जौहर और शाका की कहानियां हमने किताबों में पढ़ी है, हम अक्सर सोचते है आखिर कैसे कोई महिला अपने स्वाभिमानवको रक्षा के लिए अग्नि में समर्पित हो जाती है, कैसे कोई युवा राष्ट्र के लिए जान देने का संकल्प कर लेता है।
यह सब बाते अब किस्सा कहानियों में रह गई लेकिन राजस्थान के राजपुताने में यह एक शौर्य बोध का पर्व है, आज भी देश में अगर वीरता शौर्य और अस्मिता की बात आती है तो बिना जौहर की वार्ता खत्म नहीं होती। लेकिन आज की पीढ़ी इन शौर्य गाथाओं को भूल चुकी है। जबकि यह बाते प्रेरणा की श्रोत है,ऐसे में आज की पीढ़ी को इन बातों का बोध कराने के लिए वाराणसी में शिक्षा और संस्कार पर कार्यरत संस्था राजसूत्र पीठ द्वारा राजस्थान के विभिन्न इलाकों की छात्राओं को एक शैक्षणिक/ सांस्कृतिक यात्रा पर आमंत्रित किया गया है सीकर के मीरा गर्ल्स कॉलेज की,ये छात्राएं उन इलाकों की है जिसे जौहर और शाका के लिए जाना जाता है ,और कही न कही इनकी पूर्ववर्ती इसके गवाह रहे है,
45 छात्राओं का यह दल 3 दिवसीय दौरे पर उत्तर प्रदेश आया हुआ है जहां पहले दिन इन्होंने प्रभु राम के दर्शन पूजन के साथ अन्य ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण किया और राम मंदिर का इतिहास और आंदोलन की कथा जानी, अयोध्या जी इन बच्चों से स्थानीय लोगों की मुलाकात भी हुई जहां लोगों ने इनसे राजस्थान की संस्कृति खासकर राजपुताने की कहानियों और तमाम किंवदंतियों को जाना ।
जौहर देश से आई इन छात्राओं से स्थानीय युवतियां भी मंदिर परिसर में मिली और उन्हें राजस्थान की संस्कृति और शौर्य के बारे में बता कर राष्ट्र हित में अपनी संस्कृति को बचाए रखने की अपील की, ।
छात्राओं का दल शौर्य स्थली हल्दी घाटी की मिट्टी भी अपने साथ लेकर आया है जिन्हें राजसूत्र पीठ के सदस्यों ने ग्रहण किया और स्थानीय लोगों में वितरित भी किया।
अयोध्या भ्रमण के बाद यह दल भगवान अवधूत आश्रम में रात्रि विश्राम के लिए रुका है जहां से 24 की सुबह वाराणसी के लिए 2 दिन की यात्रा पर प्रस्थान करेगा।
वाराणसी में ये दल गंगा आरती ,बाबा विश्वनाथ के दर्शन के अलावा काशी हिंदू विश्वविद्यालय भ्रमण के अलावा 25 अक्टूबर को आयोजित कर्तव्यबोध कार्यक्रम में शामिल होगा ,जहां क्षत्रिय समाज के लोग इन छात्राओं से जौहर की गाथा सुनने के बाद हल्दी घाटी की पवित्र मिट्टी प्राप्त करेंगे।
राजसूत्र पीठ के ट्रस्टी दिग्विंदु मणि के अनुसार हल्दी घाटी की मिट्टी हमारे समाज के लिए शौर्य का प्रतीक है जो हमें ऊर्जा प्रदान करती है, और इस तरह के आयोजन से अलग अलग क्षेत्रों में रह रही संस्कृतियों में मेल मिलाप बढ़ेगा और रक्त संबंधों में प्रगाढ़ता बढ़ेंगी जो आज समाज के लिए जरूरी है।
वाराणसी के बाद यह दल प्रयागराज में संगम स्नान और ऐतिहासिक स्थलों के भ्रमण के बाद 27 की शाम वापस राजस्थान के लिए रवाना हो जाएगा।
राजसूत्र के ट्रस्टी श्री राहुल सिंह ने बताया कि इस यात्रा के बाद संस्था पूर्वांचल के लगभग 50 छात्रों को राजस्थान की शैक्षणिक यात्रा पर आगामी दिसंबर में लेकर जाएगी और यह क्रम प्रतिवर्ष चलता रहेगा।
