न्यास को लिखा पत्र, नहीं मिला उत्तर
गोण्डा/अयोध्या। 500 वर्षों के कड़े संघर्ष के बाद निर्मित हो रहे प्रभु श्रीराम के मंदिर में भगवान की प्राण प्रतिष्ठा के शुभ अवसर पर आमंत्रित लोगों में आधुनिक मीरबाकी और बाबर की भूमिका निभाने वाले हाशिम अंसारी और उनके पुत्र इक़बाल अंसारी को निमंत्रण दिए जाने को लेकर न्यास पर सवाल खड़े हो रहे हैं। जिनका उत्तर न्यास को भेजें पत्र में माँगा गया है लेकिन तीन दिन बाद भी न्यास की और इस बावत किसी भी तरह के न तो वक्तव्य जारी किया गया और न ही प्रेषक को ही कोई उत्तर दिया गया।
ज्ञात हो की प्रभु श्रीराम जन्मभूमि प्रकरण के विवाद में मुख्य पैरोकार के रूप में अयोध्या के ही स्वर्गीय हाशिम अंसारी ने अपने पूरे जीवन काल में भूमिका निभाई और उनके निधन के बाद उनके पुत्र इक़बाल अंसारी ने ये भूमिका संभाल ली, जिस तरह से बाबर के आदेश और उसके सिपाहसलार मीरबाकी ने मंदिर तोड़ कर उसके अवशेषों से मस्जिद का निर्माण कराकर सनातन पर चोट की सनातनियों की भावनाओं पर कुठाराघात किया उसी तर्ज पर हाशिम अंसारी और उनके बेटे ने बाबरी के मुख्य पैरोकार की भूमिका निभाकर न्यायालय के अंतिम आदेश तक हिन्दुओं को संघर्ष करने को विवश किये रखा।
क्या ये कहना अनुचित होगा की मीरबाकी और बाबर की बर्बरता को हाशिम और इक़बाल ने मान्यता देते हुए उसी का अनुसरण नहीं किया तो फिर मीरबाकी और बाबर से हाशिम और इक़बाल को अलग कैसे किया जा सकता है। अब इक़बाल को आमंत्रित कर क्या न्यास 500 वर्ष चले संघर्ष में अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले बलिदानियों को मुँह चिढ़ाने का कुत्सित कार्यक्रम नहीं कर रहा, और यदि न्यास की दृष्टि में इक़बाल का कृत्य उचित है तो फिर बाबर और मीरबाकी का कृत्य गलत कैसे हो सकता है फिर तो न्यास को मीरबाकी और बाबर के वंशजों को भी इक़बाल की तरह विशिष्ट अतिथि के तौर पर निमंत्रण देना चाहिए।
यहाँ ये भी जानना जरुरी है की निमंत्रण मिलने के बाद ज़ब मीडिया इक़बाल से बात कर रही थी तो उस समय भी इक़बाल का उत्तर ऐसा लगा जैसे वो इस बुलावे पर कार्यक्रम में शामिल होकर न्यास और हिन्दुओं पर अहसान करेगा।
इक़बाल को निमंत्रण क्यों दिया गया, सभव है न्यास के पास इसका कोई संतोषजनक उत्तर हो इसकी जानकारी के लिए एक रामभक्त ने न्यास को पत्र लिखकर अपनी जिज्ञासा शांत करनी चाही लेकिन पत्र लिखने के तीन दिन बाद भी उत्तर न देना इस बात को प्रमाणित करता है की न्यास या तो मनमानी पर उतारू है या फिर उसे सनातनियों की भावना से कोई लेनादेना नहीं है और उसे हाशिम और इक़बाल हिन्दू मुस्लिम एकता के भी बड़े पैरोकार दिखाई देते हैं।