उत्तर प्रदेश दृष्टिकोण संस्कृति

अमर भारती काव्योत्सव में कवियों ने तेलंगाना पीड़िता को दी श्रद्धांजलि

मंडी हाउस से खिसक कर कविता गाजियाबाद आ गई : प्रेमपाल

गाजियाबाद। प्रख्यात लेखक एवं कवि प्रेमपाल शर्मा ने अमर भारती साहित्य संस्कृति संस्थान के काव्य उत्सव को संबोधित करते हुए कहा कि जीवन की शुरुआत कविता से ही होती है।

“काव्योत्सव” की सराहना करते हुए कार्यक्रम अध्यक्ष श्री शर्मा ने कहा कि मंडी हाउस (दिल्ली) से खिसक कर कविता इस मंच पर आ विराजी है। यहां पढ़ी गई कविता समझ में आती हैं। उन्होंने कहा कि हिंदी का रचनाकार आडंबरी है। पाश्चात्य और अंग्रेजी के मोह से ग्रस्त लोगों की वजह से ही हिंदी साहित्य और समाज का विनाश हो रहा है। उन्होंने “आदमी को तलाशते हुए”, “नया मकान” और “आदर्श और अनुभव” शीर्षक से तीन कविताएं भी पढी।

सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल में आयोजित काव्योत्सव को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि विवेक गौतम ने कहा कि ऐसे आयोजन साहित्य को समृद्ध करने में बड़ा योगदान दे रहे हैं। उन्होंने “छत” और “मेरे शहर की नदी” शीर्षक से मार्मिक कविताएं भी प्रस्तुत कीं।

डॉ. माला कपूर ने “छज्जा” कविता में कहा

“इस चार बालिश्त के छज्जे से देखा बहुत कुछ…,

इस झूले पर,कुछ कविताएं
झूलती झुलाती, कुछ बहती बरसती,
कुछ उछलती कुछ कुलबुलाती,
तड़पती सी, कुछ उड़ती सी, शायद कूद गईं बीसवें माले से, कुछ लपक ली गईं, कुछ ने ख़ुदकुशी कर ली…।”

मनु लक्ष्मी मिश्रा ने फरमाया ” तीनों इक्कों के बल पर यदि, तुम चाल चलो तो क्या चलना, दुग्गी, तिग्गी, पंजी से ही, जीतो बाज़ी तो क्या कहना?”

नेहा वैद ने अपने गीत “मत इतना घबराया कर तू, दुख से आंख मिलाया कर, क्यों तू इतना व्याकुल पगले, मुश्किल से टकराया कर” एवं अजय अज्ञात ने “सहरा ए जिस्त में कुछ रोज तमाशे करके, चल दिए जिस्म को मिट्टी के हवाले करके” पर दाद बटोरी। सीताराम अग्रवाल का शेर ” दरिया तो चूमा करता है उनको भी, अपने अपने मैल जो जिसमें धोते हैं” और सुरेंद्र सिंघल का शेर “एक पगडंडी जो आंखों में बिछी है अब तक, आज उस पर भी लपकी हैं शहर की सड़कें” भी सराहे गए।

तेलंगाना पीड़िता के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए संस्था के अध्यक्ष गोविंद गुलशन ने कहा “इस कदर तीरगी फैली है जमीन पर यारों, चांद जो छत से उतर आए काला हो जाए।” संस्थापक अध्यक्ष धनंजय सिंह ने अपने गीत “यद्यपि है स्वीकार निमंत्रण, तथापि अभी मैं आ ना सकूंगा, फूल बनूं खिल कर मुरझाऊं, मेरे बस का काम नहीं है, जिससे आगे पड़े ना चलना, ऐसा कोई धाम नहीं है” पंक्तियों पर सराहना बटोरी।

काव्योत्सव का शुभारंभ आशीष मित्तल की सरस्वती वंदना से हुआ। योगेंद्र दत्त शर्मा, डॉ. वीना मित्तल, तरुणा मिश्रा, डॉ. तारा गुप्ता, कीर्ति रतन, कमलेश फर्रुखाबादी, आलोक यात्री, प्रवीण कुमार, सरवर हसन, मासूम गाजियाबादी, सुभाष चंदर, कीर्ति, इंद्रजीत सुकुमार, गुरबख्श सिंह, मित्र गाजियाबादी, तूलिका सेठ, मंजू कौशिक, ममता राठौर, सुप्रिया सिंह, वी.के. मेहरोत्रा, मान सिंह बघेल, जगदीश पंकज, सहित कई अन्य रचनाकारों की कविताएं भी सराही गईं।

काव्योत्सव की विशेषता यह रही कि सिल्वर लाइन स्कूल की छात्रा नीरजांशी ने स्वरचित कविता “हिंदी मेरी भाषा” का पाठ किया। संतोष ओबरॉय, कनाडा से आईं अंशू आहूजा, सुभाष अखिल, सुशील शर्मा, कुलदीप, टी.पी. चौबे सहित कई गणमान्य लोग मौजूद थे। संचालन आर.के. भदौरिया ने किया।

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राजेंद्र सिंह

राजेंद्र सिंह (सम्पादक)

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