दृष्टिकोण

मासूम मुस्कान और निश्छल आंखों में उठते हजारों अनकहे प्रश्न

Written by Reena Tripathi

और उन सभी प्रश्नों का एक ही उत्तर वो भी इशारे से पापा ऊपर सो रहे हैं

जी हां दो साल का मासूम कृष्णा अपनी तोतली आवाज से अपने पूरे घर को सर पर उठा कर रखता .. हर गाड़ी का खिलौना उसे चाहिए जो उसे हकीकत में दिखाई देती है बड़ी से लेकर छोटी गाड़ी पर ज्यादा देर नहीं थोड़ी देर बाद उन्हें तोड़ने का भी प्रयास करता। अपनी मां और पिता की आंखों का तारा ही नहीं बल्कि पूरे संयुक्त परिवार की आंखों का तारा कृष्णा ……..
*नियति कहें, समय का कुचक्र कहे , नशे की मार या युवा शाइस्तगी का अभाव**जिस बच्चे को अभी अपनों की पहचान भी सही ढंग से नहीं हुई थी उसे अपने सबसे प्रिय अपने डैडी को हमेशा के लिए अलविदा कहना पड़ा।

काश आज कल के नवयुवक रिश्तो, भावनाओं और संवेदनाओं के प्रति गंभीर हो सकते हैं। उन्हें पता होता कि उनका हर एक कदम उनकी आने वाली पीढ़ी के लिए कितना कीमती है उनके द्वारा लिया गया एक कश, उनके द्वारा पी गई एक शराब की बोतल, उनके द्वारा किया गया नशे का हर वह पहला घूंट उनके पूरे परिवार को दुख के अथाह सागर में डूबने के लिए काफी होगा ।
सब कुछ तहस-नहस करने के लिए एक गलत कदम, युवा पीढ़ी द्वारा चुना गया एक गलत रास्ता लाख आत्मानिग्रही होने के वावजूद सबके दिलों को तार-तार करने के लिए काफी होगा।

शादी के दो साल बाद जब नन्हे फरिश्ते के रूप में कृष्णा का जन्म हुआ तो पूरे परिवार में हर्षोल्लास था। शादी के 5 साल पहले जो पिता नशे का आदी हो गया था उसने भी सच्चे मन से हृदय में असीम स्नेह भरकर कसम खाई नशे की गहरी खाई की तरफ कभी भूल कर भी नहीं देखेंगा, क्योंकि अब सबके दिलों का चहेता ,सबकी आंखों का नूर और सब के सारे दर्दों को भुला देने की दवा कृष्णा आ गया था। बच्चे का नामकरण हुआ और वह भी बहुत प्यारा कृष्णा सबका उद्धार करने वाला।।
कृष्णा के लालन-पालन सुख सुविधाओं और दुलार में किसी प्रकार की कोई कमी न थी। आकाश भी प्यारी सी पत्नी और छोटे बच्चे के साथ बहुत ही उत्साह और नई उमंग के साथ जिंदगी जी रहा था। बिना चांदी की डोर और सोने के पालने फिर भी अपने मासूम बच्चे को हमेशा बाहों का झूला झुलाने वाले प्यार देने वाले बंधन को निभाना आकाश की सबसे बड़ी तमन्ना थी।
फिर ऐसा क्या हुआ कि नशे को हमेशा के लिए शपथ अलविदा करने वाला पिता मजबूर हुआ पुनः नशे में प्रवेश करने के लिए, देखते ही देखते हैं प्यार दुलार और सम्मान की मजबूत दोस्त से बंधा मजबूत परिवार आकाश को नशे से कम प्रिय लगने लगा, सारे के सारे प्यार मोहब्बत के रिश्ते बेईमानी लगने लगे। खुशहाल परिवार में उन सब की धुरी आकाश को यह समझ में आना बंद हो गया कि अब उसका जीवन उसकी पत्नी और उसके बच्चे का है जो कल को अपने भविष्य के लिए उसके कंधे का सहारा लेने को बाहें फैलाए खड़ा हुआ है।

