राजनीतिमें मीडिया प्रबंधनका पहला सफल प्रयोग विश्वनाथ प्रताप सिंहने 1989में किया था।उन्होंने अपने सार्वजनिक जीवनकी शुरुआत लालबहादुर शास्त्रीके सान्निध्यमें की थी,1972में पहली बार विधायक बने और 9जून,1980को 84संसदीय सीटोंवाले भारतकी सबसे बड़ी आबादीवाले राज्य उत्तरप्रदेशके मुख्यमंत्री बन गए।उनके मुख्यमंत्रित्व कालमें 1981में गढ़वालमें उपचुनाव हुए थे।गैरकांग्रेसी विपक्षी उम्मीदवारके तौर पर हेमवती नंदन बहुगुणा चुनाव लड़ रहे थे। विश्वनाथ प्रताप सिंहने प्रशासनिक अधिकारोंका भारी दुरूपयोग किया था।आजाद भारतका वह पहला चुनाव था, जिसमें हुई धांधलीके कारण बूथोंका नहीं पूरे संसदीय क्षेत्रका चुनाव रद्द करना पड़ा था।लेकिन,1987में रक्षामंत्री और कांग्रेसकी प्राथमिक सदस्यतासे इस्तीफा देकर बोफोर्स तोप सौदेमें तथाकथित दलालीका आरोप लगाते हुए भ्रष्टाचारके विरुद्ध राजनैतिक अभियानका नेतृत्व किया और 1989में मीडिया मैनेजमेंट के बल पर प्रधानमंत्री बन गए।
उससे भी कईगुणा बेहतर मीडिया मैनेजमेंट कर 2014में नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने।प्रधानमंत्री बननेके बाद भी मोदीजीका मीडिया मैनेजमेंट आज तक जारी है।मोदीजीकी पिछलग्गू मीडिया प्रतिष्ठानोंके लिए एनडी टीवीसे सम्बद्ध रैमन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित पत्रकार रवीश कुमारने एक नई शब्दावली गढ़ी-गोदी मीडिया यानि ऐसी मीडिया,जो सत्ताधीशोंके गोदमें पलती है,बढ़ती है,पुष्पित-पल्लवित होती है।तो 24घंटे चलनेवाले न्यूज चैनलों की भीड़ में एबीपी न्यूज की पहचान ऐसी ही गोदी मीडियाके रूपमें हो गई है।
……एबीपी न्यूज आनन्द बाजार पत्रिका मीडिया समूह का हिस्सा है।आनंद बाज़ार पत्रिका एक बंगला दैनिक समाचार पत्र है और इसकी स्थापना 1922में प्रफुल्ल कुमार सरकार और सुरेशचंद्र मजुमदारने की थी। यह यह अखबार 1922में ब्रिटिश शासनके खिलाफ पहले चार पेज का सांध्य दैनिक था।कंपनी की वेबसाइट लगभग छह मिलियन पाठकोंका दावा करती है।
अंग्रेजी अखबार,द टेलीग्राफ ही नहीं किसी जमाने में प्रतिष्ठित हिन्दी साप्ताहिक रविवार और अंग्रेजी साप्ताहिक संडे भी इसी ग्रुपके प्रयोग रहे है।
1998में रूपर्ट मर्डोकके स्टार न्यूज़ने भारतमें न्यूज प्रसारणके क्षेत्रमें हस्तक्षेप किया।2003में यह पूर्णरूपेण न्यूज चैनलके रूपमें सामने आया।आरंभ में,एबीपी ग्रुप की स्टार न्यूज़के साथ साझेदारी थी।2012से यह एबीपी न्यूज के तौर पर काम करने लगा।इसके बांग्ला,मराठी और पंजाबी क्षेत्रीय संस्करण भी हैं।
वर्षों से एबीपी सी-वोटर(Centre for Voting Opinion & Trends in Election Research)के साथ मिलकर चुनावपूर्ण सर्वेक्षण करता रहा है।
सी-वोटर भारत की सबसे बड़ी अंतर्राष्ट्रीय पोलिंग एजेंसी है,जिसका मुख्यालय दिल्ली में है।सन्2000से सी-वोटर लोकसभा-विधानसभाओंके लिए सर्वेक्षण करता रहा है।यह Times Now,ANN7,United Press International,Reuters,Bloomberg News, BBC News,Aaj Tak,Abp News,Zee News, Zee Business,India TV,Lok Sabha TV, Sahara Samay(owned by Sahara India Pariwar),Jain TV,Asianet,ETVकी साझेदारीमें काम करती रही है।
सी-वोटर एक बेहतरीन उद्यमी यशवंत देशमुखका सफल प्रयोग है,जिन्हें संवाद,संचार और सम्प्रेषणमें विशेषज्ञता प्राप्त है।वह शोधपरक अध्ययन,आकलन, विश्लेषण और समाचार निरूपण-प्रस्तुति विशेषज्ञ हैं।
