जब से दुनिया बनी है तब से हर कोई किसी न किसी की आलोचना करता है। आलोचना उसी की होती है जो आलोचक की दृष्टि में कुछ कम करता है, कम देता है। करोड़ों लोग आंधी, ओलावृष्टि, तूफ़ान, बाढ़, बिजली गिरना, भूकंप, वन अग्नि आदि आने पर ईश्वर की, कुदरत की आलोचना करने से नहीं चूकते। करोड़ों कर्मचारी हड़ताल कर नियोक्ता की आलोचना करते हैं। हर घर में हर सदस्य हर रोज दूसरों की छुटपुट आलोचना करता ही है। मेरे ऑफिस में रोज कई ग्राहक मेरे सामने मेरी आलोचना करते हैं। आलोचना से क्रोध भी आता है और सीखने का मौका भी मिलता है। हर आविष्कार की, खेल की, पुस्तक की, मूवी की, लेख की, सीरियल की आलोचना होती है पर हाथी अपनी चाल चलता रहता है।
भारत के राष्ट्रपति पद के लिये एक नही बल्कि दो दो बार अपनी दावेदारी प्रस्तुत कर चुके और जन समस्याओं को लेकर राष्ट्रपति को 5000 से भी अधिक पत्र लिख चुके प्रख्यात समाजसेवी जीवन कुमार मित्तल कहते है बचपन में स्कूल में दोहा पढ़ा था: निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय, बिन पानी साबुन, निर्मल करे सुभाय।” हो सकता है कि मेरी अब तक की सोच पर 10 लोग मेरी आलोचना, निंदा कर चुके हों पर मैं अभी थमने वाला नहीं। अरबों पत्नियां पति हेतु माह में सैंकड़ों बार आलोचना करती हैं, कोसती हैं, बेइज्जती करती हैं, फटकारती हैं पर पति को सहनशील होना पड़ता है।
ऑर्गनाइजर की, कर की, किरायेदार की, खिलाडी की, जनसेवक की, टीचर की, डॉक्टर की, दलाल की, निर्माता की, नीति की, नेता की, प्रधान की, पुलिस की, बॉस की, बिचोलिये की, बिल की, मकान मालिक की, महाजन की, मुखिया की, राजा की, शासक की, सेवक की, सोच की पीठ पीछे निंदा होती ही है। हरेक को किसी की बेइज्जती करने से बचना चाहिए पर हरेक को अपनी बेइज्जती पर मौन रखने का, मौन रहने का प्रयास करना चाहिए।
मेरे कई ग्राहक मुझे चोर, ठग, बेईमान, लुटेरा आदि कह देते हैं पर ऐसे 1% से अधिक नहीं होते। लोकतंत्र में बहुमत का बोलबाला होता है और बहुमत मेरी आलोचना, बेइज्जती, मानहानि नहीं करता। मेरी आलोचना, बेइज्जती, मानहानि वही करता है जो मेरे से तंग है, त्रस्त है, दुखी है, परेशान है, हैरान है चाहे वो ग्राहक हो, पडोसी हो, ब्लड रिलेटिव हो, मित्र हो।
मैं अपने हॉकर को भुगतान अपने आप माह के अंतिम दिवस पे टी एम से कर देता हूँ और वो मेरी कभी आलोचना नहीं करता। अख़बार देरी से मिलने पर मैं उसकी आलोचना नहीं करता।