** जलद ,जलधर, नीरज, सारंग, पयोधर के रूप में वाकई प्रकृति विलक्षण है | प्रकृति ने कितने रंग बनाए हैं इसमें कितने सेट्स भी बनाए जो अद्भुत है| इन सब में सबसे विलक्षण प्रकृति की कृति मनुष्य को उसे प्राकृतिक सौंदर्य को अनुभूत करने की क्षमता देना .
हमने बचपन से आकाश में बादलों के कई रंग देखे हैं कुछ सफेद तो कुछ नीले, कुछ काजल से भी यह काले और डरावने , कुछ प्रेम और स्नेह की लालिमा लिए ,कुछ धुंधले , कुछ बहुत ही विशाल तो कुछ बिंदी के समान छोटे कितनी विलक्षणता, कितनी सफाई से रंगो में अंतर |
कितनी निर्मलता लिए हुए प्रकृति के आकाश में बादल के विभिन्न रूप हम सब ने देखें ,इनके विलक्षण रंग जो चाह कर भी मनुष्य नहीं बना सकता|
बचपन से बहुत सी दादी की कहानियों में सुना था कि चांद पर एक बुढ़िया बैठकर सूत कात रही होगी जो आसमान में अपनी टोकरी से रुई फैला कर रखती है और इसी रुई से पतले पतले सुंदर धागे बनाती है , हम सब कहीं ना कहीं उसे मान भी लेते थे और आनंदित हो कर आसमान में उसे खोजते थे, पर आज यह सब हास्यास्पद लगता है क्योंकि यह हमारी कल्पना थी जो यहीं तक सीमित थी|
आज के वैज्ञानिक युग में हम आसमान को चीरते हुए हजारों किलोमीटर के सफर को कुछ मिनटों और घंटों में तय कर लेते हैं वहां जाकर पता चलता है कि सूत काटने वाली बुढ़िया तो कहीं नहीं मिली पर हजारों किलोमीटर के बाद प्रकृति की विलक्षण क्षमता अद्भुत परिदृश्य आकाश में फैला चिरंतन निर्मल, शाश्वत ,अनंत, शांत वातावरण जहां सत्यता का वास्ता झूठ की परछाई कहीं पर भी नहीं होता मौजूद है| हमें हमेशा छत्रछाया प्रदान करने वाले बादल कब हमारे बगल से गुजर जाते और हमें रोमांचक स्पर्श दे जाते यह अनुभव ही विलक्षण है|
अफसोस तो सिर्फ इतना कि कहीं मनुष्य इस निर्मल अश्क पर खलल डाल कर इसे धुंधला ना कर दे ,उसकी प्राकृतिक छटा को नष्ट न कर दें|
बादलों को पृथ्वी से देखने पर शायद यह कल्पना करना मुश्किल है की धुंधले ,उजले और पत्थर के समान कठोर वारीधर को कभी अपने बगल से गुजरता हुआ भी मनुष्य देख और महसूस कर सकेगा पर आज यह अकल्पनीय कल्पना भी सच हो गई आसमान को चीरती हुई मानव की विलक्षण बुद्धि के आविष्कार अंतरिक्ष तक भी पहुंच गए और उसे भी वहां ले गए|
निष्कपट प्रकृति के उस अपरिचित , कल्पित कल्पना , सास्वत सत्यता को देखकर मनुष्य की मूर्खता अज्ञानता अल्प कल्पना पर हंसी भी आती है पर प्रकृति के अनसुलझे रहस्य उसके जादू को सुलझाने का सौभाग्य विज्ञान ने हमें दिया इस पर गर्व भी होता है|
आसमान में बादलों को चीर कर अपने चारों ओर कोमल रूई के फाहे के बीच से गुजरना वाकई अनुभवातीत शब्द रहित वर्णन है| अद्भुत अनुभूति समय को पकड़ने उसे वैज्ञानिक गति से पीछे छोड़ने का अदम्य साहस हवाई सफर से मनुष्य ने कर दिखाया| आसमान में बादल के रूप में ,सब है पर कुछ नहीं, बड़े-बड़े बादल सफेद बर्फ से उज्जवल टुकड़े का भाप के सिवा कोई अस्तित्व नहीं |अमरता शाश्वत स्वतंत्रता और विभिन्न रंगों को लिए हुए फिर भी कोई रंग नहीं ….हां यह सही है कि हमारी प्रकृति की निर्मलता उसकी सादगी ने हमें सब दिया और सबसे उत्तम और उत्कृष्ट चीज मनुष्य में दिमाग और उसकी आंखें दी जो उसे इस अद्भुत अभिकल्पन मोहक सुंदरी को महसूस करने और मनुष्य को प्रकृति से जोड़ने ,अपने अद्भुत रूप सुंदरी लावण्य को परखने योग्य बनाता है|
