28 सितम्बर 1907- शहीद ए आजम भगत सिंह की जन्म जयन्ती पर अप्रतिम साहसी क्रांतिकारी, प्रबुद्ध विचारक,प्रगतिशील चिंतक,अद्वितीय लेखक, क्रान्ति के पर्याय बन चुके भारत माता के महान सपूत को कोटिशः नमन।
‘उसे फिक्र है हरदम नई तर्जे जफ़ा क्या है। हमें शौक है देखें तो सितम की इन्तिहा क्या है?।।’
‘इस कद्र वाकिफ है मेरी कलम मेरे जज्बातों से। इश्क भी लिखना चाहूं तो इन्कलाब लिख जाता है।।’
‘दिल से जायेगी न मरकर भी वतन की उल्फत। मेरी मिट्टी से भी खुशबू ए वतन आयेगी।।’
– भगत सिंह
भारतीय नागरिक परिषद एकमात्र ऐसा संगठन है जो देश की आजादी के लिए कुर्बान होने वाले क्रांतिकारी और शहीदों कि उन यादों और समय के उन सुनहरे पन्नों को साधारण जनमानस के सामने मंच के माध्यम से रखने का काम करता है। *हमारी वर्तमान और आने वाली पीढ़ियां इस बात को जान सके, हमारे नवयुवक इस बात का आभास कर सकें कि आज वह जिस स्वतंत्र हवा में सांस ले रहे हैं उसमें अमर शहीदों का क्या योगदान है ?उन्होंने अपने प्राण देकर स्वतंत्रता की यह हवा पानी और मिट्टी हमें सौंपी है। भारतीय नागरिक परिषद का कार्यक्रम *भगत सिंह और मजदूर आंदोलन नामक संगोष्ठी के माध्यम से कानपुर में आयोजित किया गया पर अफसोस कि लखनऊ अछूता रह गया। लखनऊ में हजारों तथाकथित स्वयंसेवी संगठन है और राष्ट्रवाद की बात करने वाले विद्वान खामोश रहे क्यों यह कारण नहीं पता? पर एक भी कार्यक्रम आयोजित नहीं हुआ जो बेहद अफसोस जनक है।
जहाँ भी अन्याय, जुल्म और अनाचार है उसके खिलाफ उठने वाली हर आवाज भगत सिंह है :भगत सिंह की जन्म जयन्ती पर इस सोच के साथ कार्यक्रम का आगाज कानपुर में भारतीय नागरिक परिषद द्वारा हुआ जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में ऑल इंडिया पावर फेडरेशन के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे ने बहुत ही जुझारू और आईना दिखाने वाले बिंदु प्रस्तुत किए
आज की वर्तमान परिस्थितियों पर समय-समय पर शहीद ए आजम भगत सिंह और मजदूरों के हक में भगत सिंह द्वारा उठाये गए सवालों पर विचारोत्तेजक परिचर्चा होना बहुत ही आवश्यक है । जिस पब्लिक सेफ्टी बिल का विरोध बम फोड़ कर असेंबली में बैठे बहरों को सुनाने के लिए किया गया था क्या आज नित प्रति दिन मजदूरों और कर्मचारियों के हित में बनने वाले दमनकारी कानूनों का विरोध पब्लिक सेफ्टी बिल की तरह कर्मचारियों को नहीं करना चाहिए। यह क्या कर्मचारी शिक्षकों और मजदूरों में अब सिर्फ शोषण को सहने की शक्ति ही बची है।महज 23 साल की छोटी उम्र में दुनिया को मशाल दिखाने वाले महान क्रांतिकारी शहीद ए आजम भगत सिंह क्यों आज बड़े बड़े आयोजनों और मेलों में नहीं याद किए जाते?? जबकि चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह आज भी नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत हैं आज भी क्रांति की बातें इन दोनों के सिवा आजादी की लड़ाई इन दोनों महान सपूतों के बिना असंभव थी यह सभी को पता है।
