1974-77के दौरान संपूर्ण क्रांति आन्दोलन के दौर में मेरे मन में आईएएस काडर के प्रति एक अजीब-सी वितृष्णा पैदा हो गई थी।मुझे लगता था-देश के इस सबसे प्रतिभाशाली संवर्ग ने देश का सबसे ज्यादा बंटाधार किया है।समस्त सुविधासंपन्न इस काडर द्वारा रचित तिलस्म और मायाजाल में जनप्रतिनिधि भटक जाता है।सच यह भी है कि एक सामाजिक कार्यकर्ता की हैसियत से मैं सरकारी सेवा में जाना ही नहीं चाहता था।लेकिन,जब मैं नौकरी में आ गया तो पाया कि एक आईएएस को उसकी प्रतिभा के अनुरूप परिणाम दे पाने का अवसर ही नहीं है।एक-एक आईएएस को साल में दो-दो,तीन-तीन स्थानांतरण होता है।कभी-कभी एक-एक आईएएस तीन-चार पदों के प्रभार में रहता है।वह किसी भी पद पर परिणाम क्या खाक देगा? अस्तु!यह एक लंबी बहस का विषय है।
विगत 23अप्रैल,2022को मुझे जौनपुर में रहना था।मेरी बड़ी बहू कोमल की छोटी बहन नंदिनी का विवाह-पूर्व इंगेजमेंट का कार्यक्रम था।जाने के पहले मैंने गूगल सर्च किया।मेरी दिलचस्पी जौनपुर से 11किमी दूर एक गांव माधोपट्टी में जागी जिसने पचासों आईएएस, आईपीएस, आईएफएस, डाक्टर, इंजीनियर, लेखक, वैज्ञानिक दिए हैं।इंगेजमेंट का कार्यक्रम शाम में एक होटल में था,सो सुबह में नाश्ते के बाद मैं ड्राइवर तारा के साथ अपनी कार से निकल पड़ा।साथ रहे हरि भैया,पत्नी और छोटा बेटा परिमल परितोष,जो ओएनजीसी में कंप्यूटर इंजीनियर है।
मेरे पास उपलब्ध सूचना के अनुसार,माधोपट्टी गांव में साक्षरता दर काफी बेहतर यानि कि लगभग 95%है।केरल का साक्षरता दर 75%से ज्यादा हो गया,तो उसे पूर्ण साक्षर प्रदेश मान लिया गया था। इस पैमाने पर,माधोपट्टी पूर्ण साक्षर गांव है।आजादी के पहले से ही माधोपट्टी गांव के लोगों का प्रशासनिक सेवाओं में जाने का सिलसिला शुरू हो गया था।1914में मोहम्मद मुस्तफा हुसैन डिप्टी कलेक्टर बने,जो मशहूर शायर वामिक जौनपुरी के पिता थे।
एक ही परिवार में पांच भाई आईएएस
मैंने कहीं डॉ सजल सिंह का वक्तव्य पढ़ा था-हम 7 भाई हैं।स्वतंत्रता के बाद 1952 में मेरे बड़े भाई इंदु प्रकाश सिंह ने सिविल सर्विसेज एग्जाम में सेकंड रैंक हासिल की थी।उनके बाद उनके दोनों बेटे अमिताभ सिंह और जन्मेजय सिंह तथा बहू सरिता व कल्पना भी IAS बनीं।
1955 में छोटे भाई विनय कुमार सिंह ने आईएएस एग्जाम में 13वीं रैंक हासिल की।वे बिहार के मुख्य सचिव रह चुके हैं।9 साल बाद 1964में हमारे दो और भाई डॉ. छत्रपाल सिंह और अजय सिंह एकसाथ आईएएस बने। छत्रपाल तमिलनाडु के मुख्य सचिव रह चुके हैं।फिर,1968 में सबसे छोटे भाई शशिकांत सिंह ने यूपीपीएससी की परीक्षा पास की थी।2002 में शशिकांत के बेटे यशस्वी प्रतिष्ठित परीक्षा में 31वीं रैंक हासिल कर आईएएस बने थे।
इस गांव में पीसीएस ऑफिसर्स की तो भरमार है। गांव माधोपट्टी के ही राममूर्ति सिंह, विघाप्रकाश सिंह, प्रेमचंद्र सिंह, महेन्द्र प्रताप सिंह, जय सिंह, प्रवीण सिंह और उनकी पत्नी पारूल सिंह, रीतू सिंह, अशोक कुमार प्रजापति, प्रकाश सिंह, राजीव सिंह, संजीव सिंह, आनंद सिंह, विशाल सिंह उनके भाई विकास सिंह, वेदप्रकाश सिंह, नीरज सिंह का नाम इस देश के आईपीएस ऑफिसरों की लिस्ट में शुमार है।
