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प्रॉक्सी टीचर: प्रधान पति के तर्ज पर विद्यालयों में अध्यापन कार्य में लिप्त हैं महिला शिक्षकों के पति

Written by Vaarta Desk

लखनऊ ! निश्चित रूप से शिक्षा विभाग के लिए यह संकल्पना कोई नई नहीं है अक्सर दूरदराज के इलाकों में हमने किसी टीचर की जगह दूसरी टीचर को पढ़ाते हुए देखा है। जिस प्रकार प्रधान पत्नियों के पति पूरी तरह ग्राम प्रधान घोषित हो जाते हैं उसी तरह कई विद्यालय ऐसे हैं जहां महिला शिक्षिका नियुक्त तो है पर उनके सभी काम उनके पतिदेव करते हैं । इसे प्रोक्सी टीचर की श्रेणी में रखा जा सकता है

आप कहेंगे चलिए अच्छी बात है कोई तो पढ़ा रहा है शिक्षिका ना सही उसका पति ही सही,लेकिन यह बिल्कुल उसी तरह है जिस प्रकार एमबीबीएस कोई करता है और इलाज कोई और करें निश्चित रूप से बीएड तथा शिक्षा संबंधी डिग्रियां तो पत्नी की लगाई गई हैं। महीने में कई बार होने वाली ट्रेनिंग में जो कि बच्चों की गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा सुधार के लिए दी जा रही हैं पत्नी का नाम इनरोल है और बिना किसी ट्रेनिंग के पढ़ाने के पात्र पतिदेव हो जाते हैं।

वैसे समझने की बात यह है कि यदि सभी विभागों में 50 साल के बाद मेडिकल के आधार पर कर्मचारी रिटायर किए जा रहे हैं तो फिर इस प्रकार के शिक्षक जो बीमार रहते हैं, मेडिकल पर रहते हैं और विद्यालयों में जाकर पढ़ा नहीं सकते किस नए नियम का इंतजार कर रहे हैं।
हां सही कहा इस समय बच्चे नहीं आ रहे हैं तो ऐसे आराम तलब शिक्षकों को जो विद्यालय में जाकर कागजी काम भी नहीं कर सकते ऑनलाइन प्रशिक्षण भी नहीं ले सकते तो क्यों ना इन्हें आकस्मिक रिटायरमेंट दे देना चाहिए।

कई विद्यालय ऐसे हैं जहां शिक्षकों की कमी है बच्चों की संख्या 100 है परंतु कोई शिक्षक नहीं वहां एक शिक्षामित्र पढ़ा रही है , इसी तरह ना जाने कितने विद्यालय अगर ऐसे विद्यालयों में प्रॉक्सी शिक्षक रखे जाते हैं और उनका खर्च वहां तैनात शिक्षक वहन करता है तो शायद यह कोई गुनाह नहीं ,बच्चों के हित में किया गया एक अप्रत्यक्ष ऐसा कार्य है जिसे कर कर शिक्षक बच्चों और अपने विद्यालय का कल्याण कर रहा है परंतु उन विद्यालयों का क्या किया जाए जहां 6 से 7 तक का स्टाफ है पढ़ने वाले बच्चों की संख्या मुश्किल से 60 है यदि टाइम टेबल के हिसाब से पढ़ाया जाए तो शायद अतिरिक्त शिक्षक भी निकल आएंगे परंतु हेड मास्टर की कुर्सी में बैठा हुआ शिक्षक इतना निर्बल हो चुका है कि वह अपने विभागीय कागजों को बनाने के लिए तथा बच्चों को पढ़ाने के लिए भी अपने पतिदेव का सहारा लेता है। आप कल्पना करें शिक्षक स्टाफ के बीच में भले ही वह किसी का पति हो एक गैर शिक्षा से जुड़ा हुआ व्यक्ति विद्यालय में आकर रोज बैठता है शिक्षकों पर रौब दिखाता है ,विभाग द्वारा मांगी गई जानकारियों को स्वयं पूर्ण करता है अन्य विभिन्न कार्यों को करता है तो क्या उस विद्यालय के शिक्षक शांति और सुकून से अपने कार्यों में ध्यान दे पाएंगे? क्या उन्हें यह आभास हमेशा नहीं रहेगा कि एक अनजान व्यक्ति जिसका शिक्षक शिक्षार्थी और विद्यालय से कोई लेना-देना नहीं वह विभागीय कार्य में हस्तक्षेप कर रहा है वह क्लास में जाकर बच्चों को पढ़ा रहा है और तो और अन्य शिक्षकों के कार्यों में टोका टाकी भी बड़े हक और अधिकार से कर रहा है मानसिक वेदना का कारण नहीं है।