शहीद ए आजम भगत सिंह विश्व के उन वीर क्रांतिकारियों की परंपरा में से थे जिन्होंने विभिन्न देशों के इतिहास में नवजीवन का संचार किया तथा राष्ट्रीय चेतना को जगाया। वे भारत के इतिहास में उस सतत संघर्ष और गौरवमय पीढ़ी के प्रतीक थे, जिन्होने देश के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया। वे एक निर्भय क्रांतिकारी के साथ एक प्रबुद्ध विचारक,गहन अध्यनकर्ता,प्रगतिशील चिंतक और अद्वितीय लेखक थे। सही मायने में वे क्रान्ति की आत्मा थे और क्रान्ति उनके रोम रोम में बसी थी। भगत सिंह की प्रासंगिकता युवा भारत के उदय के साथ और बढ़ गई है। भगत सिंह सचमुच एक राष्ट्रनायक थे । 23 मार्च 1931 में शहादत के 90 साल बाद भी वे सबसे अविस्मरणीय प्रतीक बने हुए हैं,वाकई कोई चमत्कारिक व्यक्तित्व ही ऐसा कर सकता है।
भगत सिंह के स्मरण का अर्थ है हर क्षेत्र , हर दल और विचार में घुसी जातीय विद्रूपताओं व् संकीर्णताओं को अपने व्यवहार से ख़त्म करे , दहेज़ , कन्या भ्रूण ह्त्या , स्त्री अपमान , अंध विश्वास भगत सिंह की क्रांतिकारी ज्वालाओं में भस्म हों तभी उनका स्मरण सार्थक होगा | मैंने ट्रेड यूनियन लीडर शैलेंद्र दुबे जी को अक्सर कहते सुना है जहाँ भी अन्याय, जुल्म और अनाचार है उसके खिलाफ उठने वाली हर आवाज भगत सिंह है |
भगत सिंह चन्द्र शेखर आजाद से मिलने के लिए कानपुर आये थे और एक पत्रकार के तौर पर गणेश शंकर विद्यार्थी के अखबार में काम करने लगे थे।
1925 में गणेश शंकर विद्यार्थी के पत्र प्रताप में बलवंत सिंह के नाम से पत्रकारिता शुरू करनेवाले भगत सिंह इस क्रांतिकारी अखबार के माध्यम से उन सभी मुद्दों को सहजता से जनता के सामने रख देते थे जो कि कठिन हुआ करते थे ।वह कहते थे कानपुर के लोगों में आग है सिर्फ आजादी की माचिस से इसे प्रचंड ज्वाला का रूप देना है। कानपुर में पीलखाना ,रामायण बाजार, नयागंज के साथ-साथ बिठूर में 30 मार्च 1929 को लाहौर असेंबली बम कांड की योजना बनाने का काम किया गया। कानपुर में ही भगत सिंह मजदूर आंदोलन से जुड़े और मजदूरों के हक में अंत तक आवाज उठाते रहे। सेंट्रल असेम्बली में उन्होंने श्रम आंदोलन विरोधी बिल रोकने के लिए ही बम फेंका था। आज बड़े पैमाने पर मुनाफा कमा रहे सार्वजनिक क्षेत्रों भारत पेट्रोलियम , राष्ट्रीयकृत बैंकों , एल आई सी , रेलवे , चंडीगढ़ व् दादरा नगर हवेली की बिजली वितरण कंपनियों आदि को निजी घरानों को बेंचने को शहीदों के सपनों के साथ कुठाराघात बताते हुए उन्होंने कहा कि भगत सिंह मजदूरों और किसानों का राज्य चाहते थे जबकि सार्वजानिक क्षेत्र बिकने से कारपोरेट घरानों का वर्चस्व स्थापित होगा | भगत सिंह ने कहा कि युद्ध छिड़ा हुआ है और यह युद्ध तब तक चलता रहेगा जब तक कि शक्तिशाली व्यक्ति भारतीय जनता और श्रमिकों की आय के साधनों पर एकाधिकार जमाये रखेंगे चाहे ऐसे व्यक्ति अंग्रेज पूंजीपति हों या सर्वथा भारतीय पूंजीपति | भगत सिंह ने कहा कि यह युद्ध न तो हमने प्रारम्भ किया है और न यह हमारे जीवन के साथ समाप्त होगा | भगत सिंह ने कहा हम गोरी बुराई की जगह काली बुराई को लाकर कष्ट नहीं उठाना चाहते | बुराइयाँ एक स्वार्थी समूह की तरह एक दूसरे का स्थान लेने के लिए तैय्यार रहती हैं |