गांव की बहू बेटियों ने भी बढ़ाया मान
माधोपट्टी गांव के बेटे ही नहीं बेटियों और बहुओं ने भी गांव का मान बढ़ाया है।1980में आशा सिंह, 1982में ऊषा सिंह,1983में इंदू सिंह और 1994 में सरिता सिंह आईपीएस चुनी गई थीं।इसके अलावा भी अलग-अलग क्षेत्रों में गांव की बहू-बेटियों ने नौकरी हासिल की है।
अफसर बनने के साथ दूसरे पेशों में गांव के युवक-युवतियां नाम रौशन कर रहे हैं।अमित पांडेय केवल 22 वर्ष के हैं लेकिन इनकी लिखी पांच किताबें 2015 में प्रकाशित हो चुकी हैं।इस गांव के अन्मजेय सिंह विश्व बैंक मनीला में, डॉक्टर निरू सिंह लालेन्द्र प्रताप सिंह वैज्ञानिक के रूप भाभा इंस्टीट्यूट तो ज्ञानू मिश्रा राष्ट्रीय अंतरिक्ष संस्थान इसरो में सेवाएं दे रहे हैं।
सिरकोनी विकास खण्ड का माधोपुर पट्टी गांव का बड़ा सा प्रवेश द्वार गांव के खास होने का अहसास कराता है।गांव में तमाम मकान पक्का दिखते हैं।एक दरवाजा पर गाड़ी रोकता हूं,एक सज्जन मिलते हैं,बताते हैं-इस गांव के बारे में जानना समझना हो,तो गिरीश चन्द्र सिंह से मीलिए।
वहां से गाड़ी घूमाकर गिरीश चन्द्र सिंह का दरवाजा खोजता हूं।
गिरीश के यहां उनके लड़के कार्तिकेय मिलते हैं,बताते हैं-पिताजी अस्वस्थ हैं,मिल पाने की स्थिति में नहीं हैं।वह खुद शिक्षक हैं।एक संस्कारवान परिवार की तरह पूरे सम्मानपूर्वक हमलोग को बैठाते हैं।बताते हैं-गांव की आबादी करीब 800 है,जिसमें सबसे ज्यादा संख्या राजपूतों की है।पर्व-त्योहारों के अवसरों पर गांव की हर गली में लाल-नीली बत्तियों वाली गाड़ियां नजर आती हैं।
बताते हैं-मेरे गांव में कोई 47आईएएस/पीसीएस हैं, जिसमें 42का ताल्लुक एक ही परिवार से हैं।विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए उच्च शैक्षणिक वातावरण का श्रेय वह अपनी एक परदादी को देते हैं,जो गांव के हर बच्चे को नियमित पढ़ाई के लिए उत्प्रेरित करती थी।वह बताते हैं-मेरी उस परदादी की जब मृत्यु हुई,मैं आठ-दस वर्ष का था।कार्तिकेय वह चबूतरा भी दिखाते हैं,जहां परदादी टोला के तमाम बच्चों को लालटेन की रोशनी में पढ़ने के लिए जुटाती थीं।
वह बताते हैं-यह गांव देश के दूसरे गांवों के लिए रोल मॉडल है।इस गांव में कोई भी कोचिंग इंस्टीट्यूट नहीं है,बावजूद कड़ी मेहनत और लगन से युवा बुलंदियों को छू रहे हैं।यहां बच्चे इंटरमीडिएट से ही आईएएस और पीसीएस की तैयारी शुरू कर देते हैं।जहां कोचिंग को कई लोग यूपीएससी की तैयारी और उसके सफर में एक महत्वपूर्ण फैक्टर मानते हैं वहीं माधोपट्टी ने इस मान्यता को सिरे से खारिज कर सफलता के नए कीर्तिमान गढ़े हैं।
कार्तिकेय ने चाय-नाश्ता तो कराया ही घर में गुड़ की बनी खास तरह की मिठाई भी खिलाई। हमलोग चलने लगे,तो उनकी मां भी बाहर निकलीं,फिर हम लोगों ने एक अनौपचारिक तस्वीर भी ली।
पंकज कुमार श्रीवास्तव
राँची
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