दृष्टिकोण

नितिन गडकरी : बेस्ट परफॉर्मर राजनीति के बियाबान में खो जाएंगे ?

Written by Vaarta Desk

भाजपा की अंदरूनी राजनैतिक सच्चाई यही है कि पूर्ववर्ती जनसंघ और उसके वर्तमान राजनीतिक स्वरूप भाजपा में जिस किसी ने भी अलग मिसाल कायम करने की कोशिश की,वह अलग-थलग पड़ गया।प्रो बलराज मधोक से लेकर प्रवीण तोगड़िया, केएन गोविंदाचार्य और आडवाणी-जोशी तक ऐसे लोगों की लंबी सूची है।ताज़ा उदाहरण,नितिन गडकरी का है।

एक किस्सा गडकरी के भाजपा अध्यक्ष के कार्यकाल का-उस समय शाह के बुरे दिन चल रहे थे.वह अदालत के आदेश से गुजरात से बाहर दिल्ली में रहते थे.अमित शाह पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी से मिलने जब भी जाते,तो उन्हें घंटों बाहर इंतजार करना पड़ता.

समय का चक्र घूमा।दिसम्बर,2014 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का नाम तय होना था.शाह उस समय पार्टी अध्यक्ष बन चुके थे.गडकरी मुख्यमंत्री बनना चाहते थे,शाह ने नहीं बनने दिया।उससे भी ज्यादा धक्का गडकरी को इस बात से लगा कि नागपुर के ही देवेन्द्र फड़णनवीस,जिन्हें वे अपने सामने बच्चा मानते थे,को मुख्यमंत्री बना दिया गया.

एक बार फिर,अमित शाह ने गडकरी को वैसी ही पटखनी दी है।भाजपा के संसदीय बोर्ड में नितिन गडकरी को हटाकर देवेंद्र फडणवीस को जगह दी गई है।
… नितिन गडकरी ने अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्य के रूप में की थी।उन्होंने एमकॉम,मैनेजमेंट और कानून की पढ़ाई भी की है।वह बेहतरीन उद्योगपति भी हैं।1983में विधानसभा चुनाव वह हारे भी,लेकिन आरएसएस में अपनी पृष्ठभूमि के कारण 1989में विधान पार्षद बने और 1995में शिवसेना-भाजपा गठबंधन सरकार में पथनिर्माण मंत्री भी।मुंबई-पुणे एक्सप्रेस-वे का श्रेय उनको ही जाता है।


नागपुर निवासी और आरएसएस के दुलरूआ होने के कारण महज 52वर्ष की उम्र में 2009में नितिन गडकरी जब भाजपा अध्यक्ष बने,तो राष्ट्रीय राजनीति में वह एक नया चेहरा थे।बेशक,2012में उन्हें दूसरे कार्यकाल का विस्तार नहीं मिला,लेकिन 2014में उन्हें केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। पिछले 8वर्षो में राष्ट्रीय स्तर पर,सड़कों,पुलों,राजमार्गों, एक्सप्रेस वे का जो जाल बिछा है,उसका श्रेय नितिन गडकरी को जाता है।उन्होंने अपने मंत्रालय में किसी की दखलंदाजी नहीं चलने दी।अब तो,केंद्रीय मंत्री के तौर पर अपने परफार्मेंस के आधार पर वह प्रधानमंत्री पद की रेस में शामिल बताए जा रहे थे।

इसके साथ ही,अपने बड़बोलेपन से भी उन्होंने अलग छवि बनाई।एक कार्यक्रम में बोलते हुए गडकरी ने कहा कि पार्टी नेतृत्व में जो लोग जीत का श्रेय लेते हैं,उसी तरह हार की जिम्मेदारी भी उन्हीं को उठानी चाहिए।एक बार,जब उनका ध्यान इस तथ्य की ओर आकृष्ट किया गया कि भाजपा के 2014के चुनावी वादे पूरे नहीं हुए,तो उन्होंने साफगोई से कहा कि भाजपा को उम्मीद ही नहीं की थी कि उसे बहुमत मिल पाएगा,इसलिए ऐसे चुनावी वादे किए गए,जिनके पूरा होने की कोई उम्मीद स्वयं भाजपा को नहीं थी।

सबसे शानदार प्रदर्शन करने वाले केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी को पार्टी के संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति से बाहर कर दिया गया है।संसदीय बोर्ड भाजपा की सबसे ताकतवर इकाई है,जो किसी मामले में पार्टी की ओर से अंतिम निर्णय करती है। संसदीय बोर्ड में पार्टी के सभी पूर्व अध्यक्षों को रखे जाने की परंपरा रही है और नितिन गडकरी 2009-2012तक पार्टी के अध्यक्ष रहे हैं,लिहाजा उन्हें संसदीय बोर्ड से हटाने को नकारात्मक संदेश के रूप में देखा जा रहा है।नई सूची में पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह के अलावा एकमात्र रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह बोर्ड में शामिल रह गए हैं,जो राजनीति में इन लोगों से वरिष्ठ हैं।नितिन ग़डकरी जैसे दिग्गज को संसदीय बोर्ड से हटाने को बेहद चौंकाने वाला निर्णय माना जा रहा है।इसे पार्टी के भीतर मोदी-शाह के बढ़ते वर्चस्व ही नहीं पार्टी के भीतर तेज हो रहे घमासान के रूप में भी देखा जा रहा है।संसदीय बोर्ड से उनकी छुट्टी को उनकी बेबाकबयानी के सजा के तौर पर देखा जा रहा है।


नितिन गडकरी प्रधानमंत्री मोदी से अलग स्वतंत्र राय रखने वाले नेता माने जाते हैं।कई बार उनके पीएम से मतभेद होने की खबरें भी सामने आई थीं।

वह संघ प्रमुख मोहन भागवत और आरएसएस के करीबी माने जाते हैं। गडकरी को हटाए जाने का संदेश साफ है कि पार्टी के लाइन से हटकर किसी को चलने की आजादी नहीं है तो दूसरी तरफ आरएसएस ने मोदी-शाह को पार्टी चलाने की खुली छूट दे दी है।
वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में नितिन गडकरी जैसे परिणामोन्मुखी परफार्मर कम ही हैं।आरएसएस की विचारधारा से असहमत लोग भी चाहते हैं कि नितिन गडकरी जैसा बेबाक,साफगोई से अपनी बात रखने वाला परफार्मर राजनीति के बियाबान में खोए नहीं,पूरी सक्रियता से जमा रहे और ऊंची छलांग लगाए।

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