मजबूर किया गया रेप पीडिता को आत्महत्या करने को, समय रहते सुन ली गयी होती पुकार तो न देनी पडती जान
छोटों पर कार्यवाही कर अपनी खाल बचाने का हो रहा प्रयास
करनैलगंज (गोण्डा) । थाने से लेकर मुख्यमंत्री दरबार तक अपनी गुहार लगा चुकी रेपपीडिता को अंततः अपनी जान देने को विवश होना पडा। जबकि यदि समय रहते पुलिस ने उसकी फरियाद को गम्भीरता से लेते हुए कार्यवाही कर आरोपियों पर कार्यवाही की होती तो एक विवश महिला को जहां न्याय मिलता वहीं जनपद की घ्वस्त हो चुकी कानून व्यवस्था पर जनता का विश्वास और मजबूत होता।
प्रकरण जनपद के तहसील करनैलगंज का है जहां विगत 14 जनवरी को एक रेप पीडिता ने अपनी जान दे दी। अपने साथ लगातार हो रहे दुराचार की शिकायत महिला ने थाने से लेकर सीओ, अपर पुलिस अधीक्षक, पुलिस अधीक्षक, उपमहानिरीक्षक सहित मुख्यमत्री दरबार तक लगाई परन्तु मामले को हमेशा की तरह हल्के में लेते हुए इन सभी जिम्मेदारो ने जांच जाचं का खेल खेलते हुए अपने आंख और कान को बन्द किये रखा। बेहद ही गम्भीर इस प्रकरण में पीडिता ने विधानसभा के सामने अपने शरीर को आग के हवाले करने का भी प्रयास किया परन्तु वहां भी उसे कोरा आश्वासन देकर वापस कर दिया गया। अधिकारियों द्वारा जाचं जांच का खेल खेलते हुए पहले से लगी फाइनल रिपोर्ट को बार बार क्लीन चिट दिया जाता रहा।
तहसील करनैलगंज के ग्राम फतेहपुर कोटहना की अनीता पाठक पत्नी आनन्द कुमार पाठक को गावं के ही मानव रूपी जानवर श्याम कुमार उर्फ बुधई, शंकर दयाल उर्फ बब्लू पुत्रगण गंगाराम ने अपने आपको तात्रिंक बताते हुए आनन्द को किसी और औरत के चंगुल में फंसा होने का विश्वास दिलाते हुए अपने ही चंगुल में फंसा लिया और आज से लगभग एक वर्ष पूर्व मौका देखकर उसे अपनी हवस का शिकार बना लिया। इतना ही नही उसके साथ किये गये बलात्कार का वीडियो बना उसे वायरल करने की धमकी देते हुए लगातार ब्लैकमेल किया जाता रहा। पति के आने पर जब उसने अपने साथ हो रहे दुराचार की जानकारी दी तो पति ने 7 अगस्त को कोतवाली करनैलगंज में दोनों आरोपियों के विरूद्व प्राथमिकी दर्ज करायी। प्राथमिकी तो दर्ज कर ली गयी परन्तु पुलिस ने अपनी चिरपरिचित अंदाज में साक्ष्य के न होने का बहाना बनाते हुए मामले पर फाइनल रिपोर्ट लगा दी।
कोतवाली पुलिस की इस कार्यवाही से असंतुष्ट हो महिला ने राजधानी में विधानसभा के सामने आत्महत्या का प्रयास किया जिस पर इसके बाद थोडी गम्भीरता दिखाते हुए तत्कालीन पुलिस अधीक्षक लल्लन सिंह ने मामले को क्राइम बांन्च को सौपं दिया, परन्तु क्राइम ब्रान्च ने भी अपनी संवेदनहीनता का परिचय देते हुए पहले से ही लगी फाइनल रिपोर्ट को हरी झंडी दे दी। इस पर भी जब पीडिता ने अपनी असंतुष्टि जाहिर की तो अपर पुलिस अधीक्षक को जांच सौपी गयी परन्तु उन्होंने भी संवेदनहीनता का ही परिचय देते हुए मामले को अब तक लटकाये रखा।
सभी जगह से हारने और आरोपियो ंद्वारा बार बार ब्लेकमेल किये जाने से क्षुब्ध होकर आखिर पीडित महिला ने 14 जनवरी को अपने इहलीला को ही समाप्त करने का निर्णय ले लिया। सवाल यह उठता है कि लगभग एक वर्ष होने के बाद भी एक रेप पीडिता को कोतवाली से लेकर विधानसभा के सामने तक जाने की नौबत ही क्यों आयी, जो मामला थाने स्तर पर ही निपट सकता था उसके लिए मानसिक और शारिरिक रूप् से प्रताणित की जा रही महिला को विधानसभा और प्रदेश के पुलिस मुखिया तक भी गुहार लगानी पडी लेकिन जनपद की पुलिस ने तौ जेसे उसे न्याय न देने की कमस खा रखी थी। पीडिता की गुहार पर यदि जनपद स्तरीय पुलिस से त्वरित और न्यायिक कार्यवाही की गयी होती तो उसे अपनी जीवन लीला को युं न समाप्त करना पडता, स्पष्ट है कि उसकी मौत के लिए जितने जिम्मेदार कोतवाल करनैलगंज हैं उतने ही जिम्मेदार डीआईजी भी हैं जबकि अपनी खाल बचाने के लिए कोतवाल को लाइन हाजिर करने के साथ मामले के विवेचक अजीत प्रताप सिंह और क्राइम बं्राच के परमानन्त तिवारी को निलम्बित कर दिया गया लेकिन पुलिस अधीक्षक और तत्कालीन एसपी पर कोई भी कार्यवाही नही की गयी जबकि इस बेहद ही मर्मात्कम प्रकरण में जितने दोषी विवेचक है उतने ही दोषी डीआईजी भी हैं।
साथ ही सवाल यह भी उठता है कि इतनी बडी लापरवाही पर क्या मात्र लाइन हाजिरी और निलम्बित किया जाना ही पीडिता को न्याय है। पुलिस अधिकारियों की इस लापरवाही के परिणाम स्वरूप् आत्महत्या के लिए विवष करने पर कम से कम इन सभी अधिकारियों पर एफआईआर तो दर्ज ही की जानी चाहिए और इन सभी पर हत्या का मुकदमा चलना चाहिए तभी ऐसे अधिकारियों को अपनी जिम्मेदारी का अहसास होगा और पीडिता को न्याय मिल पायेगा।