सरकार के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को निजी हाथों में सौंपने के विरोध में बैंक यूनियनों द्वारा 2 दिन की हड़ताल से सरकार पर कोई दबाव नहीं लग रहा है। इसलिए आन्दोलन को नई दिशा देने की आवश्यकता है लेकिन बार बार हड़ताल कोई समाधान नहीं लगता। इससे जहां बैंक कर्मचारियों को हड़ताल पर जाने पर दो दिन के लिये औसतन 6000 से 10000 सेलरी की कटौती करवानी पड़ती है और अगले दिन दो दिन का पेंडिंग काम भी करना पड़ता है, वहीं ग्राहकों को असुविधा होती है और व्यापार का भी नुकसान होता है। देश की अर्थव्यवस्था पहले से ही कोरोना के कारण बहुत पीछे चली गई है।
ऐसे में जिम्मेदार बैंक कर्मचारी यूनियनस को आज के समय के अनुसार नए तरीके के आंदोलन के बारे में सोचना चाहिए।
वैसे भी यूनियनों की लड़ाई सरकार से है तो ग्राहकों और व्यापार का नुकसान क्यों हो।
सरकार को भी किसी तरह के बदलाव से पहले सभी स्टेक होल्डर्स से बात करके ही आगे बढ़ना चाहिए।
अशवनी राणा
फाउंडर
वॉयस ऑफ बैंकिंग