वाकई जीवन में सही गलत का निर्णय ले पाना कठिन होता है जीवन में किया गया एक गलत फैसला पूरे रास्ते, पूरे व्यक्तित्व ,पूरे परिवार ,पूरे समाज और पूरे देश के भविष्य को बर्बाद कर देता है आकाश के साथ भी यही हुआ नशा मुक्ति केंद्र में रहने के बाद वहां ही बने दोस्त जो कि नशे से मुक्त होकर आए थे अपने समाज में आते ही फिर इस काले नशे रूपी अजगर के चक्रव्यूह में फंस गए और गाहे-बगाहे नशा करने लगे जिसका खामियाजा दोस्ती और संकोच के कारण आकाश को भी भुगतना पड़ा ।ऐसे प्यारे दोस्त कहें या पुराने जन्मों के पाप रूपी दोस्त जो भीड़ में से सामने निकल आए और बहुत ही प्यार स्नेह और दुलार के साथ शराब की लत को जो कि नशा मुक्ति केंद्र में छूट चुकी थी परिवार के अनुशासन और प्रेम में नशे की लत टूट चुकी थी उसे फिर से पोषित, सिंचित और जीवित करने में लग गए………
क्योंकि प्यार, सम्मान और परिवार की निगरानी इतनी ज्यादा थी कि खुलेआम यह सब नहीं हो सकता था तो अन्य तरीकों से नशे की सप्लाई दुश्मनों जो कि दोस्त के रूप में थे, द्वारा होती रही।

परिवार को तब पता चला जब शरीर साथ देना छोड़ दिया, खून की उल्टियां होने लगी और जिन आंखों में भविष्य का सपना होना था वहां अंधकार पैर पसारने लगा।जन्म देने वाली माता जिसने न जाने कितने पत्थरों को पूछ कर अपने सहृदय पुत्र को प्राप्त किया था शुद्ध शाकाहारी और अपने किसी भी कृत्य व आचरण से किसी को दुख ना पहुंचाने वाली मां अपने बेटे की इन मूर्तियों को रोकने तथा पूर्ण उसके सलामती के लिए वह सब करने को तैयार थी जिससे उसका जीवन बचाया जा सके और शायद कुछ और मंजूर था घंटों नहर के किनारे खड़े रहकर रोहू मछली को पकड़कर एक डॉक्टर द्वारा बताई गई विधि से खिलाने से शराब की लत छूट जाएगी ऐसा भी प्रयास करने वाली शुद्ध शाकाहारी भी हार रही थी।

लेकिन जीवन को वापस मुड़कर इस बिगड़े हुए सफर से वापस लौटकर पकड़ पाना बड़ा मुश्किल था। निश्चित रूप से आप कहेंगे इस संसार में बहुत से लोग नशा करते हैं सब को मृत्यु प्राप्त नहीं होती पर यह एक ऐसा परिवार था जहां कोई नशा नहीं करना …..ना जाने कितनी रिश्तेदारी है इसीलिए छूट गई कि नशे की पार्टी में परिवार शरीक नहीं होता था। इसे कलयुग की विडंबना करें या पुराने जन्मो का कर्ज…… नशे रूपी बवंडर में फंसे हुए बेटे को ना बचा पाने की विवशता………

माता और पिता के और भी पुत्र थे पर उस मासूम कृष्णा का क्या जिसका सिर्फ एक ही पिता था। जिसे अक्सर गोद में उठाया उसका पिता मतवाले हीरोइन की तरह इधर-उधर घुमा करता था जिसके सीने से लगकर मां की फटकार को कृष्णा रो कर भुला दिया करता था। उसे तो पता ही नहीं कि उसने क्या खो दिया था।
जीनिक रूप से आकाश का शरीर इतना मजबूर ना था कि नशे के इस दुष्प्रभाव जवाब को झेल सकता…. Liver cirrhosis की चपेट में।