निश्चित रूप से इस तरह की घटनाएं खंड शिक्षा अधिकारी सरोजनी नगर की जानकारी के नहीं हो रही। अगर कोई शिक्षक खंड शिक्षा अधिकारी से शिकायत करता है तो साहब कहते हैं कि अरे उनके पति उन्हें छोड़ने और लेने आते हैं आप लोग परेशान ना हो उनके साथ समस्या है वह बीमार रहती हैं। सारा मामला मेरी जानकारी मे है। जब स्कूल स्टाफ द्वारा खंड शिक्षा अधिकारी को यह बताया गया कि उनके पति सिर्फ लेने और छोड़ने नहीं जाते दिनभर ऑफिस में बैठे रहते हैं और विभागीय कार्य में हस्तक्षेप करते हैं साथ ही जब विद्यालय चलते हैं तब बच्चों को पढ़ाने का काम भी करते हैं और यदि वह लोग मना करते हैं तो लड़ने को भी आतुर रहते हैं, यह सब सुनकर खंड शिक्षा अधिकारी कहते हैं कोई बात नहीं मैं उन्हें समझा दूंगा।

अब आप ही सोचिए टाइम एंड मोशन स्टडी के आदेश में रेणुका कुमार आदेश करती हैं कि प्रॉक्सी शिक्षक पाए जाने पर खंड शिक्षा अधिकारी और बीएसए के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी और यहां खंड शिक्षा अधिकारी सब कुछ जानते हुए भी कोई कार्यवाही नहीं कर रहे ऊपर से शिक्षकों को ही संयम रखने का निर्देश दे रहे हैं। यह सब यही सिद्ध करता है कि जो गलत हो रहा है उसे होने दिया जाए अपना हिस्सा लेकर आंख बंद कर ली जाए। अगर यह सब पहले से निर्धारित है तो फिर बेसिक शिक्षा विभाग में महानिदेशक ने प्रतिदिन सरकारी खजाने और सरकारी नीतियों को किस के भरोसे छोड़ रहे हैं।

शिक्षक यदि विद्यालय परिसर में होने वाले इस तरह अनचाहे अतिक्रमण से परेशान होते हैं और उसकी शिकायत डरते डरते खंड शिक्षा अधिकारी से करते हैं अपने पतिदेव को शिक्षक के रूप में रखने वाले शिक्षकों के ऊपर कार्रवाई करना तो दूर ऊपर से सब कुछ जानते हुए ऐसे शिक्षकों और ऐसे मनवांछित कार्यवाही को निश्चित रूप से बिना किसी आर्थिक लाभ के बढ़ावा तो नहीं ही दिया जा रहा होगा यह एक जांच का विषय है।

अभी हमने 2 दिन पहले सीतापुर में एक महिला शिक्षिका की गोली मारकर हत्या की सूचना न्यूज़पेपर में पड़ी ही है पर क्या फर्क पड़ता है विवाद तो सभी स्कूलों में होते हैं एकाध हत्या और हो जाएं एकाद झूठी f.i.r. और दर्ज हो जाए एक शिक्षक फांसीलगाकर या तो मर जाए या बच जाए शिक्षा विभाग के अधिकारियों को कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उन्हें तो सब बातें पता ही है वह क्यों चाहेंगे कि विवाद हल हो क्योंकि यह विवाद ही उन्हें मध्यस्थ बनाने और इन समस्याओं को सुलझा ने कहा करो अधिकार जो देते हैं शायद विवाद पैदा ही इसीलिए किए जाते हैं।

