उत्तर प्रदेश शिक्षा

हिंदी दिवस : बच्चों ने लगाई हिंदी की चौपाल, बताया “अ से अज्ञान और ज्ञ से ज्ञान का अंतर”

Written by Reena Tripathi

लखनऊ। बिजनौर सरोजिनी नगर के प्राथमिक विद्यालय अलीनगर खुर्द में बच्चों ने फूलों और पत्तियों से हिंदी दिवस की बधाई का संदेश रंगोली के रूप में लिखकर आ से अज्ञान और ज्ञ से ज्ञान के अंतर को बताया। कक्षा एक से लेकर के पांच तक के बच्चों ने अपनी किताब को पढ़कर के तथा कुछ ने कविता सुना कर हिंदी के महत्व को बताया।

अध्यापिका रीना त्रिपाठी ने बताया कि हिंदी दुनिया की एकमात्र ऐसी भाषा है जो जैसी बोली जाती है वैसी ही लिखी जाती है इस भाषा का भारतीयों से रक्त संबंध का नाता है। आज हिंदी को राजभाषा से ज्यादा संपर्क भाषा बनाने की आवश्यकता है समाज में बढ़ते कॉन्वेंट कलर में आजकल के बच्चे हिंदी का अखबार भी पढ़ना भूल गए हैं। आज भी बेसिक शिक्षा परिषद के विद्यालयों में हिंदी को जो महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है वह कॉन्वेंट कल्चर और प्राइवेट शिक्षा पद्धति में खत्म होता जा रहा है।आखिर क्या वजह है कि इतने व्यापक प्रचार-प्रसार और इतने सालों से हिंदी दिवस मनाने के बावजूद भी न्यायालय के फैसले हिंदी में नहीं लिखे जाते? विज्ञान और चिकित्सा शास्त्र की किताबें क्यों हिंदी में नहीं छपतीं? तकनीकी, प्रबंधन और कंप्यूटर में दक्षता हासिल करने के लिए क्यों अंग्रेजी का सहारा लेना पड़ता है? आज भी क्यो बड़े शोध कार्य हो या डॉक्टर के इलाज का पर्चा और जांचे सब कुछ अंग्रेजी में ही लिखा जाता है।

ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो हिंदी दिवस के दिन हर हिंदी प्रेमी के मन में उठने स्वाभाविक हैं। आज आवश्यकता इस बात की है कि हिंदी को संपर्क भाषा बना कर उसमें कामकाज को बढ़ावा दिया जाए। इतिहास के गौरवपूर्ण पन्नों को पलटा जाए तो सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज के कामकाज की भाषा हिंदी थी जबकि वह स्वयं बांग्ला भाषी थे।हिंदी का सवाल केवल भाषा का सवाल नहीं है। यह संस्कार और संस्कृति से जुड़ा विषय भी है। बच्चों में टीवी, इंटरनेट और विडियो गेम के बढ़ते खतरों के लिए कहीं न कहीं हमारे भाषा संस्कार भी जिम्मेदार हैं।

आज बच्चों की जिंदगी से मां की लोरी के गीत और दादी-नानी की कहानी का संगीत लुप्त हो गया है। प्यार और पुचकार में भी अंग्रेजी के शब्द आ गए हैं। सोशल मीडिया में बधाई संदेश भी हैप्पी हिंदी डे के रूप में दिए जा रहे हैं। अजीब विरोधाभास है कि हिंदी दिवस पर हम हिंदी की दुर्दशा पर आंसू बहाते हैं और शेष 364 दिन अपने बच्चों के लिए सबसे आधुनिक कॉन्वेंट कल्चर वाले अंग्रेजी स्कूल की तलाश करते हैं।यह दोहरी मानसिकता ही हिंदी की प्रगति के मार्ग का सबसे बड़ा अवरोध है। ‘हिंदी की डिग्री वाले सड़कों पर घूम रहे हैं, अंग्रेजी वाले सत्ता के गलियारों में घूम रहे हैं’। हमें इस मानसिकता को गलत ठहराना होगा। आने वाली पीढ़ी को यह विश्वास दिलाना होगा कि भाषा तो सिर्फ एक जरिया मात्र है। असली ताकत ज्ञान है जिसे किसी भी भाषा में हासिल कर मंजिल तक पहुंचा जा सकता है।

जिस दिन सबके मन में यह विश्वास बैठ जाएगा कि हिंदी से भी ऊंची नौकरी, ऊंचा ज्ञान, उच्च तकनीक और वैज्ञानिक ज्ञान को प्राप्त किया जा सकता है उस दिन हिंदी गर्व और सम्मान की संस्कृति होगी। नित्य प्रतिदिन अपने बच्चों को हिंदी भाषा में पठन-पाठन और व्यवहार की ओर प्रेरित करना हमारा कर्तव्य है हमारे संस्कार और संस्कृति की जड़े हिंदी से बहुत गहरी जुड़ी हुई है आइए मिलकर आने वाली पीढियां को हिंदी के महत्व के बारे में बताएं और प्रयास करें कि पूरे देश की एक गौरवपूर्ण सरल और सर्वमान्य भाषा हिंदी बन सके और राष्ट्रभाषा का स्थान ले सके।

प्रभुता की भूमि पर, भाषा का सम्मान,
हिंदी से ही तो सजे, हमारी पहचान।
संविधान की धारा में, इसका स्थान अमूल्य
हिंदी दिवस पर मनाओ, इसके महत्व को पूर्णय।
हिंदी दिवस की शुभकामनाएं।

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Reena Tripathi

(Reporter)

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