उत्तर प्रदेश लाइफस्टाइल

“मैं ब्रिटिश साम्राज्य का विनाश चाहता हूं”:- रामप्रसाद बिस्मिल, भारतीय नागरिक परिषद का शहीदों को नमन

Written by Reena Tripathi

लखनऊ। 19 दिसम्बर 1927 – काकोरी क्रान्ति के महानायक पं राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और ठाकुर रौशन सिंह को बलिदान दिवस पर भारतीय नागरिक परिषद परिवार का कोटिशः नमन
जैसा की सर्वविदित है भारत माता के महान सपूत पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने गोरखपुर जेल में, अशफाक उल्ला खान ने फैजाबाद जेल में और ठाकुर रोशन सिंह ने नैनी जेल में 19 दिसंबर 1927 की सुबह फांसी का फंदा चूम कर अमरत्व प्राप्त किया। इन महान क्रांतिकारियों ने मृत्यु का आलिंगन करने के ठीक पहले जो कहा उसे शब्दों में यथावत प्रस्तुत करते हुए भारतीय नागरिक परिषद के संस्थापक इं.शैलेंद्र दुबे ने बताया कि ….
फांसी के एक दिन पहले पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को 18 दिसंबर की रात जब दूध पीने के लिए दिया गया उन्होंने यह कहकर इंकार कर दिया कि अब तो माता का ही दूध पिऊँगा। प्रातः काल नित्यकर्म, संध्या वंदन आदि से निवृत हो माता को एक पत्र लिखा जिसमें देशवासियों के नाम संदेश भेजा और फाँसी की प्रतीक्षा में बैठ गए। जब फांसी के तख्ते पर ले जाने वाले आए तो वंदे मातरम और भारत माता की जय कहते हुए तुरंत उठ कर चल दिए। चलते समय उन्होंने कहा…
*मालिक तेरी रजा रहे, और तू ही तू रहे।

बाकी न मैं रहूं न मेरी आरजू रहे।।
जब तक कि तन में जान रगों में लहू रहे।
तेरा हो जिक्र या तेरी ही जुस्तजू रहे।।

इसे भी padhe- अमर शहीद का ९६वां बलिदान दिवस, वाराणसी से जेल पहुंचा शोधकर्ताओं का दल https://samacharvaarta.com/archives/20011/samachar/

फांसी घर के दरवाजे पर उन्होंने अपनी अंतिम इच्छा गर्जना करके बताई – “मैं ब्रिटिश साम्राज्य का विनाश चाहता हूं” ।इसके बाद तख्त पर खड़े होकर प्रार्थना के बाद विश्वानि देव सवितुरदुरतानी… आदि मंत्रों का जाप करते हुए फांसी के फंदे को चूम कर अमरत्व प्राप्त किया।

 

वहीं फैजाबाद जेल में अशफाक उल्ला खान ने फांसी के ठीक पहले कई कविताएं लिखी। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की तरह अशफाक उल्ला खान भी बहुत बड़े लेखक और शायर थे। उनकी कुछ अंतिम पंक्तियां हैं…….
कुछ आरजू नहीं है, है आरजू बस इतनी।
रख दे कोई जरा सी, खाक ए वतन कफन में।।
वतन हमेशा रहे शादकाम और आजाद।
हमारा क्या है, हम रहे रहे न रहे ।।

वहीं नैनी जेल में ठाकुर रोशन सिंह ने फांसी के लगभग छः दिन पहले तेरह दिसंबर को अपने एक मित्र के नाम एक छोटा सा पत्र लिखा। उस पत्र में उन्होंने लिखा मेरा पूरा विश्वास है कि दुनिया की कष्ट भरी यात्रा समाप्त करके मैं अब आराम की जिंदगी के लिए जा रहा हूं। हमारे शास्त्रों में लिखा है कि जो आदमी धर्म युद्ध में प्राण देता है उसकी वही गति होती है जो जंगल में रहने वाले तपस्वी की होती है।
जिंदगी जिंदादिली को जान ए रोशन।
वरना कितने मरे और पैदा होते ही जाते हैं।।
आखरी नमस्ते
आपका रोशन

राजेंद्र लाहिड़ी को गोंडा जेल में दो दिन पहले ही सत्रह दिसंबर को फांसी दे दी गई थी। काकोरी क्रांति में भारत माता के इन चार महान सपूतों ने हमारी आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।

महामंत्री रीना त्रिपाठी ने कहा कि भारतीय नागरिक परिषद के तत्वाधान में अमर शहीदों को याद कर श्रद्धा सुमन अर्पित किए गए । वाकई हम भारतीयों का यह सौभाग्य है कि ऐसे वीर सपूतों से भरी हुई धरा में हमने जन्म लिया ।निश्चित रूप से वह क्षण वह समय अतुलनीय, अविस्मरणीय और इतिहास के पन्नों की अमूल्य धरोहर है जिसे समय-समय पर भारतीय नागरिक परिषद संगोष्ठी लेखों और अन्य कार्यक्रमों के माध्यम से आप सबके सामने रखता है। भारतीय नागरिक परिषद यह मांग करता है कि इन वीरों की गाथाओं को पाठ्य पुस्तकों में ससम्मान जगह दी जाए।
आइए आज इन महान क्रांतिकारियों के श्री चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कोटि-कोटि नमन।
वंदे मातरम। इंकलाब जिंदाबाद।

About the author

Reena Tripathi

(Reporter)

aplikasitogel.xyz hasiltogel.xyz paitogel.xyz
%d bloggers like this: