राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति भवन में 17 अगस्त को होगा कार्यक्रम
जयपुर ! ग्रासरूट मीडिया फाउंडेशन की ओर से आयोजित होने वाले पाठक पर्व में इस बार 3 पुस्तकों पर चर्चा की जाएगी। इसमे राही मासूम रज़ा की पुस्तक ’आधा गांव’ पर प्रबोध कुमार गोविल, संजय बारू की एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर पर डॉ नीरज रावत और पन्ना लाल पटेल की पुस्तक ’मानवीनी भवाई’ पर दिनेश पांचाल पाठक के रूप में अपनी बात रखेंगे। यह कार्यक्रम राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति भवन में 17 अगस्त शनिवार को सायं 4.30 बजे होगा।
कार्यक्रम संयोजक प्रमोद शर्मा ने बताया कि पाठक पर्व में पुस्तकों की कथा वस्तु पर चर्चा की जाती है और पुस्तक को क्यों पढ़ा जाना चाहिए इसके बारे में विस्तार से अपने विचार प्रकट किए जाते है। इस कार्यक्रम के प्रारंभ में प्रदीप सिंह चौहान की पुस्तक ’साझी सॉंझ की कविता’ और डॉ.रेखा खैराड़ी की पुस्तक ’हिन्दी में डायरी लेखन का स्वरूप’ का लोकार्पण भी होगा। इस संग्रह की कविताओं में प्रदीप सिंह अपने परिवेश, संस्कृति, परिस्थितियों और विविधताओं को बहुत ही कौशल के साथ प्रस्तुत किया है। इन कविताओं में कहकहों की चौपालें, मुस्कुराते आंगन, परेशानी पढ़ते मुखिया, पहचान करती पीढ़ियाँ, हांफता शहर और रेंगते गांव का स्वाभाविक चित्रण है। साँझ का समय परिवार के साथ सुख-दुख बांटने का सर्वोत्तम समय होता है लेकिन परिस्थितियों और विशेषकर मोबाइल की आदी हुई पीढ़ी ने साथ होते हुए भी मानसिक दूरियाँ बढ़ा दी है। ऐसे में साझी साँझ का होना असंभव-सा बना दिया है। ऐसे विकट समय में प्रदीप सिंह की कलम ने ’साझी साँझ की कविता’ का सृजन इस संग्रह में किया है।
इसी तरह डॉ. रेखा खराड़ी का यह आलोचनात्मक ग्रंथ है जिस पर इन्होंने पीएचडी भी की है। उनका एक काव्य संग्रह भी है। इस आलोचनात्मक पुस्तक “ हिंदी में डायरी लेखन का स्वरूपःविकास और परंपरा“ में डायरी विधा का अर्थ ,स्वरूप और उसके विकास एवं लक्षणों पर प्रकाश डाला है। हिंदी में प्राचीनकाल ,मध्यकाल एवं आधुनिक काल में डायरी के स्वरूप का विश्लेषण करते हुए डायरी लेखन की परंपरा को स्पष्ट किया है। इसमें गद्य की आत्माभिव्यक्ति की अन्य विधाओं जैसे रिपोर्ताज, संस्मरण, आत्मकथा, जीवनी और पत्र के साथ अंतर्संबंध स्थापित करते हुए डायरी के महत्व को सिद्ध किया है।
हिंदी की प्रमुख साहित्यिक डायरियों में मुक्तिबोध की ’एक साहित्यिक की डायरी’, दिनकर की डायरी, मोहन राकेश की डायरी, मैत्रेयी पुष्पा की,’फाइटर की डायरी’, अज्ञेय की डायरियाँ- ’अंतरा’, ’भवंति’, ’शेषा’, ’कविमन’, कृष्ण बलदेव वैद की डायरियाँ-’ख्वाब है दीवाने का’, ’डुबोया मुझको होने ने’, मालचन्द तिवाड़ी की, ’बोरूंदा डायरी’, रमेशचन्द्र शाह की डायरियाँ-’अकेला मेला’, ’ इस खिड़की से’, ’ आज और अभी’, ’जब ऑख खुल गई’, बिशन टण्डन की,’आपातकाल की डायरी’, आदि को शामिल किया है। इसमें डायरीकारों के जीवन संघर्ष, कम होती संवेदना के साथ-साथ तत्कालीन समाज के मानव-मूल्यों, सामाजिक समस्याओं को उजागर किया है। इसमें लेखकों के आत्मकथ्य, भ्रमण, दैनंदिन जीवन, लेखक के सामाजिक-राजनीतिक विचारों को स्पष्ट किया है। डायरीकार की भाषा-शैली एवं साहित्यकार के डायरी लेखन में रचनात्मक अवदान पर प्रकाश डाला गया है।
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