जयपुर। प्रतिदिन बदल रही जीवनशैली के साथ बीमारियेां का ग्राफ भी बढ़ता जा रहा है। खासतौर पर धुंआ रहित तंबाकू उत्पादों से हेाने वाले हैड नेक कैंसर का प्रकोप महामारी का रुप लेता जा रहा है। इसका मुख्य कारक चबाने वाला तंबाकू है, जिसके कारण 80 प्रतिशत मुंह, गले और सिर का कैंसर होता है। इसमें युवा अवस्था में होने वाली मौतों का मुख्य कारण भी मुंह व गले का कैंसर है। हालांकि पूरी दुनियंाभर में 27 जुलाई को वर्ल्ड हैड नेक कैंसर डे आज ही के दिन मनाया जा रहा है। कोरेाना काल में कैंसर रोग विशेषज्ञों ने एक बहुत ही चिंताजनक आशंका जताई है कि इन 80 प्रतिशत मौतों को रोका जा सकता है, इसके लिए सभी को जागरुक होना पड़ेगा। तभी हम युवा पीढ़ी को बचा पांएगे। इस पर यदि कोई हस्तक्षेप नहीं हुआ तेा इन मौतों में 80 प्रतिशत मौतें विकासशील देशों में होगी। विश्व सिर एवं गला कैंसर दिवस के अवसर पर लोगों से धुआरहित तंबाकू से दूर रहने की अपील करते हुए यह आशंका जताई और कहा कि कैंसर का मुख्य कारण तंबाकू सेवन है।
सवाई मान सिंह चिकित्सालय जयपुर के कान नाक गला विभाग आचार्य डा.पवन सिंघल ने बताया कि हैड नेक कैंसर के रेागियों की संख्या बढ़ रही है। इस समय जो लेाग अस्पताल में की ओपीडी में आ रहे है उनमें अधिक संख्या युवाअेंा की है। करीब 30 साल पहले तक 60 से 70 साल की उम्र में मुंह और गले का कैंसर होता था लेकिन अब यह उम्र कम होकर 20 से 45 साल तक पहुंच गई। वही आजकल 20 से 25 वर्ष के कम उम्र के युवाओं में मुंह व गले का कैंसर देखा जा रहा है। धुुंआरहित तंबाकू के सेवन से 80 प्रतिशत तक हैड नेक कैंसर हेाता है, जबकि इससे 50 प्रतिशत तक सभी तरह का कैंसर भी पूरे शरीर में होता है। जिसमें मुंह, होठों, जीभ, गाल, दांत, तालू, गले, भोजन नली, पेट इत्यादि अंगों मेें होने वाला कैंसर शामिल है। उन्होने बताया कि इस तरह के उत्पदों का सेवन करने से हार्ट अटैक, ब्रेन स्ट्रोक का खतरा भी बढ़ता है। हैड नेक कैंसर महिलाअेंा की अपेक्षा पुरुषेां में 3 से 4 गुणा तक अधिक हेाता है। इसका सबसे बड़ा कारण युवाओं में स्मोकिंग को फैशन व स्टाइल आइकान मानना है। मुंह के कैंसर के रोगियों की सर्वाधिक संख्या भारत में है, इसीलिए भारत को ओरल कैंसर की केपिटल कहा जाता है। खराब लाइफस्टाइल, कम जागरूकता के आभाव में देश में तेजी से कैंसर रोगियों की संख्या बढ़ी है। कैंसर के उपचार में नई क्रांति हुई है लेकिन इलाज महंगा है। समय रहते अगर इसकी पहचान की जाए तो इलाज संभव है।
राजस्थान में चबाने वाले तंबाकू उत्पादों का उपयेाग अधिक हेाता है, खासतौर पर बीकानेर, जोधपुर, बाड़मेर और श्रीगंगानगर इत्यादि जिलों में कैंसर सहित अन्य घातक बीमारियों से ग्रसित रोगियों की संख्या सर्वाधिक है। इसके अलावा हनुमानगढ़, चूरू, झुंझनुं, फलौदी, जैसलमेर, धौलपुर, भरतपुर, पोकरण, बालोतरा, टोंक, सवाईमाधोपुर, बहरोड़, पाली इत्यादि क्षेत्र में भी ओरल कैंसर रोगियों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है।
डा.पवन सिंघल ने बताया कि बढ़ते हैड नेक कैंसर रोग की रोकथाम के लिए ओरल कैंसर की नियमित स्क्रीनिंग, आम लेागों को इसके प्रति जागरुक करना जरुरी है। इसके अभाव में कैंसर रोग की देरी से पहचान, अपर्याप्त इलाज व अनुपयुक्त पुनर्वास सहित सुविधाओं का अभाव है।
