बीएसएनएल न खडे किये अपने हाथ
नागालैंड। जहां भारत के कोने कोने में मोबाइल नेटवर्क का जाल फेल चुका है वहीं देश का एक ऐसा भी गांव है जहां आजादी के 70 वर्षो बाद भी एक अदद मोबाइल टावर नही लग पाया है, विडम्बना तो यह हे कि इस गांव को आजादी के महापुरूष नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और उनकी सेना को नौ दिनों तक शरण देने का गौरव प्राप्त है।
जी हां हम बात कर रहे हे नागालैंड के रूआजों की, इस गांव ने वर्ष 1944 में ब्रिटिश आर्मीै के साथ आजादी की जंग लड रहे आजाद हिन्द फौज और सूभाष बाबू को शरण दी थी, लगभग नौ दिनों तक यहां शरण लिये रहे सुभाष चन्द्र बोस को यहां के लोगो ंने अपनी उपज चावल सहित हर सम्भव सहयोग और सहायता दी थी।
हाल में ही वाराणसी की सुूभाष संस्था के पदाधिकारी तमल सान्याल ने मामला केा प्रधानमत्रंी कार्यालय के समक्ष रखा तो वहा से जो जानकारी मिली वह ओैर भी चैकाने वाली निकली वहां से बताया गया कि अभी बीएसएनएल के पास इतना पैसा नही है कि इस गावं में मोबाइल टावर की स्थापना की जा सके। यह भी बताया गया कि जब भी नागालैंड में 4जी की सुविधा दी जायेगी इस गावं पर भी विचार किया जायेगा।
तमल सान्याल के मुताबिक उनके पिछले वर्ष के इस गावं के दौरे में उन्हें इस गावं के सौ वर्ष की आयू पूरे कर चुके बपोसूयूवी स्वेरो ने अपनी पुरानी यादों को ताजा करते हुए बताया कि आजादी की लडाई के उस दौर में सुभाष बाबू ने इस गावं को अपना मुख्यालय बनाया था, वे इस गाव की पहाडियो के उचाइ्र्र के हिस्से पर अपनी बैठकें किया करते थे। नेताजी के साथ उनके हजारों सैनिक इसी गाव में रहते थे। नेताजी और उनकी फौज के लिए हमारे पास मात्र चावल होता था हमने उनकी और उनके हजारों सैनिकों का जब तक वे यहां रहे उन्हें चावल खिलाते रहे।
स्वेरो ंनंेे यह भी बताया कि जब सुभाष बाबू यहां से जाने लगे तो उन्होेेनें इस गावं को गोद लेने की बात कही थी तब से लेकर यह रूजाजो गावं उनकी प्रतीक्षा कर रहा है।
वही तमल सान्प्याल का कहना है कि आजादी के महानायक नेताजी सुभाष चन्दे बोस के यादों से जुडे इस गावं को जहां हैरिटेज सूची में डाला जाना चाहिए वही इस गांव की आज तक किसी ने भी सुध तक नहीं ली। इस गावं के लोगों को बातचीत करने के लिए दूसरे गांव का सहारा लेना पडता है