अज़ब ग़ज़ब अपराध उत्तर प्रदेश गोंडा

नहीं मिलता इलाज का पैसा तो ठकेल दिया बारहसिंघे को मौत के मूहं में, वन विभाग का अमानवीय कारनामा

परसपुर गोण्डा। कुत्तों द्वारा बुरी तरह घायल बारहसिंघे को वन विभाग द्वारा समय पर इलाज न मिलने के कारण मौत के मूहं में जाने को विवश होना पडा, ग्रामीणो द्वारा वन विभाग के जिम्मेदारों को सूचना देने के बाद भी फारेस्ट गार्ड ने अपनी असवेंदनशीलता का परिचय देते हुए बुरी तरह घायल बारहसिंघे को छोड फरार हो जाने के कारण उसे तडफ तडफ कर अपनी जान देने को विवश होना पडा।
जी हां यह मामला जनपद के परसपुर थाना क्षेत्र के ग्राम गोगिया का है जहां शुक्रवार की सुबह लगभग आठ बजे कहीं से एक बुरी तरह घायल बारहसिंघा गावं वासियों को दिखा, उसकी अत्यन्त दयनीय दशा देख ग्रामीणों ने तत्काल वनविभाग को सूचित किया, सूचना के आधे घंटे बाद पहुंचे फारेस्टा गार्ड गोपीशंकर ने ग्रामीणों को दिखाने के लिए पहले तो बारहिंसघं को अपनी कस्टडी मे लिया परन्तु ग्रामीणों के वहां से हटते ही बारह सिंघे को वहां से 100 मीटर दूर ले जाकर छोड दिया, एक सजग ग्रामीण ने जब उनसे इस बावत सवाल किया कि क्या आप इसका इलाज आदि नही कराओगे तो गोपीशंकर ने अपनी अमानवीयता और असंवेदनशीलता का परिचय देते हुए कहा कि विभाग हमें इलाज कराने का पैसा नहीं देता है यह अपने आप ठीक हो जायेगा।
फारेस्ट गार्ड गोपीशकर मिश्र की इस अमानवीय और असंवेदनशीलता के चलते बुरी तरह घायल बारहसिंघा दोपहर बारह बजे तक मौत के मूहं में समा गया।
सर्वविदित है कि जंगलों की अवैध कटान का एक बडा हिस्सा फारेस्ट गार्ड के खाते में जाता है जिससे उन्हें प्रति माह लाखों की अवैध कमाई होती है परन्तु उन्हें अपनी जेब से एक वन्य जीव पर दो चार सौ रूप्ये खर्च करना भी भारी पडा, यदि श्री मिश्र ने समय पर मिली सूचना पर उस प्यारे से वन्यजीव पर थोडी सी भी दया दिखाते हुए उसके इलाज पर कुछ धनराशि खर्च कर दिया होता तो शायद एक वन्यजीव की जान बच जाती और वन की शोभा बरकरार रहती।
हालाकिं जब इस बावत गोपीशंकर मिश्र से वार्ता की गयी तो उन्होनें इस सभी आरोपों से इन्कार करते हुए बताया कि उन्होनें बारहसिघें का इलाज कराया था परन्तु जब उनसे यह पूछा गया कि उन्होनेंं किस डाक्टर से इलाज कराया तो उन्होनें नेटवर्क मे ंन होने की बात बताते हुए फोन को काट दिया। श्री मिश्र की इस हरकत से यह बात आसानी से समझी जा सकती है कि उन्होनें बारहसिंघे को इलाज कही भी नहीं कराया जिससे उसे मौत का ग्रास बनना पडा और ग्रामीणों द्वारा लगाया जा रहा आरोप पूरी तरह सत्य है।
प्रकरण पर जब प्रभागीय वनाधिकारी से जानकारी चाही गयी तो उन्होनें फोन उठाना तक मुनासिंब नही संमझा।

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राजेंद्र सिंह

राजेंद्र सिंह (सम्पादक)

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