मनुष्य कि दुनिया के राग द्वेष से दूर प्रकृति की बसाई हुई इस अद्भुत दुनिया…. हमारी कल्पना में परी लोक और आकाश की अमित अनंत अविनाशी अविकल्पक दुनिया वाकई अद्भुत है, जहां आनंद की कोई सीमा नहीं असंभव की कोई कल्पना नहीं|
आज हमने क्या कुछ नहीं बना लिया कितनी सीमाएं बाट ली, फिर इन्हें बनाए रखने के लिए कितना संघर्ष किया ,कितने अपनों को इस जंग में मिटा दिया, फिर भी परतंत्रता अज्ञानता विकल्पता की बेड़ियों से बंधे रहे…. सब बनाने के बाद भी हम निरीह प्राणी प्रकृति के सामने घुटने टेकने को विवश हैं|
प्रकृति ने सीमा रहित बंधन रहित हमें वह सब दिया जो उसके आनंददायक कल्पना को भोगने के लिए आवश्यक था |अच्छा हो कि मनुष्य को उसकी कुटिलता स्वार्थपरता और पर्यावरण से खिलवाड़ का ज्ञान समय से हो जाए , मनुष्य स्थिर अस्तित्व का नहीं बल्कि अपनी बुद्धि से कल्पित क्षणिक कल्पना का सुख भोग रहा है और इस अंधी दौड़ में जो प्रकृति ने उसे प्रदान किया है उसे खोता जा रहा है प्रदूषित करता जा रहा है |
काश हम मनुष्य प्रकृति को उसके उसी रूप में रख पाते जैसा उसने हमें खुद को सौंपा है ,उसे बेवजह अशुद्ध ना किया जाए तो बेहतर होता| प्रकृति के स्वतंत्रता में बाधा बनते , हम मनुष्य विकास की आड़ में प्रकृति को मात देने की जंग में सब कुछ खत्म ना कर दें …
हम प्रकृति के कितने ही विकल्प बनाने की कोशिश क्यों ना करें, आकाश के कितने भी पर्यायवाची क्यों न गढ़ ले परंतु बादलों से बरसता हुआ पानी, उनकी काली आभा और उनकी नीलोत्पल दूध का धुला स्वरूप सब हमारी कल्पना से परे है और हमारे विज्ञान से बहुत आगे है क्या एक बार नष्ट होने के बाद हम उसे वापस कर पाएंगे|
हवाई उड़ानों से हम आकाश के ऊपर तो निकल सकते हैं पर उसकी सहजता उसका उजाला और हमें रोशन करने को बेताब उसकी उज्जवलता कहीं ना कहीं हमारी मूर्खता पर कटु मुस्कान भर रहे हैं और अपने अस्तित्व पर गर्व महसूस कर रहे हैं,हो सकता है मनुष्य अपनी बुद्धिमत्ता और प्रकृति के चमत्कार को तोड़ने की अपनी क्षमता पर गर्व महसूस कर रहा हो पर कहीं ना कहीं हम सब कुछ खत्म करने के मार्ग पर अग्रसर हैं और प्रकृति हमारी मूर्खता पर हमें क्या सजा देगी इसकी हम कल्पना से परे हैं|
हवाई यात्रा में आकाश में उड़ते सफेद बादल हमारे अगल बगल से उड़कर खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं हमने प्रगति के अविस्मरणीय तिलिस्म को तोड़ दिया और आकाश और उसकी सीमा को पार कर चंद्रमा ,मंगल और अब तो सूरज को विजित करने का प्रयास हो रहा हैं |
गर्व है कि हमें प्रकृति को सोचने समझने और कल्पित करने की शक्ति ईश्वर ने प्रदान की है पर अफसोस किए हैं प्रकृति के प्राकृतिक कार्य में बाधक बनने को तैयार खड़े हैं ,हजारों किलोमीटर की दूरी कुछ मिनटों में सिमट तो जरूर गई है| आज मनुष्य भीड़ में एकांत और एकांत में मानसिक व्यग्रता मनुष्य स्वभाविक लक्षण होता जा रहा है|
अगर हम प्रकृति से कुछ सीख पाते और उसे बिना नुकसान पहुंचाए प्राकृतिक अनुभव का उपभोग अपनी सुविधाओं हेतु कर सकते तो हमारे अस्तित्व के लिए अच्छा होता|
आज बढ़ते प्राकृतिक प्रदूषण ने हमारे मन में भय व्याप्त ना किया तो निश्चित रूप से हम सब कुछ विकास के इस यज्ञ में स्वाहा कर देंगे और जो अपनी जननी प्रकृति का सामान और रक्षा न कर सके उसकी रक्षा कौन करेगा यह कह पाना बड़ा मुश्किल है……..
