सारी समस्या का हल बस एक लोटा जल..- रविशंकर महाराज गुरूभाई
गोण्डा। सवालाख पार्थिव पूजन एवं श्री शिवमहापुराण कथा के पंचम दिवस में ज्योतिर्लिंगों की कथा के साथ श्री नंदी उत्सव बड़े ही धूम धाम से मनाया गया..श्री नंदी उत्सव में सभी भक्त भजनों की गंगा में झूम उठे,,पूज्य महाराज जी श्री नंदी उत्सव की कथा का विस्तार करते हुए बताए कि शिलाद नामक मुनि हमेशा तप और योग में लीन रहते थे। जिस कारण वे अपने गृहस्थ जीवन को समय नहीं दे पाते थे। शिलाद मुनि के योग और तप में व्यस्त रहने और ब्रह्माचारी होने के कारण उनका वंश समाप्ति की ओर था। ये सब देख उनके पितरों की चिंता बढ़ गई। तब शिलाद मुनि ने संतान की कामना के लिए देवराज इंद्र को अपने तप से प्रसन्न किया। शिलाद मुनि ने इंद्र देव से ऐसे संतान का वरदान मांगा जोकि जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्त हो। लेकिन इंद्र देव ऐसा वरदान देने में असमर्थ थे। उन्होंने शिलाद मुनि को भगवान शिव से वरदान मांगने को कहा। शिलाद मुनि ने फिर कठोर तपस्या की और भगवान शिव को प्रसन्न किया।
शिलाद मुनि की तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने उनके स्वयं पुत्र के रूप में प्रकट होने का वरदान दिया। शिवजी नंदी के रूप में प्रकट हुए। इसके बाद शिवजी ने माता पार्वती की सम्मति से संपूर्ण गणों और वेदों के समक्ष गणों के अधिपति के रूप में नंदी का अभिषेक कराया। इस तरह के नंदी नंदीश्वर बन गए और शिवजी के वरदान से नंदी जन्म के बाद मृत्यु से मुक्त और अजर-अमर हो गए। शिवजी ने नंदी को यह भी वरदान दिया कि जहां उनका निवास होगा वहां नंदी का भी निवास होगा। इसलिए शिवजी के सभी मंदिरों या शिवालयों में नंदी की स्थापना की जाती है।