उत्तर प्रदेश गोंडा लाइफस्टाइल स्वास्थ्य

दो वर्ष बाद भी सी टी स्कैन की सुविधा मिलने के नहीं आसार, परमीशन परमीशन का खेल खेल रहा प्रशासन

निजी जाँच केंद्रों से मिलीभगत से नहीं किया जा सकता इंकार 

करोड़ों की मशीन के कबाड़ होने की बन रही स्थिति 

गोण्डा। आगामी माह जिला चिकित्सालय की सी टी स्कैन मशीन के ख़राब होने की द्वितीय वर्षगांठ प्रशासन मनाएगा और इसी तरह जो सुविधा रोगियों को सैकड़ो में उपलब्ध होती थी उसके लिए हज़ारों खर्च करने को विवश रोगी भी शोक मनाएंगे, खास बात तो ये है की इन दो वर्षो में मशीन को ठीक कराने को लेकर प्रशासन पूरी तरह उदासीन होकर मात्र अपने और शासन के बीच परमिशन परमिशन का खेल ही खेलता दिखाई दिया है।

जी हाँ ये कहानी बाबू ईश्वर शरण जिला चिकित्सालय जो अब मेडिकल कालेज से सम्बद्ध हो चुका है को टाटा से दान में मिली सी टी स्कैन मशीन का है, जिले के गरीब रोगियों को नाम मात्र के शुल्क में सी टी स्कैन की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए टाटा ने वर्ष 2020 के अप्रैल माह में करोड़ों के कीमत की सी टी स्कैन मशीन मुफ्त में दान की थी।

हैरानी की बात तो ये है की मात्र तीन वर्ष में ही करोड़ों की मशीन इस कदर ख़राब ही गईं की वो अबतक नहीं सुधर पाई, जानकारों की माने तो मशीन 9 मार्च 2023 को ख़राब हुई, मशीन के देखरेख का जिम्मा साइरिक्स कंपनी को मिला हुआ था, जिसने मई 2023 में मशीन का निरिक्षण किया लेकिन उन्होंने किसी बड़ी खराबी की बात बता अपने हाथ खड़े कर दिए, तब अस्पताल प्रबंधन द्वारा मशीन की मूल कंपनी सीमेन्स से संपर्क किया गया जिन्होंने नवम्बर 2023 में मशीन का निरिक्षण किया और बताया की काफ़ी लम्बे समय तक मशीन का उपयोग न किये जाने से इसका मूल पार्टी एक्सरे ट्यूब पूरी तरह ख़राब हो गईं है।

मशीन की कंपनी सीमेन्स ने मशीन ठीक करने में आने वाले खर्च का पूरा लेखाजोखा बनाकर मेडिकल कालेज प्रशासन को उपलब्ध करा दिया लेकिन उसके बाद आज दो वर्ष के बाद भी मशीन के ठीक होने और गरीब रोगियों को राहत मिलने के आसार बिल्कुल भी नजर नहीं आ रहे हैं।

जैसा की अस्पताल या कहे मेडिकल कालेज की व्यवस्था चल रही है की जिन सामान्य जांचो की सुविधा अस्पताल में उपलब्ध है उनके लिए भी चिकित्सकों द्वारा रोगियों को निजी जाँच केंद्रों में जाने के लिए विवश किया जाता है तो सी टी स्कैन की जाँच तो महंगी है जिसके लिए एकनिजी जाँच केंद्र मोटा कमीशन भी उपलब्ध कराते है तो कहीं ऐसा तो नहीं की मोटी कमीशन के एवज में चिकित्सालय कर्मियों द्वारा जानबूझ कर मशीन को ख़राब किया गया हो और प्रबंधन द्वारा जानबूझकर मशीन के मरम्मत को टाला जा रहा हो।

यहाँ ध्यान देने वाली बात ये हैं की मार्च 2023 में बिगड़ी मशीन का निरिक्षण नवम्बर में किया गया अर्थात मात्र नौ माह बाद, जिसमे निरिक्षण कर्ता कंपनी सीमेन्स का कहना था की काफ़ी दिनों तक प्रयोग न होने के कारण मशीन ज्यादा ख़राब हो गईं, अब उसके बाद आज पूरे दो वर्ष होने को है तो संभवतः मशीन तो अबतक पूरी तरह कबाड़ हो चुकी होगी।

इस सम्बन्ध में ज़ब प्राचार्य मेडिकल कालेज धनंजय श्रीकांत कोटास्थाने से संपर्क किया गया तो उन्होंने बताया की मशीन के रिपेयर की फ़ाइल शासन में अनुमति मिलने का इंतजार कर रही है, मशीन के खराबी को दूर करने में लगभग 85 लाख रूपये का खर्च आना है, संभवतः आगामी 15 दिन में ये अनुमति मिल जाएगी।

उन्होंने ये भी बताया की सीमेन्स ने अपने निरिक्षण में रिपेयर की लागत 25 लाख बताई थी जिसके लिए उन्हें अनुमति दी गईं लेकिन ज़ब उनकी टीम मशीन ठीक करने पहुंची तो उन्होंने फिर से निरिक्षण कर बताया की मशीन की एक्सरे ट्यूब ख़राब है और रिपेयर की लागत को 85 लाख कर दिया। अब इस राशि के लिए शासन से पुनः अनुमति लेनी पड़ी, अनुमति मिली जिस आधार पर टेंडर जारी किया गया लेकिन टेंडर में किसी भी कंपनी के भाग न लेने से कार्य पूर्ण नहीं हो सका।

अब पुनः बिना टेंडर के कार्य कराने की अनुमति शासन से मांगी गईं है जिसकी फ़ाइल शासन में लंबित है और 15 दिन में अनुमति मिल जाने की सम्भावना है।

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राजेंद्र सिंह

राजेंद्र सिंह (सम्पादक)

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