आज भारत में हवाई सफर से सालाना करीब एक मिलियन टन कार्बन डाईऑक्साइड उत्पन्न हो रही है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की जीडीपी में 1.5 फीसद हिस्सा उड्डयन क्षेत्र का है। 2020 तक भारत उड्डयन हिस्सेदारी वाला विश्व का तीसरा सबसे बड़ा देश होगा।
ज्यों-ज्यों मानव सभ्यता का विकास हो रहा है, त्यों-त्यों पर्यावरण में प्रदूषण की मात्रा बढ़ती ही जा रही है। जैसा कि हम सब जानते हैं, इसे बढ़ाने में मनुष्य के क्रियाकलाप और उनकी जीवनशैली काफी हद तक जिम्मेवार है। सभ्यता के विकास के साथ-साथ मनुष्य ने कई नए आविष्कार किए हैं जिससे औद्योगीकरण एवं नगरीकरण की प्रवृत्ति बढ़ी है।
गौर किया जाए तो प्रदूषण वृद्धि का मुख्य कारण मानव की अवांछित गतिविधियां रही है बेशक हमने समय को कैद कर लिया पर इतना कूड़ा-कचरा विभिन्न रूपों में इधर-उधर फेंका जो ना सिर्फ जल, वायु और भूमि प्रदूषित कर रहे है बल्कि आकाश और अंतरिक्ष भी अछूता नहीं रहा, हमारे द्वारा किया गया यह प्रदूषण, संपूर्ण प्राणी-जगत के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं।
एक वैज्ञानिक शोध में पाया गया कि हवाई जहाज जब उड़ता और उतरता है तो उसे जितनी ऊर्जा की जरूरत पड़ती है, वह घास काटने वाली 20 हजार मशीनों को लगातार 20 घंटे तक चलाए जाने में खर्च होने वाली ऊर्जा के बराबर होती है। ऐसे में दोनों ही समय प्रदूषक गैसों का भी कहीं अधिक मात्रा में उत्सर्जन होता है। सड़क मार्ग से सफर करने पर जो वायु प्रदूषण होता है, हवाई सफर में उससे चार गुना तक अधिक प्रदूषण होता है। इस दौरान कार्बन डाईऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, बैंजीन और टयूलिन इत्यादि गैसों का उत्सर्जन होता है। नाइट्रोजन ऑक्साइड, बैंजीन व टयूलिन मिलकर ओजोन गैस उत्पन्न करती हैं। ऐसे में हवाई सफर से ग्लोबल वार्मिग में भी वृद्धि हो रही है। इसमें संदेह नहीं कि हवाई जहाज उड़ते और उतरते समय ही नहीं बल्कि हवा में रहते हुए भी प्रदूषण फैलाते हैं। वातावरण में मौजूद कुल धुएं में आज हवाई सफर के दौरान निकलने वाले धुएं की हिस्सेदारी तीन फीसद तक पहुंच चुकी है। इसलिए यह विषय अब वैश्विक मुद्दा बन गया है। यूरोप में तो रात 10 बजे के बाद हवाई जहाज के उड़ने एवं उतरने पर प्रतिबंध भी लगा दिया गया है|हवाई सफर से हो रहे वायु प्रदूषण में अमेरिका नंबर एक पर है। वहां कुल धुएं में 11 फीसद से ज्यादा हिस्सेदारी हवाई जहाजों से उत्पन्न धुएं की है। भारत में भी यह तेजी से बढ़ रहा है।
प्रकृति के अभिलक्षण पुत्र होने का धन्यवाद हमें प्रकृति को बिना नुकसान पहुंचाए विकसित हो देना होगा यही संकल्प करते हुए विकास की योजनाएं बनानी होंगी और यदि ऐसा न हुआ तो हमें अपने विनाश हेतु भी तैयार रहना होगा| सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक नीतियां ऐसी गठित करनी होंगी जो हमें सुविधाएं तो दे प्रकृति से प्रेम वश लेने का आग्रह तो कराएं और प्रकृति को नष्ट ना करें|

रीना त्रिपाठी
You must be logged in to post a comment.