बेल्ट एंड रोड फोरम की मीटिंग से भारत ने भले ही खुद को अलग कर लिया है लेकिन पड़ोसी देश श्रीलंका, नेपाल, मालदीव और बांग्लादेश ने इसमें शामिल होने के लिए औपचारिक सहमति दे दी है। अब सबकी निगाहें भूटान पर टिकी है। जिसने अभी तक अपना पत्ता नहीं खोला है।
बता दें कि इससे पहले 2017 में हुए फोरम की बैठक का भी भूटान ने बहिष्कार किया था। बावजूद इसके चीन लगातार भूटान को अपने साथ मिलाने की कोशिशों में लगा हुआ है। पिछले कुछ समय से बीजिंग, भूटान की नई सरकार को नई दिल्ली के प्रभाव से दूर करने की कोशिश कर रहा है।
राजनयिक हलकों में यह माना जा रहा है कि पिछले बैठक की तरह भूटान इस बार भी शामिल नहीं होगा। भूटान को यह डर है कि इस कारण भारत के साथ उसके संबंध प्रभावित हो सकते हैं। भूटान का चीन के साथ औपचारिक रूप से कूटनीतिक संबंध नहीं है। फिर भी भूटान, चीन को बड़े व्यापारिक साझीदार के रूप में देख रहा है।
भारत ठुकरा चुका है चीन का न्योता
भारत ने चीन की ‘बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव’ (बीआरआई) को लेकर होने वाली बैठक का बहिष्कार करने का निर्णय लिया है। चीन ने 2017 में बीआरआई की पहली बैठक आयोजित की थी और भारत ने उसका भी बहिष्कार किया था।
बीआरआई के तहत छह गलियारे बनाने की योजना है, जिनमें से कई गलियारों पर काम भी जारी है। इसमें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) से गुजरने वाला चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा भी शामिल है। भारत के लिए चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा संप्रभुता का उल्लंघन है। भारत हमेशा से कहता है कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर भी भारत का हिस्सा है और उस पर पाकिस्तान ने अवैध कब्जा कर रखा है। ऐसे में भारत की इजाजत के बिना चीन वहां से आर्थिक गलियारा नहीं बना सकता है।
गौरतलब है कि चीन की बीआरआई परियोजना का अमेरिका और जापान सहित कई देशों ने भी विरोध किया है। अमेरिका ने कहा है कि चीन की यह परियोजना जिन देशों से गुजरेगी, उन देशों के किए यह आर्थिक सहयोग कम और खतरा ज्यादा उत्पन्न करेगी। बीआरआई परियोजना का मकसद दुनिया भर में चीन के निवेश से बुनियादी परियोजनाओं का विकास करना और चीन के प्रभुत्व को बढ़ाना है। चीन ने आर्थिक मंदी से उबरने, बेरोजगारी से निपटने और अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए 2013 में यह परियोजना पेश की।