जी हां बहुत दूर जाने की जरूरत नहीं है बेसिक शिक्षा विभाग में प्राथमिक विद्यालय तथा जूनियर विद्यालय सरैया का सम्मेलन हुआ है। यह बात पूरा बेसिक शिक्षा सरोजनीनगर विभाग का शिक्षक जानता है कि अक्सर ग्रुप में एक या दो दिन का मेडिकल जूनियर विद्यालय सरिया की प्रधानाध्यापक मधु पाल द्वारा डाला जाता रहा है जो अपने आप में विवाद का विषय है क्योंकि जब तक सीरियल बची होती है तब तक कोई मेडिकल नहीं ले सकता और महीने में लगभग 15 से 20 दिन एक एक दिन का मेडिकल लेना वाकई हास्यास्पद है क्योंकि मेडिकल एक दिन का लेकर और उसी दिन स्वस्थ होकर फिटनेस दे देना क्या संभव है????पर आप आश्चर्य ना करें यह शिक्षा विभाग है यहां सब कुछ संभव है क्योंकि इन मैडम का मेडिकल खंड शिक्षा अधिकारी की मिलीभगत से चढ़ाया ही नहीं जाता फिर क्या फर्क पड़ता है रही बात अटेंडेंस रजिस्टर में उन मेडिकल की गिनती की तो आप परेशान ना हो वर्ष के अंत होते-होते या तो रजिस्टर बदल जाएगा या उसमें व्हाइटनर लगा दिया जाएगा। और यदि विद्यालय में तैनात अन्य शिक्षकों द्वारा आपत्ति दर्ज कराई जाती है तो प्रधानाध्यापक के पुत्र द्वारा विद्यालय के अन्य शिक्षकों को मुंह बंद रखने की सलाह तथा उन्हें झूठी f.i.r. में फंसा देने की धमकी दी जाती है।

अब आप ही सोचिए विद्यालय परिसर में एक व्यक्ति जो अपने धर्म पत्नी की मदद करने के लिए विद्यालय में सुबह आता है दिनभर ऑफिस का काम में उसकी मदद करता है और शाम को अपने साथ उसे घर ले जाता है क्या यह सुविधा किसी अन्य विभाग में है??? इसके बाद भी आप कल्पना करेंगे कि शिक्षक काम नहीं करता, नहीं यहां तो एक सैलरी में दो लोग विद्यालय आ रहे हैं क्या फर्क पड़ता है कि इससे अन्य शिक्षक असहज महसूस करते हैं क्या फर्क पड़ता है कि जो भी विभागीय कागजों में डटे भर के दिए जा रहे हैं वह सब गलत है विद्यालय में रंगाई पुताई हुई है या नहीं हुई इससे कोई मतलब नहीं पर जानकारी तो झूठी ही देनी है और यह सिद्ध करना है कि विद्यालय में आया हुआ कंपोजिट ग्रांट 100% खर्च कर दिया गया है और पुताई भी समय से हो गई है तथा वह सभी काम जो विभाग द्वारा विद्यालय को दिए जाते हैं समय से कर दिए गए हैं लेकिन हकीकत कुछ और है जो व्यक्ति उच्च विद्यालय का शिक्षक ही नहीं है उसके द्वारा दी गई जानकारियां कहां तक सच होंगी यह चिंता का विषय हैसबसे मजेदार बात तो यह है सरकारी खजाने प्राथमिक विद्यालयों में भेजे गए हजारों रुपए की कम अपोजिट ग्रांड जो कि विद्यालय के उन्नयन के लिए खर्च होने थे प्रधान अध्यापकों के बैंकों में ही पड़े हैं और वचन लगकर उन सब का सत्यापन भी हो गया।

अगर विद्यालय के विकास के लिए हजारों रुपए की कम अपोजिट ग्रैंड आती है तो वह सिर्फ प्रधानाध्यापक के मोहर और साइन से ही क्यों निकाल दी जाती है अगर विद्यालय में 1 से अधिक शिक्षक तैनात है तो उन सबकी सहमति लेकर यह क्यों नहीं पूछा जाता है कि यह जो भी कार्य प्रधानाध्यापक ऑडिट के लिए दिखा रहे हैं क्या यह भी गए हैं यह सिर्फ फर्जी वाउचर ही लगाए गए हैं।

खैर खेल बिना उच्च अधिकारियों की जानकारी के हो रहा है यह कहना भी अतिशयोक्ति होगी क्योंकि इसके पहले लखनऊ के माल ब्लाक में मैडम कार्यरत थी जहां पर उनके पति यह सब कार्य पर ही गर्व से कह किया करते थे और उन्हें नाही खंड शिक्षा अधिकारी नाही अन्य शिक्षकों द्वारा रोका रोका जाता था तो फिर अब आपत्ति क्यों?????

