उत्तर प्रदेश गोंडा स्वास्थ्य

लॉकडाउन में भी महिलाओं ने पीपी आईयूसीडी को किया “लॉक”

– गोंडा जनपद में अप्रैल से अब तक 401 महिलाओं ने गर्भनिरोधक के रूप में अपनाया पीपी आईयूसीडी ।

गोंडा। परिवार नियोजन स्वास्थ्य विभाग की प्राथमिकताओं में शामिल है, जिसके लिए समय-समय पर तमाम योजनाओं और कार्यक्रमों को लाभार्थियों तक पहुंचाने की हरसंभव कोशिश रहती है । इसमें भी दो बच्चों के बीच अंतर रखने के लिए कई तरह के अस्थायी गर्भ निरोधक साधन लाभार्थियों की पसंद के मुताबिक उपलब्ध हैं ।

इसमें एक प्रमुख साधन है- पोस्ट पार्टम इंट्रायूटेराइन कंट्रासेप्टिव डिवाइस (पीपी आईयूसीडी) जो कि प्रसव के 48 घंटे के अन्दर लगता है और जब दूसरे बच्चे का विचार बने, तो महिलाएं इसको आसानी से निकलवा भी सकती हैं । अनचाहे गर्भ से लम्बे समय तक मुक्ति चाहने वाली महिलाओं के बीच इस कोरोना काल (कोविड-19) में भी कई जिलों में सबसे अधिक पीपी आईयूसीडी को ही पसंद किया गया ।

स्वास्थ्य विभाग का जोर रहता है कि संस्थागत प्रसव के मुकाबले कम से कम 20 फीसद महिलाओं को जागरूक कर पीपी आईयूसीडी के लिए तैयार किया जाए । उनको परिवार कल्याण के बारे में जागरूक करने में आशा कार्यकर्ता और एएनएम की प्रमुख भूमिका रहती है । इस वित्तीय वर्ष 2020-21 की शुरुआत ही कोरोना के चलते लॉक डाउन से हुई, फिर भी प्रदेश के कुछ जिलों की महिलाओं ने संस्थागत प्रसव के तुरंत बाद इस विधि को अपनाने में खास दिलचस्पी दिखाई ।

हेल्थ मैनेजमेंट इन्फार्मेशन सिस्टम के 12 जून तक के आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में गत अप्रैल से 12 जून तक यानि करीब ढाई माह में 5460 महिलाओं ने संस्थागत प्रसव (सरकारी व निजी अस्पताल मिलाकर) कराया, जिसमें से 401 महिलाओं ने पीपी आईयूसीडी को अपनाया ।

इसी तरह बलरामपुर में 5324 संस्थागत प्रसव के मुकाबले 499 महिलाओं ने तथा बहराइच में 11,258 संस्थागत प्रसव के मुकाबले 689 महिलाओं पीपी आईयूसीडी अपनाया, जबकि श्रावस्ती में 2945 संस्थागत प्रसव के मुकाबले 951 महिलाओं ने पीपी आईयूसीडी को इस लॉकडाउन के दौरान प्रसव के तुरंत बाद “लॉक” करने में दिलचस्पी दिखाई ।

मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ मधु गैरोला का कहना है कि लोगों को लगातार जागरूक करने का प्रयास रहता है कि “छोटा परिवार-सुखी परिवार” के नारे को अपने जीवन में उतारने में ही सभी की भलाई है । इसके लिए उनके सामने “बास्केट ऑफ़ च्वाइस” मौजूद है, उनके फायदे के बारे में भी सभी को अच्छी तरह से अवगत करा दिया गया है । प्रदेश के जिन जिलों ने इस दिशा में अच्छा प्रदर्शन किया है, उनसे सीख लेते हुए अन्य जिलों को भी इस दिशा में बेहतर परिणाम देना चाहिए । मातृ एवं शिशु के बेहतर स्वास्थ्य के लिहाज से दो बच्चों के जन्म के बीच कम से कम तीन साल का अंतर अवश्य रखना चाहिए । उससे पहले दूसरे गर्भ को धारण करने योग्य महिला का शरीर नहीं बन पाता और पहले बच्चे के उचित पोषण और स्वास्थ्य के लिहाज से भी यह बहुत जरूरी होता है । इसके लिए लोगों को जागरूक करने के साथ ही उन तक उचित गर्भ निरोधक सामग्री पहुंचाने के लिए आशा कार्यकर्ताओं को भी दक्ष करने का प्रयास किया जाता है । उनका कहना है कि परिवार नियोजन में स्वास्थ्य विभाग और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर जिले में उत्तर प्रदेश तकनीकी सहयोग इकाई (यूपी टीएसयू) मदद कर रही है, जिसका प्रयास सराहनीय है ।

गोंडा के झंझरी ब्लॉक सीएचसी काजीदेवर अंतर्गत ग्रामसभा केशवपुर पंहड़वा के ग्राम महादेवा की आशा कार्यकर्ता सुमन गिरी ने एक अप्रैल से अब तक चौदह महिलाओं, जिसमें अप्रैल माह में तीन, मई माह में चार व एक जून से अब तक सात महिलाओं को पीपी आईयूसीडी लगवाया है । वहीं करनैलगंज ब्लॉक के नचनी गाँव की आशा कार्यकर्ता नीलम सिंह ने अप्रैल माह में तीन और मई महीने में भी तीन महिलाओं को पीपी आईयूसीडी लगवाया है । इन आशा कार्यकर्ताओं का कहना है कि वह मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य को लेकर घर-घर जाकर लोगों को जागरूक करने का काम करती हैं, गर्भवती को पहले से ही दो बच्चों के बीच कम से कम तीन साल का अंतर रखने के फायदे के बारे में समझाया जाता है और उनको इसके लिए मौजूद सारे विकल्प के बारे में भी बता दिया जाता है, इस बीच अधिकतर महिलाओं ने पीपी आईयूसीडी को चुना जो कि बहुत ही सुरक्षित और दो बच्चों के जन्म के बीच अंतर रखने का अच्छा विकल्प भी है ।

क्या है पीपी आईयूसीडी :

जिला महिला अस्पताल की स्त्री एवं प्रसूती रोग विशेषज्ञ डॉ सुवर्णा श्रीवास्तव के अनुसार, प्रसव के 48 घंटे के अन्दर यानि अस्पताल से छुट्टी मिलने से पहले महिला आईयूसीडी लगवा सकती है । एक बार लगने के बाद इसका असर पांच से दस साल तक रहता है । बच्चों के जन्म के बीच अंतर रखने की यह लम्बी अवधि की विधि बहुत ही सुरक्षित और आसान भी है । यह गर्भाशय के भीतर लगने वाला छोटा उपकरण है जो कि दो प्रकार का होता है- पहला कॉपर आईयूसीडी 380 ए- जिसका असर दस वर्षों तक रहता है, दूसरा है- कॉपर आईयूसीडी 375, जिसका असर पांच वर्षों तक रहता है ।

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राजेंद्र सिंह

राजेंद्र सिंह (सम्पादक)

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