परिवार के मुखिया पिता ,रिश्तेदारों और उन सब में स्नेहिल जन्म दात्री माता कीप्रार्थना, हर प्रकार के अनुरोध प्यार ,स्नेह कोई भुला दिया, जीवन के सबसे खूबसूरत बंधन में बांधने वाली पत्नी के त्याग और बलिदान, दूध मुहे मासूम जिसने अभी जीवनके सुनहरे कपोलो को ढंग से देखा भी नहीं था की मनोहारी मुस्कान और खुशी हो या गम पिता की तरफ़ सहारा खोजता बालमन, यह सब भी आकाश को ना रोक पाए
जब तक आकाश को समझ में आया कि उसे कहां रुकना है कहां मुड़ना है और किसके लिए जीना है तब तक बहुत देर हो चुकी थी जीवन और इस शरीर की बाजी हाथ से निकल चुकी थी अब लाख कोशिश कर लो ,लाख ईश्वर से प्रार्थना करो, ईश्वर को पूज लो, कुछ नहीं हो सकता था शराब के नशे रूपी इस काले दानव ने सब कुछ बर्बाद करने की ठान ली और अक्टूबर के महीने का वह दिन भी आ गया जब सब से बात करते-करते आंखों में जीवन की लालसा लिए, पत्नी का मुंह देखते हुए भाइयों का प्यार समझते हुए आकाश की आंखें जीने की लालसा लिए बंद हो गई।

वो पिता जो सुबह की पहली किरण से उठकर उन सभी दुखी दीनोऔर मदद की दरकार लिए ,किसी भी मुसीबत में फंसे हुए लोगों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहता है उसे इसका होश नहीं रहता कि उसने क्या खाया, क्या पिया और क्या पहना, जो उस हर अंतिम व्यक्ति के दुख, तकलीफ और गम में उसके साथ खड़ा रहता आज उस पिता के जीवन में ही एक ऐसा अंधकार छा गया जिसे यकीनन सह पाना बहुत ही मुश्किल था।

आज अगर एक खेलता खाता शुद्ध विचारों वाला ,शुद्ध शाकाहारी, किसी नशे की लत से कोसों दूरऔर अपने विषम परिस्थितियों में परिवार की गाड़ी को लेकर आगे बढ़कर सफलता की पराकाष्ठा को तय करने वाला पिता टूट रहा था । वह भी शायद अपने बच्चे की अनकही वेदना से जो उसकी आंखों में जाते जाते हैं देखी वह जीना चाहता था पर शायद जीवन रूपी घड़ियां उसके लिए खत्म हो चुकी थी। लाख चाहने के बाद भी पिता अपने बच्चे को जीवन ना दे सका।

सब की दुख तकलीफों को हरने वाला आज खुद इतना खोखला और टूट गया था शायद आगे के रास्ते अंधकार मय दिख रहे थे इसलिए नहीं कि सबसे प्रिय पुत्र चला गया, इसलिए कि अब वह अपने पुत्र की अर्धांगिनी अपनी बहू तथा अपने दूधमुए दो साल के कृष्णा को क्या कहकर बताएं कि वैवाहिक जीवन केचार साल ही हुए थे जिस साथी के बदौलत अपना घर बार छोड़कर प्यारी सी गुड़िया को अपने घर लाए थे उसे क्या कह कर दिलासा दें कि उनका बेटा कब आएगा।

निश्चित रूप से सब अपने अपने जीवन में समय के साथ एडजस्ट हो सकते हैं पर क्या कभी देखी है उस कृष्णा की आंखें जिसने अभी अपने पिता को ढंग से पहचाना भी अपना था ……..जब उससे यह प्रश्न किया जाता है कि डैडी कहां है तो हाथ से इशारा कर घर के ऊपर वाले कमरे को बताता है कि डैडी सो रहे हैं……… पर उसके डैडी कब तक सोते रहेंगे क्या फिर कभी अपने डैडी से माथे में और गालों में किए हुए चुम्बन स्पर्श को कृष्णा महसूस कर पाएगा?इतने प्यार से गालोको सहलाने वाले हाथ उस स्पर्श को कभी नन्ना कृष्णा महसूस कर पाएगा। निश्चित रूप से नहीं……….

