ज्योतिष धारा राष्ट्रीय

तिल विज्ञान – भारतीय ज्योतिष का अद्भुत रहस्य 

Written by Vaarta Desk
लग्न कुण्डली के 12 भाव मानव शरीर के अंगों का प्रतिनिधित्व करते हैं । तिल विज्ञान के अनुसार , विभिन्न भावों का निभ्न अनुसार शरीर के अंगों से संबंध है :-
भावों के अनुसार शरीर के अंग :-
१ चेहरा ( आंखें नहीं )
२ दांयी आंख
३ दांया कंधा व हाथ
४ छाती का दांया भाग
५ नाभि से दांयी और का भाग
६ गुप्तांग व दांया पैर
७ नाभि प्रदेश, जननांग ( लिंग व योनि )
८ गुप्तांग व बांया पैर
९ नाभि से बांयी ओर का भाग
१० छाती का बांया भाग
११ बांया कंधा व हाथ
१२ बांयी आंख
कुंडली के जिस भाव में अशुभ प्रभाव है, उससे संबंधित अंग पर तिल, दोष, रोग आदि की संभावना होती है। ज्योतिष शास्त्र में हम केवल लग्न कुण्डली देखकर शरीर पर जहां कहीं भी तिल आदि संभव है, बता सकते हैं।
आप केवल जातक की समस्या सुनकर भी, उसके शरीर पर तिल आदि बता सकते हैं। इसके लिए आपको सभी बारह भावों से फलित के विषय स्मरण हो व भावों के अनुसार शरीर के अंग भी। जातक की समस्या सुने, विचार करें, समस्या किस भाव से संबंधित हैं। उस भाव से संबंधित अंग पर तिल आदि हो सकतें हैं। अभ्यास से आप इस विषय में प्रवीन हो सकतें हैं।
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 सुर्य- सुर्य के कारण होनेवाले तिल रोग आदि एक माह या अयन में हल होते हैं ।पिता के लिए नकारात्मक प्रभाव देखते हैं ।
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 मंगल से क्रोध, रक्त विकार, चोट आदि की संभावना होती है, लगभग मंगल के राशि परिवर्तन पर ही हल होती है। भाई के लिए नकारात्मक।
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 चन्द्र के कारण मानसिक रोग व निराशा, कभी कभी दीर्घ अवधि तक, शुक्ल पक्ष में अधिक अशुभ प्रभाव दें। हस्तलेख अच्छा नहीं होता व माता के लिए नकारात्मक
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 गुरु से विचित्र दोष व रोग, शिक्षा, पति व दादा के पक्ष से हानि, दीर्घ अवधि में साध्य
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 शुक्र से सफ़ेद दाग, पौरुष शक्ति में कमी, पत्नी पक्ष के लिए नकारात्मक, अल्प अवधि में साध्य,
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 बुध से वाणी दोष, गले के रोग, त्वचा पर चिन्ह, चरित्र दोष संभव है। बहन, बुआ, बेटी व साली के लिए नकारात्मक। यौवन अवस्था में प्रभावी।
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 राहु के कारण भ्रम, भय, वहम व ससुराल पक्ष से संबंध खराब हो सकतें हैं। राहु जिस ग्रह से युति करते हैं उसके आधार पर तिल रोग आदि होते हैं। समस्या के समाधान की अवधि दोनों ग्रहों की स्थिति के अनुसार होती है। राहु के कारण अकस्मात लाभ हानि कहें जातें हैं। जुआ खेलने का व्यसन भी राहु की स्थिति से विचारणीय है।
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 शनि के प्रभाव से होने वाले तिल रोग आदि अपने कर्मों के अनुसार होते हैं वे शनि के राशि परिवर्तन से आरंभ होकर अगली राशि में प्रवेश तक या दशा अंतर्दशा अनुसार साध्य है। चाचा का पक्ष नकारात्मक
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 केतु के कारण चोट, दुर्घटना आदि की संभावना होती है। कामेच्छा बढ़ाने में भी केतु कारक है। नाना पक्ष के परिवार का विचार भी केतु से करते हैं।
आचार्य आशीष शाण्डिल्य
      श्रीधाम अयोध्या

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