उत्तर प्रदेश गोंडा स्वास्थ्य

कोरोना योद्धा बन समर्पण भाव से काम कर रहीं आशा कार्यकर्ता रीता तिवारी

– सूझबूझ से प्रवासी मजदूरों को करा रहीं कोरेंटाइन

– समुदाय को कोरोना से सुरक्षित करने का कर रहीं हर संभव प्रयास

गोंडा|”घर से निकलने में डर लगता है पर क्या करूं? काम है तो जाना ही पड़ेगा।” ये शब्द उस आशा कार्यकर्ता रीता तिवारी के हैं, जो रोज घर-घर जाकर ग्रामीणों को साफ़-सफाई और घर में रहने की नसीहत दे रही हैं।

सीएचसी काजीदेवर, ब्लॉक झंझरी के ग्राम सभा बनवरिया की आशा कार्यकर्ता रीता तिवारी का कहना है हम आशा कार्यकर्ता घर-घर जाकर लोगों की स्वास्थ्य संबंधी जानकारी ले रहे हैं कि घर के किसी सदस्य में बुखार, सर्दी, खांसी या कोरोना संक्रमण का कोई लक्षण तो नहीं है ।

रीता का कहना है कि सर्वे के दौरान कई तरह की परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है, कई जगहों पर लोग पूरी जानकारी देने से भी कतराते है, लोग यह बातें नहीं बताना चाहते है कि घर में कोई सदस्य बाहर से आया है । इतना ही नहीं कुछ लोग तो हमसे ही तरह-तरह के सवाल करने लगते हैं । वहीं कई जगहों पर सर्वे कार्य में लोगों का काफी सहयोग मिलता है। लोग सम्मानपूर्वक बिठाते हैं तथा सर्वे में अपना सहयोग करते है। परन्तु कई परिवार बिल्कुल सहयोग नहीं करते हैं। इन सभी परेशानियों को नजरअंदाज करते हुए हम लोगो से स्वास्थ्य संबंधी जानकारी ले कर अपना कार्य कर रहे है।

डर के आगे जीत-

रीता बताती हैं कि एक दिन गांव से फोन आया कि दीदी हमारे पड़ोस में बंबई से आये हैं।” जनपद गोंडा के बनवरिया गाँव में शहर से वापस आये मजदूरों को कायदे से 21 दिन के लिए क्वारंटाइन होना था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया था।

रीता को पता था कि वह गांव में जाकर उन लोगों से कोरेंटाइन होने की बात करेगी, तो वे सभी लोग विरोध करेंगे । रीता ने प्रधान को फोन करके तुरंत झूठी कहानी गढ़ दी। “हमें स्वास्थ्य विभाग से फोन आया है कि वह बंबई से आये हैं। अब सबके ऑनलाइन टिकट की डिटेल से यह खबर सरकार को पता चल रही है कि किस गाँव में बाहर से कितने लोग आ रहे हैं ।

रीता की इन बातों से सहमत ग्राम प्रधान ने बंबई व् अन्य जगहों से आये प्रवासियों को तुरंत घर में ही 21 दिन के लिए क्वारंटाइन कर दिया।

अगले 21 दिन तक वो रोज़ क्वारंटाइन किये लोगों से मिलती रही, ये देखने के लिए कि उन्हें सर्दी, जुखाम, बुखार तो नहीं आ रहा।

जिला मुख्यालय से लगभग चार किलोमीटर दूर झंझरी ब्लॉक के बनवरिया गाँव की रहने वाली रीता तिवारी की दिनचर्या सुबह पांच छह बजे से शुरू हो जाती है। सुबह की चाय से लेकर खाना बनाने तक की जिम्मेदारी पूरी करके रीता सुबह नौ बजे तक गाँव की गलियों में सबके हाल खबर लेने निकल जाती हैं। मैरून बार्डर में क्रीम कलर की साड़ी पहन चेहरे पर मास्क लगाकर गाँव के खडंजे (ईंट से बनी गाँव की सड़क) पर खड़ी रीता एक घर के सामने एक परिवार को बता रहीं थीं, “आप हमेशा मुंह पर कपड़े बांधे रखो। जरूरी न हो तो घर के बाहर मत निकलना। साबुन से बार-बार हाथ धोना, एक दूसरे से दो तीन हाथ की दूरी बनाकर रहना है।”

जून महीने की चिलचिलाती धूप में रीता के चेहरे से पसीना निकल रहा था पर वो अपने काम में लगी थी।
रीता बोलीं, “हमें कितनी भी मेहनत करनी पड़े हम करेंगे पर गाँव में कोरोना नहीं फैलने देंगे,” ये कहते हुए रीता के चेहरे पर आत्मविश्वास था।

जब आप बनवरिया गाँव में घुसेंगे तो आपको जगह-जगह दीवारों पर लिखे कई सारे स्लोगन दिख जाएंगे। कहीं लिखा है “हम गाँव की आशा ने मिलकर यह ठाना है, सब घर में रहो देश से कोरोना को भगाना है” तो कहीं लिखा है, ‘पापा घर में रहो बाहर कोरोना है, सब मिलकर साथ रहें, नहीं किसी को खोना है’ ऐसे दर्जनों लिखे स्लोगन पर आपकी नजर पड़ जायेगी। इतना ही कोरोना संक्रमण के बचाव के प्रति ग्रामीणों को जागरूक करने के अलावा रीता के पास गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी की कभी भी कॉल आ जाती है। ऐसे में इनके काम करने के कोई घंटे निर्धारित नहीं हैं।

अधिकारी ने सराहा –

डीसीपीएम डॉ आरपी सिंह का कहना है कि आशा कार्यकर्ता इस समय अपने-अपने गाँव की पल-पल की खबर स्वास्थ्य विभाग तक पहुंचा रही हैं। गांव में कितने प्रवासी आये, कितने कोरेंटीन हैं तथा कितने लोगों का कोरेंटीन अवधि पूरा हो गया है, ये डेटा आशा कार्यकर्ता अपने बीसीपीएम को उपलब्ध कराती हैं, जोकि बीसीपीएम द्वारा प्रतिदिन पोर्टल पर अपलोड कर दिया जाता है । उनका कहना है कि आशा कार्यकर्ताओं के पास अपने गावं की हर खबर मिलेगी । इन्हें पता है गाँव के किस व्यक्ति में खांसी, जुखाम, बुखार, गले में दर्द, शुगर और टीबी के लक्षण हैं, कितने लोग दूसरे राज्यों से आये हैं, कितने लोगों की कोविड-19 की जांचे हुई हैं या होनी हैं।

About the author

राजेंद्र सिंह

राजेंद्र सिंह (सम्पादक)

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