कोरी और मासूम आंखें शायद उस व्यक्ति को खोजना चाहती थी जो हर रात उसे बहुत ही प्यार से थपकी देकर सुलाता था। मजाल है किबुरी हवा भी कृष्णा को छू जाए ,उसके पिता व्याकुल होकर हर वह उपाय करने की कोशिश करते थे कि कृष्णा को कोई दिक्कत नहो… और आज वही पिता अपने नाजो, दुलारो के बालक को मुसीबतों ,अनचाहे प्रश्न और भावनाओं के सूने समंदर को देकर नशे की कलुषित दुनिया में विलीन हो गए।
संयुक्त परिवार होने की वजह से शायद कृष्णा आज उन सभी पुरुषों जो उसके पिता की तरह दिखते हैं वहअपने बाबा चाचा और ताऊ को पापा और डैडी कहकर संबोधित करता।

शायद उस अबोधबालक को नहीं पता कि ऊपर वाले कमरे में कोई नहीं है ,शायद उस अबोध को नहीं पता कि जिस बाबा की पीठ में वह झूला झूल रहा है वह अंदर से कितना टूटे हुए हैं शायद उस बालक को नहीं पता कि उसकी जो सोलह सिंगार की हुईं नई नवेली गुड़िया की तरह सज संवर कर बैठीरहने वाली मां, आज सुनी मांग और सूनी आंखे लिए हुए दरवाजे की ओर निहार रही है कि शायद कहीं से आकाश वापस आएगा और उसका उजड़ा हुआ संसार फिर से बस जाएं…….. काश ईश्वर कोई चमत्कार कर सकते।

हां नशे की लत से उत्पन्न हुए इस महा बवंडर के दर्द को महसूस कर पाना या बयान कर पाना असंभव है पर आप ही सोचिए क्या कभी उस मासूम कृष्णा को अपने सभी प्रश्नों का उत्तर मिल पाएगा? निश्चित रूप से नहीं।
इसीलिए इस कहानी में भावनाएं ,संवेदनाएं और नैसर्गिक दर्द होने के बावजूद भी सबसे बड़ी सीख है कि एक कृष्णा तो हम देख रहे हैं अब दूसरा कृष्णा इस दर्द के साथ कभी ना मिले किसी पिता को अपने पुत्र को ना खोना पड़े और किसी पुत्र रूपी कृष्णा को अपने पिता को………

जी हां सही पहचाना मैं बात कर रही हूं मोहनलालगंज सांसद कौशल किशोर के पुत्र आकाश किशोर उर्फ जेबी के उस मासूम बच्चे कृष्णा की जिसे शायद पता ही नहीं कि उसके पिता अब इस दुनिया में नहीं है।

बाबा दादी की आंखों का तारा , ताऊ और ताई के दिल में हमेशा छाए रहने वाला आराध्या का सबसे प्रिय भाई और अक्सर दो नामों को लेने वाला डैडी, पापा या फिर आशु………. को इस नशे ने अपने सबसे प्रिय रिश्ते को खोने के लिए मजबूर कर दिया।

सफेद टेडी बेयर को अपने कंधों पर लेकर बाल सुलभ क्रीड़ा करते हुए कृष्णा अक्सर कहता है यह मेरा अशू है इसे सुला रहा हूं, टीवी पर पुलिस की गाड़ी आता देख बाबा के कंधों पर चोर और पुलिस का खेल खेलने का दबाव डालने वाला मासूम अपनी बालसुलभ क्रीड़ाओं से सबको हंसाने और एक डोर में बांधने का आसान जरिया है। कभी घोड़ा बन अपने बाबा को कहता बाबा बैठो …… तो कभी बाबा के मुंह से अनायास ही निकल जाता बड़ा शैतान है बड़ा नौटंकीबाज है और दिन भर की थकान मासूम कृष्णा की एक मुस्कान के साथ कोसों दूर भाग जाती………………