यशवंत देशमुखकी टीमने एबीपी न्यूजके लिए ही बिहार विधानसभा चुनाव,2020का चुनाव पूर्व सर्वेक्षण किया था।बिहार विधानसभा चुनाव,2020 28अक्तूबर- 7नवंबरके बीच 3चरणोंमें हुए थे।सी-वोटरकी टीमने 1-23 अक्तूबरके बीच प्रत्येक विधानसभा क्षेत्रके तकरीबन 125 यानि 243विधानसभा क्षेत्रके 30678 लोगोंसे बातकर अपने निष्कर्ष निकाले थे।इनका पूर्वानुमान था कि राजदके नेतृत्ववाले महागठबंधनको 35%वोट मिलेंगे और इस गठबंधन को वाकई लगभग 35%वोट मिले थे।अर्थात् उनका यह अनुमान सही साबित हुआ था।सी-वोटरकी टीमने राजगके लिए 43%वोटका अनुमान किया था,लेकिन राजगको महज 35.3%वोट मिले।जहां तक सीटोंका सवाल है,एबीपी- सी वोटर का अनुमान था कि नीतीश कुमारके नेतृत्व वाले राजगको 135-159सीटें और महागठबंधन को 77-98सीटें मिलेंगी और यह दोनों ही अनुमान गलत साबित हुए थे।राजगको पूर्वानुमानसे कहीं कम 125 सीटें मिली थीं और महागठबंधनको पूर्वानुमान से कहीं ज्यादा 110सीटें मिली थीं।पूर्वानुमान और यथार्थका यह अंतर एबीपी-सी वोटर सर्वेको मोदीके नेतृत्ववाले भाजपा और राजगकी तरफदारी करता स्थापित करता है।
नरेन्द्र मोदीके नेतृत्ववाली भाजपाके प्रति एबीपी-सी वोटरकी यह तरफदारी प.बंगाल विधानसभा चुनाव,2021में भी जारी रही।इनका पूर्वानुमान था कि तृणमूल कांग्रेसको 43% और भाजपाको 37.5%वोट मिलेंगे।जबकि तृणमूल कांग्रेसको 48%और भाजपाको 38%वोट मिले।(भाजपाको मिले वोटका प्रतिशत एक हद तक सही साबित हुआ था।) सीटों के मामले में एबीपीका सर्वे पूरी तरह गलत साबित हुआ।एबीपी का पूर्वानुमान था कि भाजपा 175से ज्यादा सीटें लाकर आराम से बहुमत हासिल करेगी और सरकार बना लेगी।हुआ इसका उल्टा-तृणमूल कांग्रेसने 213सीटें जीतीं,जो पिछले विधानसभामें उसकी सीटोंसे अधिक है और भाजपा 77सीटों पर सिमट गई।
एबीपी-सी वोटरके सर्वेक्षणों एवं पूर्वानुमान और यथार्थके इस अंतरके बीच उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव,2022के लिए ताजा सर्वेक्षण और पूर्वानुमान का अध्ययन,आकलन और विश्लेषण करें।
एबीपी-सी वोटर सर्वे कहता है कि 62%लोग योगी आदित्यनाथके कामकाजसे संतुष्ट हैं।थोड़ी भी राजनैतिक समझदारी वाला व्यक्ति इस अनुमानसे सहमत नहीं हो पाएगा।2007और 2012के विधानसभा चुनाव में भाजपा के वोटों का प्रतिशत 15-17%था। अर्थात् उत्तरप्रदेश में भाजपा के कोर-वोटर यही 15-17%हैं।2017के विधानसभा चुनावके समय मोदीजी की लोकप्रियता चरम पर थी।वोट भी उन्होंने अपने नाम पर मांगे थे,डबल इंजनकी सरकारका वादा किया था,सुनियोजित तरीकेसे आम-अवामके मनमें गलतफहमी पैदा होने दी कि केशव प्रसाद मौर्य को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा,लेकिन इनमें से कुछ भी सच साबित नहीं हुआ।यही नहीं,पिछले एक सालमें मोदीजी की लोकप्रियता का ग्राफ 66%से घटकर 24%पर पहुंच गया है।ऐसे में,भाजपाके वोटोंका पूर्वानुमान 42% कहीं से भी गले के नीचे नहीं उतरता। ऐसे में, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव,2022के लिए 259-267सीटों का पूर्वानुमान पूरी तरह नरेन्द्र मोदीके नेतृत्ववाली भाजपा की तरफदारी करनेके एबीपी-सी वोटरके पूर्वानुमानोंकी परम्पराकी एक और कड़ी है,जिसका सच्चाई से कोई लेना-देना नहीं है,और गलत साबित होना ही इसकी नियति है।
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