अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण लाइफस्टाइल

माँ गंगा से हार गया माउंट एवरेस्ट, दक्षिणी ध्रुव और उत्तरी ध्रुव फतह करने वाला

Written by Vaarta Desk

आज 25अगस्त,2022है।आज से 45वर्ष पहले 25अगस्त,1977को सर एडमंड हिलेरी पश्चिम बंगाल के हल्दिया से एक विशेष अभियान पर निकले।उनके जेहन में था कि वह मां गंगा जहां बंगाल की खाड़ी वहां से धारा के विपरित चलते हुए गंगा के उद्गम के निकट बद्रीनाथ तक जाएंगे।अपने इस अभियान का नाम दिया था-सागर से हिमालय।वह ऐसे हैरतअंगेज कारनामों के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने विश्व की अनेक चोटियों पर फतह हासिल की थी।माउंट एवरेस्ट पर भी पहला मानवीय कदम उन्होंने ही रखा था….।

1952 में एक स्विस पर्वतारोही नेपाल और तिब्बत के रास्ते 8,848 मीटर ऊंचे माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करने निकला.उसने भी नेपाल के शेरपा तेनजिंग नॉर्गे को साथ लिया था,लेकिन खराब मौसम की वजह से ये साहसिक सफर अधूरा रह गया.एशिया से लौटकर वो स्विस पर्वतारोही यूरोप में आल्प्स की पहाड़ियों पर गया.वहां उसकी मुलाकात न्यूजीलैंड के एडमंड हिलेरी से हुई.बातचीत में उसने हिलेरी को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ाई करने की कोशिश का वाकया बताया.हिलेरी ने उसी क्षण ठान लिया कि वह माउंट एवरेस्ट पर चढ़ेंगे. साल भर बाद हिलेरी भी अपने दल के साथ नेपाल पहुंचे.नेपाल में उन्होंने भी तेनजिंग नॉर्गे को साथ लेकर चढ़ाई शुरू की.

29मई,1953 के दिन एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नॉर्गे ने बर्फ से ढकी ऊंची और दुर्गम चोटी एवरेस्ट पर फतह हासिल की थी.दोनों पर्वतारोही दृढ़ता, साहस और मजबूत इच्छाशक्ति के प्रतीक बन गए थे. हिलेरी को इस सफलता के लिए ब्रिटेन की महारानी ने नाइट की उपाधि दी थी.

1958में हिलेरी ने दक्षिणी ध्रुव और 1985में उत्तरी ध्रुव पर भी फतह हासिल की थी।

वहीं एडमंड हिलेरी 25अगस्त,1977को अपने अभियान ‘सागर से हिमालय’ पर निकल पड़े थे।इस दुस्साहसी अभियान में तीन जेट नौकाओं का बेड़ा था-गंगा,एयर इंडिया और कीवी.एडमंड हिलेरी की टीम में 18 लोग शामिल थे.इनमें उनका 22 साल का बेटा भी था.सबकी निगाहें इस पर लगी थी कि हिमालय को जीतने वाला क्या गंगा को भी साध पाएगा.

एडमंड हिलेरी कलकत्ता से पौड़ी गढ़वाल के श्रीनगर तक बिना किसी बाधा के पहुंच गए थे. अपनी 400 हॉर्स पावर की जेट नौकाओं के कारण उनका उत्साह और जोश चरम पर था.गंगा की लहरों को भी जीतना था-एडमंड हिलेरी का लक्ष्य।डॉक्टर उमाशंकर थपलियाल तब आकाशवाणी के लिए एडमंड हिलेरी के अभियान को कवर कर रहे थे.उन्होंने बताया था कि- ‘हिलेरी 26 सितंबर 1977 को ऋषिकेश से आगे श्रीनगर पहुंचे थे. एवरेस्ट विजेता को देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ी थी. हिलेरी यहां कुछ देर रुके. लोगों से गर्मजोशी से मिले.उसी दिन अपनी जेट नाव पर सवार होकर बदरीनाथ के लिए निकल पड़े.उनकी नावें बहुत तेज गति से जा रही थीं.आत्मविश्वास से लवरेज थे एडमंड हिलेरी।श्रीनगर से कर्णप्रयाग तक गंगा की लहरों की चुनौतियां थोड़ी बढ़ीं.लेकिन उत्साह से लवरेज एडमंड हिलेरी उन पर विजय पाते तेजी से कर्णप्रयाग पहुंच गए.

लेकिन,गंगा सागर से कर्णप्रयाग तक पहुंचे एवरेस्ट विजेता एडमंड हिलेरी को शायद नंदप्रयाग में मां गंगा से परास्त होना था.कर्णप्रयाग से वो जोश-खरोश से ही अपने अभियान पर आगे बढ़े. नंदप्रयाग के पास खड़ी चट्टानों के कारण नदी का बहाव बहुत तेज था.ये उनके अभियान का अब तक का सबसे मुश्किल पल था. हिलेरी ने बहुत कोशिश की.लेकिन एवरेस्ट फतह करने वाले इस जांबाज की गंगा के आगे एक न चली. एडमंड हिलेरी को हार माननी पड़ी.उनका सागर से हिमालय अभियान नंदप्रयाग के पास समाप्त हो गया.एडमंड हिलेरी ने माना कि गंगा मां को जीतना आसान नहीं है.उन्हें गंगा मां ने हरा दिया था. उत्तराखंड में गंगा से मिली हार ने हिलेरी के घमंड को चूर-चूर कर दिया था.जब वे 10 साल बाद दोबारा उत्तरकाशी के नेहरू पर्वतारोहण संस्थान में आए तो उन्होंने विजिटर बुक में लिखा,’मनुष्य प्रकृति से कभी नहीं जीत सकता हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए.’

पंकज कुमार श्रीवास्तव

           राँची

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