वाकई किसी भी युवा के लिए शायद अपने जन्म देने वाली मां को भुला देना आसान है शायद अपने पालन पोषण करने वाले पिता को भुला देना आसान है अपने साथ जीवन के सबसे सुनहरे दिन बिता देने वाली पत्नी को भुला देना आसान है पर नशे में ऐसा क्या होता है जिस की लत ने मासूम प्रकृति के सबसे मनमोहक बाल रूप, खूबसूरत भेट कृष्णा की किलकारियां, कृष्णा की मासूम बाल सुलभ क्रीड़ाओं, और मनोहर करती भोली अदाओं को भी बुला दिया।

निश्चित रूप से परिस्थितियां विषम थी और इन विषम परिस्थितियों में एक दूरदर्शी पिता एक दृढ़ प्रतिज्ञ व्यक्ति ने निश्चय किया कि मेरा बेटा नशे की बलि चढ़ा है पर है ईश्वर अब किसी और के पिता को ऐसे दिन ना देखने पड़े, किसी और के मासूम बच्चे को अपने पिता से महरूम ना होना पड़े, किसी और की बेटी और बहू को जमीन में पड़े हुए मृत शरीर से लिपट कर विव्हल हो रोना ना पड़े।

उन सभी युवाओं को विचार करना चाहिए …आपने तो अपना जीवन अपने पिता के कंधे पर और उसकी गोद में झूला झूल कर और उसकी उंगलियों को पकड़ , चलकर बिता दिया पर आपने क्यों नशे की लत मेंआगे बढ़ते हुए उस मासूम की भावनाओं को कुचल दिया जो इन सभी क्रियाओं के लिए आपका इंतजार कर रहा था।

जागे सचेत हो जाएं और अपनों को भी सचेत करें फिर कोई मासूम कृष्णा ना चाहते हुए भी हजारों प्रश्नों को आप से पूछने के लिए मजबूर ना हो…………………

फिर किसी पिता को अपने दिल पर पत्थर रखकर रोज नित प्रति अपने पुत्र के तस्वीर पर फूल चढ़ाते हुए दो आंसू ना गिराने पड़े। समाज की सबसे बड़ी विडंबना और कुरीति नशे से मुक्ति मिल सके दिल में गम के गहरे कुएं होने के बाद भी समाज को सीख देने के लिए फिर किसी कौशल किशोर को उठकर खड़ा ना होना पड़े।
सोचे समझे और मनन करें आग्रह है उन सभी युवाओं से जो अभी तक नशे के चंगुल में नहीं फंसे, जो अभी तक छल प्रपंची दोस्तों के शिकंजे में नहीं आए और जो अभी तक अपने परिवारों से दूर नहीं हुए ।।

जागो मनन करो अपने मन के किसी कोने में बसे मासूम कृष्णा को देखो जो ताउम्र खामोश नहीं रहेगा
यह एक दृढ़ संकल्प पिता का संकल्प हो सकती है ,सकारात्मक सोच का नतीजा हो सकता है कि संकल्प के साथ एक मुहिम शुरू हुई *समाज को नशा मुक्त बनाना की
और नाम दिया

अभियान कौशल का नशा मुक्त समाज।

अभियान कौशल का.…… नशा मुक्त समाज बनाना है उस नौजवान को इस अभियान से जोड़े जो नशा नहीं करता*। ताकि फिर कोई कृष्णा मासूम और गंगाजल सी शुद्ध आंखों से समाज से प्रश्न न करें

 

 

 

रीना त्रिपाठी

About the author

Reena Tripathi

(Reporter)

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