उत्तर प्रदेश शिक्षा

सरकारी नीतियां कर रही बच्चों को शिक्षा के मूल अधिकार से वंचित

Written by Vaarta Desk

कोरोना महामारी के बाद मासूम नौनिहाल पढ़ाई की मार को झेल कर परिषदीय विद्यालय लौटे

सरकार ने नई किताबें तो उपलब्ध करा दी पर मास्टर को डीबीटी फीडिंग में उलझाया

प्रेरणा डीबीटी ऐप बनवाकर लाखों का निवेश पर
डी बी टी ऐप में फीडिंग बेसिक के मास्टरों से कराना बच्चो के शिक्षा के मूल आधिकार से खिलवाड़………
नहीं हो पा रही परिषदीय विद्यालयों में बच्चों की नियमित पढ़ाई

इस नुकसान के जिम्मेदार अधिकारी

बेसिक शिक्षा विभाग में शिक्षकों से इतने ज्यादा गैर शैक्षणिक कार्य कराए जा रहे हैं जिसके कारण विद्यालय पहुंचे कोविड महामारी के दौरान पढ़ाई का नुकसान उठाए बच्चे एक बार फिर पढ़ाई से वंचित किए जा रहे हैं। रोज नए-नए गैर शैक्षणिक कार्यों के बोझ तले शिक्षक इतना दबा हुआ है कि नई किताबें प्राप्त कर भी बच्चों को समय नहीं दे पा रहे हैं। डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर की फीडिंग का काम जोकि बीआरसी स्तर के बाबू जिनकी संख्या नियमित और अनियमित मिलाकर लगभग साथ होती है और प्रत्येक ब्लॉक में तैनात ए.आर.पी जो कि तकनीकि के जानकार होते हैं के द्वारा कराई जा सकती है। गांव से एकत्र करके प्रत्येक विद्यालय में आंकड़े लिखित रूप से बीआरसी पर उपलब्ध करा दिए हैं*।

अभी कुछ दिन पहले ही बेसिक शिक्षा विभाग के बड़े अधिकारी को एक वर्ष का सर्विस एक्सटेंशन दिया गया ,महाशय ने खुश होकर डाटा फीडिंग जैसे जटिल काम भी शिक्षकों के माथे थोप दिया। जबकि ना तो बेसिक के विद्यालयों में पूरी तरह नेटवर्क होता है और ना ही शिक्षकों के पास लैपटॉप टेबलेट और उत्कृष्ट मोबाइल जैसे संसाधन। इस फीडिंग के लिए ना तो उन्हें छुट्टी दी जा रही है और ना ही कोई अतिरिक्त पैसा। यानी कि पूरा कार्यक्रम विद्यालय में रहते हुए बच्चों की पढ़ाई का नुकसान करते हुए ही अंजाम तक पहुंचाना है। जबकि विद्यालय परिसर में नेटवर्क के हालात किसी से छुपा हुआ नहीं है।

सरकार द्वारा दिए जा रहे हैं सभी लाभ सीधे लाभार्थी के खाते तक पहुंचाने (डी बी टी)की मुहिम के तहत प्राइमरी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के माता-पिता का आधार और बैंक खाता का नम्बर जो कि लिंक होना चाहिए का विवरण सरकार को शिक्षक ने घर-घर जाकर एकत्र कर उपलब्ध कराया इस पूरी प्रक्रिया में पहले ही पढ़ाई कर अवसान हो चुका है। पर प्रक्रिया यहीं नहीं रुकी अब इस डाटा को महानिदेशक कार्यालय स्तर से बने ऐप में फीड करने का काम भी बेसिक के मास्टर को सौंप दिया गया, जो कि बेहद जटिल है इसके लिए तकनीकी जानकारी होनी आवश्यक है।

आप कल्पना करें किसी किसी विद्यालय में पांच कक्षाएं हैं ,बच्चे हैं, पर मास्टर एक या दो और उन्हें भी इस प्रकार के कामों में लगा दिया गया जिससे ना तो वह बच्चों को वक्त दे पा रहे हैं और ना ही विद्यालय को।
इसके बाद किसी बड़े मंत्री का बयान आएगा कि बेसिक का मास्टर पढ़ाना नहीं चाहता बेसिक शिक्षा विभाग प्राइवेट हाथों में सौंप देना चाहिए।