जहां एक तरफ 1927 और 28 में मजदूर हड़ताल चला रहे थे और अंग्रेज सरकार ट्रेडडिस्प्यूट बिल तथा पब्लिक सेफ्टी बिल जैसे दमनकारी कानून ला रही थी वहीं यूरोप इंग्लैंड और एशिया की क्रांति तथा साहित्य को खंगालने वाला युवा समाज को बदलने के लिए विचारों के बदलाव लाने की योजना बना रहे थे …साम्राज्यवाद मुर्दाबाद, दुनिया के मजदूर एक हो तथा काले कानून जब बनाए जाते हैं तो क्या असेंबली में बैठे हुए लोग बहरे हो चुके हैं क्यों इन काले कानूनों का विरोध नहीं कर सकते जैसे विचारों को सजीव कर देश और दुनिया को नई दिशा दिखाने का प्रण करने वाले भगत सिंह……. विचार करना होगा की आज प्रेरणा मानकर निजीकरण का विरोध क्यों नहीं हो सकता।
8 अप्रैल 1929असेम्बली में बम फेंकने की प्रेरणा को बयान करते हुए भगत सिंह ने कहा- मैंने ट्रेड यूनियनों को संगठित किया,शांतिपूर्ण प्रदर्शन किए पर श्रमजीवी मेहनतकशों के शोषण पर स्थापित पूंजीवादी कर्णधारों पर कोई प्रभाव नही पड़ा। तब मेरे मन मे यह विचार उत्पन्न हुआ कि असेम्बली में बम धमाका किया जाए जिससे शासक जाग जाएं।बहारों को सुनाने के लिए धमाके की जरूरत होती है, यही सोचकर मैन असेम्बली में बम फेंका।
सरदार किशन सिंह और मां विद्यावती के शुभ आशीष से तथा बटुकेश्वर दत्त फणींद्र नाथ घोष विजय कुमार सिन्हा शिव वर्मा यशपाल जैसे क्रांतिकारियों के सहयोग से भगत सिंह ने क्रांति को एक नई दिशा दी और क्रांति रूपी ज्वाला में खुद को दहन कर देश को आजाद कराने का मार्ग प्रशस्त किया। अपने निजी जीवन की आहुति देकर देश को अपना सर्वोच्च सौंपने वाले भगत सिंह कहा करते थे मेरी दुल्हन तो आजादी है और यह सिर्फ मर कर ही मिलेगी।
भारत मे बार बार जन्म लेने की इच्छा प्रकट करने वाले भगत सिंह यदि आज फिर से जन्म लेकर आ जाएं तो देश मे व्याप्त गरीबी और समाज के अधोपतन को देख उनकी आंखों में आंसू आ जाएंगे और वे सोचेंगे कि क्या इसी आजादी के लिए उन्होने प्राणों का बलिदान किया था।
130 करोड़ भारतीय भगत सिंह बनें,अन्याय के खिलाफ बगावत करें,बहरों को सुनाने के लिए विस्फोट करें तो पता चलेगा कि सिर्फ धन सम्पदा और राजमार्गों से देश नही बनता बल्कि वह बनता है मन के धनी ज्वालामुखियों से। बचपन में एक पिस्तौल बो कर उसके पेड़ की कल्पना करने वाले भगत सिंह निश्चित रूप से यह देख कर खुश होंगे कि हमारा देश हथियारों के निर्माण में आत्मनिर्भर हो रहा है ……..पर यह भी अफसोस जनक है कि हर तरीके के हथियार बनाने वाली ऑर्डिनेंस फैक्ट्रीया निजी हाथों में सौंपी जा रही है जो कि कहीं ना कहीं कर्मचारियों के शोषण और बेरोजगारी का कारण बनेगी।
आज बिजली , पानी , सड़क , बुनियादी जरूरतों और स्पेस रिसर्च व् डिफेन्स सेक्टर का निजीकरण भगत सिंह के विचारों के भारत से मेल नहीं खाता | इससे बेरोजगारी तो बढ़ेगी ही राष्ट्रीय सुरक्षा को भी खतरा पैदा होगा |हम सबको संकल्प लेना होगा कि व्यापक राष्ट्रहित में सार्वजानिक क्षेत्र बचाओ – देश बचाओ अभियान चलाया जाए | शहीदे आजम भगत सिंह के जन्म जयंती पर केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार का किसी समाचार पत्र में एक पंक्ति का भी विज्ञापन और श्रद्धा सुमन नहीं है ।अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण।
कहा जाता है शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले- यह संकल्पना का क्या हो रहा है …
आइए मंथन करें