निश्चित रूप से प्रॉक्सिस शिक्षक विद्यालय परिसर में पाया जाना यदि अपराध है जो व्यक्ति शिक्षक नहीं है उसका विद्यालय अवधि में विद्यालय में पाया जाना अपराध है विद्यालय के अभिलेखों का किसी तीसरे व्यक्ति द्वारा देखा जाना ,लिखा जाना, तथा गलत जानकारी भरकर अधिकारियों को दिया जाना, अटेंडेंस रजिस्टर से खिलवाड़ किया खिलवाड़ इसलिए की पुरानी छुट्टियों पर बड़ी ही आसानी से व्हाइटनल लगाकर उसके ऊपर उपस्थिति का साइन बना देना आम बात है इनके लिए यह सब अपराध नही है ।

इन सब की सजा किसे मिलेगी सीतापुर के प्राथमिक विद्यालय में हुई आराधना की हत्या की तरह निर्दोष शिक्षकों को या ऐसा अपराध करने बेसिक विद्यालय सरैया के प्रधानाध्यापक मधुपाल जैसे शिक्षकों को।

यदि बीमारी और मेडिकल अनफिट होने के कारण बेसिक विद्यालय सरैया की शिक्षिका अपना काम करने में अक्षम है तो उन्हें सहजता से सेवानिवृत्ति लेकर शिक्षा विभाग के साथ न्याय करना चाहिए और यदि वह कर नहीं सकती तो इन सब की जानकारी रखने वाले अधिकारियों को ऐसे शिक्षकों के खिलाफ कठोर कार्यवाही करते हुए अन्य शिक्षकों को यह उदाहरण देना चाहिए कि इस प्रकार बेईमानी धोखाधड़ी करके बहुत दिन तक अपनी नौकरी नहीं बचाई जा सकती।

लखनऊ के ब्लॉक सरोजनी नगर के खंड शिक्षा अधिकारी शिवनंदन सिंह लखनऊ के बेसिक शिक्षा अधिकारी दिनेश सिंह क्या इस अपराध में बराबर के हिस्सेदार नहीं है निश्चित रूप से शायद उनका जवाब होगा कि मुझे कोई जानकारी नहीं…….
पर कब तक इस जवाब से सभी को संतुष्ट होना पड़ेगा।
विद्यालय परिसर में कार्य करने वाले अन्य शिक्षकों की इस प्रकार प्रकार की मानसिक वेदना और अक्षर प्रधानाध्यापक पति द्वारा अपमानित किए जाने के दर्द से कब तक गुजारना पड़ेगा ।

क्या शिक्षा विभाग किसी और अनहोनी का इंतजार कर रहा है??

50 साल की उम्र होने पर काम करने की क्षमता के आधार पर आकस्मिक रिटायरमेंट ऐसे ही कर्मचारियों के लिए बनाया गया है पर क्या करेंगे ऊपरी सेटिंग के कारण मैडम का मेडिकल भी सर्विस बुक में इंगित नहीं हुआ है अगर उन्हें अनफिट भी सिद्ध नहीं किया जा सकता।पर यदि गहन जांच कराई जाए और विद्यालय रजिस्टर से सर्विस बुक में चढ़े हुए मेडिकल का मिलान किया जाए तो दूध का दूध और पानी का पानी साफ हो जाएगा पर जांच निष्पक्ष और गोपनीय तरीके से होनी चाहिए जिससे खंड शिक्षा अधिकारी और बीएसए के पास ऐसे शिक्षकों को प्रश्रय देने का कोई मौका ना मिले। तथा शिक्षा विभाग के साथ होने वाले इस तरह के एक धोखे का पर्दाफाश हो जाएगा।

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