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भ्रष्टाचार की नींव पर खडा हो रहा 23 करोड़ का भवन, पीले ईट और मसाले दे रहे गवाही

कार्यदायी संस्था और ठेकेदार द्वारा घोटालोे को छुपाने के लिए किये जा रहे प्रयास

गोण्डा। भ्रष्टाचार को जड से समाप्त करने के पीएम मोदी तथा सीएम योगी की मंशा को किस तरह पलीता लगाया जा रहा है इसकी बानगी देखनी हो तो शहर से दूर वीराने में निर्माणाधीन खाद्य एवं औषधियें प्रयोगशाला के मण्डलीय कार्यालय को देखा जा सकता है। सूटकेस विभाग के नाम से प्रख्यात उत्तर प्रदेश प्रोजेक्ट कारपोरेशन की देखरेख में दीक्षित कांस्ट्ेक्शन द्वारा निर्मित कराये जा रहे इस भवन की सबसे खास बात यह है कि विभाग सहित निर्माण की जिम्मेदारी संभाले फर्म सभी अपने अपने भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए इस कदर प्रयास रत है कि जानकारी के लगभग एक माह बाद भी निर्माण से सम्बधित कोई भी तथ्य सामने रखने को तैयार है।

भ्रष्टाचार का ये अनोखा मामला जिला मुख्यालय से लगभग दस किलोमीटर दूर लगभग वीराने में ग्रंाम दुल्लापुर में निर्माणाधीन खाद्य एंव औषधिये मण्डलीय प्रयोगशाला का है। निर्माण में बरती जा रही अनियमितताओं की जानकारी सूत्रों से प्राप्त होने पर जब विगत दिनों समाचार वार्ता की टीम हकीकत जानने पहुंची तो वहां की स्थिति जानकारी के अनूकूल ही मिली, सामने ही लगे पीले ईटों की ढेर सारी कहानी कह रहे थे, बची खुची हकीकत मौके पर बने हुए सीमेन्ट और मोरंग के उस मसाले ने बंया कर दी जिसे चुनाई के लिए तैयार किया गया था।

मसाला साफ साफ बता रहा था कि उसमें मात्र औपचारिकता निभाने के लिए सीमेन्ट का प्रयोग किया गया है। इतना ही नही जब लगभग खडे हो चुके भवन के निचले हिस्से जहां पर किन्ही कारणोवश अभी प्लास्टर नही हो पाया था निगाह पडी तो वहां लगे पीले ईटों ने इस बात की गवाही दे दी कि पूरे भवन में उन्ही ईटों का प्रयोग किया गया है जो ढेर कि रूप में लगे हुए दिखाई दिये है।

भवन निर्माण से सम्बधिंत जानकारी प्राप्त करने के लिए जब वहा उपस्थित निर्माणकर्ता फर्म दीक्षित कांस्ट्ैक्शन के जूनियर इंजीनियर रविन्द्र यादव से बात की गयी तो उन्होनंें यूपीपीसीएल के जेई अमित कुमार से सम्पर्क करने को कहा, इस पर जब अमित कुमार से सम्पर्क किया गया तो उन्होनंेें लगभग एक माह तक अनेकों बहाने बनाते हुए न तांे सामने आये और न ही किसी प्रकार की जानकारी ही उपलब्ध करायी हां इसी बीच एक ब्यक्ति ने अपने को निर्माणकर्ता फर्म दीक्षित कांस्ट्ैक्शन का मालिक बताते हुए जरूर सम्पर्क किया लेकिन जब उनसे भी निर्माण से सम्बिधत जानकारी मांगी गयी तो वे भी सम्पर्क से रफूचक्कर हो गये।

निर्माण में कितना और किस तरह का गोलमाल है ये तो जांच के बाद ही पता चल पायेगा लेकिन इतना जरूर स्प्ष्ट है कि गोलमाल तगडा है तभी सम्पर्क के एक माह के बाद भी न तो विभाग का कोई अधिकारी सामने आकर अपनी बात को रख रहा है और न ही निर्माणकर्ता फर्म का ही कोई व्यक्ति। अब देखना ये है कि भ्रष्टाचार के इस प्रकरण को प्रशासन या शासन कितनी गम्भीरता से लेता है और पूरे मामले की जाचं कराकर क्या उचित कार्रवायी करता है।

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राजेंद्र सिंह

राजेंद्र सिंह (सम्पादक)

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