मनोरंजन लाइफस्टाइल

प्रोफेशनल थियेटर की परंपरा रणवीर सिंह के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी….

17अगस्त,2022को रणवीर सिंह के एंजियोप्लास्टी किए जाने की खबर आई थी।हालांकि,वह अपनी उम्र के 93वर्ष पूरे कर चुके थे।लेकिन,आजकल चिकित्सा शास्त्र में उच्च तकनीक के समावेश से चिकित्सा की बेहतर सुविधा उपलब्ध हो गई है।सो, मेरे जैसा आशावादी आदमी मानकर चल रहा था कि वह स्वस्थ हो जाएंगे।लेकिन,थोड़ी देर पहले उनके महाप्रयाण की खबर आ गई।

उनका पूरा नाम रणवीर सिंह डूंडलोद था।7जुलाई, 1929 को जन्मे रणवीर सिंह ने मेयो कालेज, जयपुर और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की थी।उन्होंने मॉरीशस:द की ऑफ़ इण्डियन

ओशन,वाजिद अली शाह:द ट्रैजिक किंग,पारसी थिएटर,थिएटर कोट्स,इन्द्र सभा,रणथम्भौर:द इम्प्रेजनेबल फोर्ट जैसी पुस्तकें लिखी थीं।

मुखौटों की ज़िन्दगी,हाय-मेरा दिल,सराय की मालकिन…,कल इसी वक़्त (छह अफ्रीकी नाटकों का हिन्दी अनुवाद),पाश,अमृत जल,सन्ध्या काले, प्रभात फेरी जैसे नाटक भी उन्होंने लिखे।उनके लिखे नाटक ‘बीवियों का मदरसा’और ‘हाय मेरा दिल’के 1100 शो से ज्यादा शो अंक थियेटर ने आयोजित किए हैं।सरताज नारायण माथुर जैसे वरिष्ठ रंगकर्मी रणवीर सिंह को अपना मेंटर मानते हैं।

मेरी उनसे एकमात्र मुलाकात इप्टा के प्लैटिनम जुबली समारोह में अक्तूबर,2018में पटना में हुई थी।

निहायत अनौपचारिक बातचीत में उन्होंने बताया था कि आज़ादी के पूर्व बंगाल के विभाजन के दौर में भी थिएटर चुप नहीं रहा था। पहला नाटक अंग्रेजों के खिलाफ 1906 में खेला गया था। ‘कीचक वध’ की पौराणिक कथा को आधार बनाकर नाटक लिखा गया। इस नाटक के सारे प्रतीक ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ थे।‘कीचक वध’ नाटक का समाज पर गहरा असर हुआ।जनता को अब राजनीतिक नाटकों की ओर लौटना चाहिए।

उनकी सलाह थी कि बदले समय के साथ थियेटर को आमजन से जोडना और प्रोफेशनल थियेटर पर ध्यान देने की सख्त आवश्यक्ता है।हमें थियेटर को आमजन से जोडना होगा,हमारा थियेटर जनता से जुडा हुआ नहीं है जिसके चलते रंगकर्मियों द्वारा अपने हक की मांग को लेकर किए गए आंदोलनों में आमजन का जुडाव नहीं हो पाता।उन्होने कहा था कि दुनियां में भारत को छोडकर कहीं भी शौकिया यानी एमेच्योर थियेटर नही है।जर्मनी,अर्जेंटीना, लेटविया आदि देशों के रंगकर्म से जुडी महत्वपूर्ण जानकारी सांझा करते हुए रणवीर सिंह ने अनुदान की परम्परा को सबसे अधिक घातक बताया था। इस प्रकार की परम्पराओं से मुक्ति के लिए उन्होंने युवाओं से आगे आने की अपील करते हुए कहा कि प्रोफेशनल थियेटर की ओर जाने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए।

पंकज कुमार श्रीवास्तव

रांची

About the author

राजेंद्र सिंह

राजेंद्र सिंह (सम्पादक)

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