धूम्ररहित तंबाकू से सेवन का सफर ले आता है आपरेशन टेबल तक
धूम्ररहित तंबाकू के उपयोग करने वालों का शुरुआती सफर उन्हे आनंदित करता है लेकिन समय के साथ इसका सेवन कष्टदायी बन जाता है। धीरे -धीरे इनका सेवन करने वालों को ये ऑपरेशन टेबल तक पहुंचा देता है। जोकि बेहद कटदायी होता है। इससे पूरा परिवार आर्थिक व सामाजिक रुप से संकट की स्थिति में आ जाता है। इस कारण धूम्ररहित तंबाकू (स्मोक लेस टोबेको) के उपयोगकर्ता धूम्रपान रहित उत्पादों के सरोगेट विज्ञापन के कारण छोड़ने की योजना बनाने वालों की संख्या कम है। पान मसाला के विज्ञापनों पर रोक लगे होने के बावजूद टीवी चैनलों, रेडियो, समाचार पत्रों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विज्ञापन दिखाए जा रहे हैं। विशेष रूप से बच्चे और युवा वर्ग इन विज्ञापनों का आसानी से शिकार हो जाते हैं और विज्ञापनों के लालच में इन उत्पादों को खरीदते भी हैं। पान मसाला और सुगंधित माउथ फ्रेशनर्स के लोकप्रिय ब्रांडों में सुपारी का उपयोग किया जाता है, जिसे केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा कार्सिनोजेनिक (कैंसर का कारण) के रूप में पुष्टि की गई है। इसलिए कैंसर को रोकने के लिए सरकारों को धूम्ररहित तंबाकू के प्रचलन पर अधिक निवारक रणनीति बनानी चाहिए। मौखिक कैंसर सिर और गले के कार्सिनोमस के प्रमुख कारकों में से एक है।
तंबाकू सेवन न करने की सलाह जरुरी
उन्होने बताया कि हमें चिकित्सक के रूप में यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई भी मरीज हमारे ओपीडी से तंबाकू का सेवन छोड़ने की सलाह के बिना नहीं जाए, चाहे वह धूम्र रहित तंबाकू का सेवन करता है या फिर वह धूम्रपान करता हो।
तंबाकू सेवन न करने की सलाह जरुरी
उन्होने बताया कि हमें चिकित्सक के रूप में यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई भी मरीज हमारे ओपीडी से तंबाकू का सेवन छोड़ने की सलाह के बिना नहीं जाए, चाहे वह धूम्र रहित तंबाकू का सेवन करता है या फिर वह धूम्रपान करता हो।
ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे (जीएटीएस) 2017 की रिपोर्ट के अनुसार स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं ने 48.8 पतिशत लोगों को धूम्रपान छोड़ने की सलाह दी है। इसकी तुलना में केवल 31.7 प्रतिशत लोगों को तंबाकू सेवन न करने की सलाह दी गई है। दोनों के बीच 17.1 प्रतिशत का अंतर है।इस दौरान देखा गया है कि भले ही समस्या धूम्रपान रहित या चबाने वाली तम्बाकू के कारण हो, लेकिन धूम्र रहित तंबाकू के सेवन पर ध्यान केंद्रित करने की बजाय पर अधिक ध्यान धूम्रपान पर दिया जाता है। गैर-संचारी रोग (एनसीडी) के खिलाफ अभियान चलाने वाली राज्य सरकारों के स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को सभी तरह के तंबाकू उपयोगकर्ताओं को तंबाकू छोड़ने की सलाह देनी चाहिए।
हर तीसरा व्यस्क भारतीय गंभीर बीमारी से ग्रसित
