षवाड़े में कुछ ऐसी स्थितियां बनती है जो पर्यावरण संतुलन के साथ आम जन जीवन पर भी गहरा असर डालती हैं। अगर इस शब्द के महत्त्व को दो शब्दों में समझना हो तो विख्यात लोक पर्यावरण विद दीप सिंह भाटी के “दो मूसा, दो कातरा, दो कीड़ी, दो ताव। दो की यादी जल हरै, दो बिस्वर दो चाय।। को समझना होगा।
श्री भाटी कहते है की नौतपा के पहले दो दिन यदि लू न चले तो चूहों की संख्या बहुत बढ़ जाएगी। अगले दो दिन लू न चली तो फसलों लो हानि पहुंचाने वाले कीड़े “कातरा” समाप्त नहीं होंगे। तीसरे दिन से फोन दिन लू न चली तो टिड्डियों के अंडे समाप्त नहीं होंगे। चौथे दिन से दो दिन यदि भयंकर गर्मी नहीं पड़ी तो बुखार के विशाणु नष्ट नहीं होंगे। इसके बाद के दो दिन यदि प्रचंड गर्मी नहीं पड़ी तो “विषवर” यानी विषैले जंतु अनियंत्रित हो जायेंगे। और अंतिम के दो दिन भी यदि लू नहीं चली तो आंधियों की संख्या बढ़ जाएगी जो फसलों को हानि पहुंचाएंगी।
श्री भाटी के दो लाइनों के इन अर्थो से आप समझ गए होंगे की नौतपा हमारे जीवन में कितना महत्त्व रखता हैं। आपको बता दें की इस वर्ष ये नौतपा 25 मई से आरम्भ हो गया है, गर्मी तो अपने प्रचंड पर है लेकिन देश के बहुत से क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ लू नहीं चली है तो आप अनुमान लगा सकते है इस वर्ष किन मुश्किलों का सामना करना पर सकता है।