झण्डा गीत या ध्वज गीत की रचना श्यामलाल गुप्त पार्षद ने की थी।7पद वाले इस मूल गीत के तीन पद(पद संख्या 1,6 व 7) को संशोधित कर कांग्रेस ने ‘ध्वजगीत’ के रूप में इसे राष्ट्रीय गीत घोषित किया।
मूल झण्डा गीत
मूल रूप में लिखा गया झण्डा गीत इस प्रकार है:-
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा।
सदा शक्ति बरसाने वाला,
प्रेम सुधा सरसाने वाला,
वीरों को हरषाने वाला,
मातृभूमि का तन-मन सारा।। झंडा…।
स्वतंत्रता के भीषण रण में,
लखकर बढ़े जोश क्षण-क्षण में,
कांपे शत्रु देखकर मन में,
मिट जाए भय संकट सारा।। झंडा…।
इस झंडे के नीचे निर्भय,
लें स्वराज्य यह अविचल निश्चय,
बोलें भारत माता की जय,
स्वतंत्रता हो ध्येय हमारा।। झंडा…।
एक साथ सब मिलकर गाओ,
प्यारा भारत देश हमारा।। झंडा…।
इसकी शान न जाने पाए,
चाहे जान भले ही जाए,
विश्व-विजय करके दिखलाएं,
तब होवे प्रण पूर्ण हमारा।। झंडा…।
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,
झंडा ऊंचा रहे हमारा।
ध्वज गीत का इतिहास
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“विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,झण्डा ऊँचा रहे हमारा” नामक उक्त सुविख्यात झण्डा गीत को 1938 के कांग्रेस अधिवेशन में स्वीकार किया गया था।इस गीत के रचनाकार श्यामलाल गुप्त’पार्षद’कानपुर के पास नरवल के रहने वाले थे।उनका जन्म 16सितंबर, 1893को वैश्य परिवार में हुआ था।गरीबी में भी उन्होंने उच्च शिक्षा हासिल की थी।उनमें देशभक्ति का अटूट जज्बा था,जिसे वह प्रायः अपनी ओजस्वी राष्ट्रीय कविताओं में व्यक्त करते थे।कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता रहने के बाद वह 1923में फतेहपुर के जिला कांग्रेस अध्यक्ष भी बने।वह ‘सचिव’ नामक एक अखबार भी निकालते थे।
जब यह लगने लगा कि अब आजादी अवश्यंभावी है,एक अलग “झण्डा गीत” की जरूरत महसूस की जाने लगी।गणेश शंकर विद्यार्थी पार्षदजी के काव्य-कौशल से अवगत थे,कायल थे।विद्यार्थीजी ने ही पार्षदजी से झण्डा गीत लिखने का अनुरोध किया। पार्षदजी कई दिनों तक कोशिश करते रहे,पर वह संतोषजनक झण्डा गीत नहीं लिख पाए।तब खीझकर विद्यार्थीजी ने पार्षदजी से साफ-साफ कह दिया कि उन्हें हर हाल में कल सुबह तक “झण्डा गीत” चाहिए।पार्षदजी ने आधी रात तक झण्डे पर एक नया गीत तो लिख डाला,लेकिन वह खुद उन्हें जम नहीं रहा था।निराश हो कर रात दो बजे जब वह सोने के लिए लेटे,अचानक उनके भीतर नये भाव उमड़ने लगे।वह उठकर नया गीत लिखने बैठ गये। पार्षदजी को लगा जैसे उनकी कलम अपने आप चल रही हो और ‘भारत माता’ उन से वह गीत लिखा रही हो। यह गीत था-“विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झण्डा ऊँचा रहे हमारा।” गीत लिख कर उन्हें बहुत सन्तोष मिला।
सुबह होते ही,पार्षदजी ने यह गीत ‘विद्यार्थी’जी को भेज दिया,जो उन्हें बहुत पसन्द आया।जब यह गीत गांधीजी के पास गया,तो उन्होंने गीत को छोटा करने की सलाह दी।1938में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की अध्यक्षता में हुए हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन में इसे देश के झण्डा गीत के रूप में स्वीकृति दी गई। 19फरवरी,1938को नेताजी ने झण्डारोहण किया और वहाँ मौजूद करीब पाँच हजार लोगों ने इसे एक सुर में गाया था।
पण्डित चन्द्रिका प्रसाद ‘जिज्ञासु’ द्वारा सम्पादित पुस्तक राष्ट्रीय झण्डा अथवा स्वदेशी खादी पर प्रतिबन्ध इसलिए लगा दिया गया था क्योँकि सम्पादक ने उस पुस्तक में इस गीत के पद क्रमांक 2 और 3 को छोड़कर केवल पाँच पद राष्ट्रीय झण्डा शीर्षक से छापे थे।यह पुस्तक राष्ट्रीय अभिलेखागार में प्रतिबन्धित साहित्य अवाप्ति क्रमांक 1679के अन्तर्गत आज भी सुरक्षित है।
पंकज कुमार श्रीवास्तव
रांची
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