सुखम फाउंडेशन के ट्रस्टी गुरजंट धालीवाल बतातें है कि हर तीसरा वयस्क भारतीय एक गंभीर बीमारी से जूझ रहा है। तंबाकू अकेला ऐसा वैध उत्पाद है जिसे यदि इसके विनिर्माता की सिफारिश के मुताबिक इस्तेमाल किया जाए तो आधे उपयोगकर्ता की मौत हो जाती है। जीवन के लिए संकल्प- तंबाकू मुक्त युवा जैसे अभियानों में शुरुआत में ही इसे रोकने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है और जहां तंबाकू सेवन त्यागने वाले इस देश के लिए रोल मॉडल के तौर पर व्यापक प्रभाव डालते हैं। इसे जन स्वास्थ्य के कई अन्य कारणों के लिए दोहराया जा सकता है। जहां उद्योग युवाओं को आकर्षित करने पर ध्यान देता है, सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में इसकी रोकथाम पर काम होना चाहिए। हमारे युवाओं की रक्षा के लिए यही एकमात्र उपाय है।
सुखम फाउंडेशन के ट्रस्टी गुरजंट धालीवाल बतातें है कि हर तीसरा वयस्क भारतीय एक गंभीर बीमारी से जूझ रहा है। तंबाकू अकेला ऐसा वैध उत्पाद है जिसे यदि इसके विनिर्माता की सिफारिश के मुताबिक इस्तेमाल किया जाए तो आधे उपयोगकर्ता की मौत हो जाती है। जीवन के लिए संकल्प- तंबाकू मुक्त युवा जैसे अभियानों में शुरुआत में ही इसे रोकने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है और जहां तंबाकू सेवन त्यागने वाले इस देश के लिए रोल मॉडल के तौर पर व्यापक प्रभाव डालते हैं। इसे जन स्वास्थ्य के कई अन्य कारणों के लिए दोहराया जा सकता है। जहां उद्योग युवाओं को आकर्षित करने पर ध्यान देता है, सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में इसकी रोकथाम पर काम होना चाहिए। हमारे युवाओं की रक्षा के लिए यही एकमात्र उपाय है।
चबाने वाले तंबाकू की लत के शिकार ज्यादा
ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे, 2017 के अनुसार भारत में बिड़ी, सिगरेट की लत की तुलना में चबाने वाले तंबाकू की लत के अधिक लोग शिकार हैं। इस सर्वे की रिपोर्ट में पाया गया है कि 21.4 प्रतिशत (15़ वर्ष से अधिक ) धूम्रपान रहित तंबाकू का उपयोग करते हैं जबकि 10.7 प्रतिशत धूम्रपान करते हैं। जिसका मुख्य कारण 90 प्रतिशत मुंह का कैंसर है। हालांकि जब तंबाकू की बात होती है, तो सरकार, स्वास्थ्य विशेषज्ञ, गैर सरकारी संगठन और अन्य स्वैच्छिक संगठन तुरंत सिगरेट और बीड़ी के उपयोग और इसके दुष्प्रभाव के बारे में ही अधिक बात करते हैं। दुनियांभर में हैड नेक कैंसर के 6 लाख नए मामले सामने आते है, जिनमें से दो लाख लोगों की मौत हेा जाती है, वहीं भारत में करीब डेढ़ लाख से अधिक नए मामले सामने आ रहे है। जो कि बेहद चिंता का विषय है।
वर्ल्ड हैड नेक कैंसर डे की इस तरह हुई शुरुआत
इंटरनेशनल फैडरेशन ऑफ हैड नेक आनकोलाजी सेासायटी (आईएफएचएनओएस) ने जुलाई 2014 में न्यूयार्क में 5 वीं वर्ल्ड कांग्रेस में वर्ल्ड हैड नेक केंसर डे मनाने की घोषणा की। यह दिन रोगियों, चिकित्सकों और नीति निर्माताओं को बीमारी और हाल ही में उपचार की दिशा में हुई तरक्की के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए एक मंच पर लाता है।
इंटरनेशनल फैडरेशन ऑफ हैड नेक आनकोलाजी सेासायटी (आईएफएचएनओएस) ने जुलाई 2014 में न्यूयार्क में 5 वीं वर्ल्ड कांग्रेस में वर्ल्ड हैड नेक केंसर डे मनाने की घोषणा की। यह दिन रोगियों, चिकित्सकों और नीति निर्माताओं को बीमारी और हाल ही में उपचार की दिशा में हुई तरक्की के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए एक मंच पर लाता है।