धर्म राष्ट्रीय

प्रथम पूज्यनीय गणेश जी ने कैसे तोड़ा कुबेर का अहंकार, बता रहे ज्योतिषाचार्य अतुल शास्त्री

Written by Vaarta Desk
श्री गणेश जी बुद्धि और ज्ञान के दाता हैं। यही वजह है कि श्री गणेश जी के जीवन से संबंधित अनेकों प्रेरक कथाएं भक्तों को जीवन में आगे बढ़ने में मदद करती हैं। एक तरफ जहाँ उनके ज्ञान से समस्त लोकों का कल्याण होता है, तो वहीँ दूसरी तरफ श्री गणेश जी अपने भक्तों को सभी शक्तियाँ प्रदान करने के साथ साथ उन्हें सुख समृद्धि का आशीर्वाद भी प्रदान करते हैं। यूँ तो पुराणों में श्री गणेश जी से जड़ी कई कथाएँ वर्णित हैं जिनसे हमें ज्ञान के साथ प्रेरणा भी मिलती है लेकिन आज जिस कथा का उल्लेख हम करने जा रहे हैं उनसे हमें सीख भी मिलती है।
हिंदू पौराणिक ग्रंथों में कुबेर को धन के देवता की उपाधि दी गई है। कुबेर की पूजा आराधना से व्यक्ति के आर्थिक संकट समाप्त हो जाते हैं। कुबेर को उत्तर दिशा का दिक्पाल सहित संसार की सुरक्षा हेतु लोकपाल की उपाधि भी प्रदान की गई है। कुबेर का प्रसंग रामायण ग्रंथ में भी निहित है, जिसके अनुसार बताया गया है कि कुबेर रावण के भाई थे। एक अन्य प्रसंग के अनुसार जब भगवान शिव तपस्या में लीन थे, उसी दौरान जब माता पार्वती को कुबेर ने अपनी बायें नेत्र से देखा, तो माता के तेज से उनका नेत्र पीला पड़ गया और इसी कारण वह एकाक्षीपिंगल कहलाए। रामायण के अनुसार कुबेर द्वारा ही सोने की लंका का निर्माण संभव हो पाया था।
पौराणिक आख्यानों  के अनुसार कहा जाता है कि कुबेर को अपनी धन संपदा का इतना गर्व और अहंकार हो गया कि वह किसी को भी अपने समक्ष स्थित नहीं देख पा रहे थे। विशेष रूप से जब उन्होंने ने सोने की लंका का निर्माण कर दिया तो वह और अहंकार से झूम उठे। उन्हें लगने लगा कि समस्त सृष्टि में अब उनसे अधिक धनवान एवं अतुल्य संपदा का स्वामी और कोई नहीं है। इसी अभिमान में चूर वह अपने वैभव को दिखाने के लिए दूसरों को अपने पास बुलाते एवं उन सभी के समक्ष अपनी अथाह धन संपदा का बखान करते। एक बार उन्होंने सभी को प्रभावित करने के लिए एक भव्य महाभोज का आयोजन किया। कुबेर अपने इस महाभोज में महादेव शिव को आमंत्रित करने के लिए उनके पास कैलाश पहुंच जाते हैं और अपनी संपत्ति एवं ऐश्वर्य का वर्णन भगवान शिव के समक्ष करने लगते हैं। भगवान शिव, कुबेर की मंशा को जान लेते हैं। अत: वह गणेश जी को उनके निवास स्थान पर भेजने की बात कह कुबेर को विदा कर देते हैं। ऐसे में श्री गणेश जी भी कुबेर के अभिमान को दूर करने का निश्चय कर लेते हैं।
श्री गणेश जी नियत समय पर कुबेर के महाभोज पहुंच जाते हैं। उसी समय कुबेर भी अपनी धन संपदा एवं ऐश्वर्य का प्रदर्शन गणेश जी के
समक्ष करने के लिए उन्हें स्वर्ण एवं रत्न जड़ित पात्रों में भोजन परोसते हैं। श्री गणेश जी भोजन करना आरंभ करते हैं और खाते ही चले जाते हैं। ऐसे में महाभोज के समस्त भोज्य पदार्थ समाप्त होने लगते हैं, किंतु गणेश जी की भूख शांत होने का नाम ही नहीं लेती। अंत में कुबेर के घर की समस्त भोजन सामग्री समाप्त हो जाती है और अपनी भूख मिटाने के लिए गणेश जी, कुबेर के महल की समस्त वस्तुओं को खाने लगते हैं।
गणेश जी के इस कृत्य से कुबेर भयभीत हो जाते हैं और श्री गणेश जी से क्षमा याचना करने लगते हैं परन्तु गणेश जी ने कुबेर पर कोई ध्यान नहीं देते हैं। गणेश जी अपना कार्य जारी रखते हैं और यह देखकर कुबेर भयभीत अवस्था में भगवान शिव के पास जाकर अपने अहंकार एवं गलती की क्षमा मांगने लगते हैं। पिटा के समझाने पर श्री गणेश जी, कुबेर को क्षमा कर देते हैं। इस प्रकार कुबेर के अहंकार का नाश होता है और गणपति जी के आशीर्वाद से वह पुन: अपने वैभव को भी प्राप्त कर लेते हैं।
भगवान गणेश जी की बुद्धि एवं चातुर्य का एक अत्यंत रोचक प्रसंग कुबेर के अहंकार को तोड़ने का विस्तार पूर्वक उल्लेख हमारे पुराणों में लिखित है कि किस तरह श्री गणेश जी ने कुबेर के अहंकार को तोड़ कर उन्हें उचित मार्ग दिखाया और कैसे श्री गणेश जी ने अपनी सूझबूझ से बिना किसी वाद-विवाद के कुबेर को परास्त कर, उन्हें सच्ची भक्ति का मार्ग भी दिखाया।

About the author

Vaarta Desk

aplikasitogel.xyz hasiltogel.xyz paitogel.xyz
%d bloggers like this: