दृष्टिकोण

ये चाहते कहाँ मानती है दायरे, इसने पार किये है, सरहदे भी

Written by Vaarta Desk

ये चाहते कहाँ,
मानती है दायरे,
इसने पार किये है,
सरहदे भी l

तुम रोज आकर
छू जाती गालों को,
सिरहाने रहती हो कुछ देर,
आँख खुलने से पहले l

मैं भी आता हूँ,
मिलने तुमसे बूँद बनके,
तुम्हारे गालों पे गिर,
चुम लेता हूँ तुम्हें l

हम मिलते है एक दूसरे,
हर मौसम में,
हर पहर,
हर जगह,
प्यार नहीं बंधता किसी,
सरहदो में l

 

 

 

 

 

भारती sudha चांदनी

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