एक सरकारी आंकड़े के अनुसार बेसिक शिक्षा परिषद के 113289 प्राथमिक और 45625 उच्च प्राथमिक स्कूलों में सहायक अध्यापकों के 72,712 पद खाली हैं। पिछले तीन साल में 68500 और 69000 सहायक अध्यापक भर्ती के बाद स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ है। परंतु इसके बावजूद कई विद्यालय एकल है।
प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों के 63261 पद रिक्त हैं। जून 2021 में ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों में 51,112 पद खाली थे जिसका हलफनामा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पिछले साल जून में ही लगा दिया था।

इसके अलावा नगर क्षेत्र के स्कूलों में 12149 शिक्षकों की कमी है। हालांकि नगर क्षेत्र का कैडर अलग होने के कारण इन पदों पर सीधी भर्ती नहीं होती। ग्रामीण क्षेत्र से ही शिक्षक इन विद्यालयों में जाते हैं। प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक में प्रधानाध्यापकों के 53778 पद रिक्त होने की सूचना शासन को भेजी गई है। इन सबके बावजूद आज भी बहुत से स्कूल एकल है यह शिक्षामित्रों के सहारे चल रहे हैं।

बड़े-बड़े शहरों के नगर क्षेत्र के विद्यालय जो की महामारी के दौरान बच्चों की प्रचुर संख्या से संतृप्त तो है क्योंकि ज्यादातर प्राइवेट स्कूलों में फीस ना दे पाने के कारण अभिभावकों ने उन्हें सरकारी स्कूल में भर्ती करा दिया।

कहीं-कहीं विद्यालय मर्ज किए गए हैं, शिक्षक जूनियर और प्राइमरी मिलाकर भी एक या दो है अब यदि शिक्षक डाटा फिटिंग के काम में लगता है तो कल्पना करिए सौ से डेढ़ सौ या इससे भी अधिक बच्चे विद्यालय में उपलब्ध हैं उनका क्या होगा?? क्या यह सब कार्य सिर्फ शिक्षक को मानसिक वेदना देने के लिए कराए जा रहे हैं??

शिक्षक बच्चों को पढ़ाना चाहता है क्योंकि इस सत्र की नई किताबें अभी-अभी विद्यालय पहुंची हैं बच्चे भी उत्सुकता से पढ़ना चाहते हैं पर उन्हें क्या पता कि उनके शिक्षक किस शिक्षणेत्तर कार्यों में व्यस्त हैं। पिछले 1 साल से उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में हर ब्लाक में 5 एआरपी(एकेडमिक रिर्सोस पर्सन) की नियुक्ति की गई है जिनका काम विद्यालय जाना नहीं होता है और यह पूरी तरह तकनीकि के जानकार होते हैं यह शिक्षक तो होते हैं पर बीआरसी पर रहते हैं प्रत्येक जिले में इनकी संख्या 30 से 40 तक है सरकार को इस तरह की फीडिंग का काम इन तकनीकि के जानकार शिक्षकों से करानी चाहिए ताकि फील्डिंग में त्रुटि भी न्यूनतम रहे और बच्चों की पढ़ाई का नुकसान भी ना हो।

बीआरसी स्तर पर उपलब्ध बाबू तथा अन्य कर्मचारियों और एकेडमिक रिर्सोस पर्सन यदि फील्डिंग करते हैं तो बच्चों की पढ़ाई का नुकसान होने से बच जाएगा। कागज पर लिखित आंकड़े शिक्षक ने कार्यालय में पहले ही उपलब्ध करा दिए हैं।

कहीं कुछ अधिकारी बेसिक के शिक्षक को इन कामों में उलझा कर हम उन्हें निकम्मा तो सिद्ध नहीं करना चाहते????

निश्चित रुप से राज्य सरकार सिर्फ एक योजना के पुष्टिकरण के लिए लाखों बच्चों का भविष्य अंधकार में डालने को विवश नहीं हो सकती है ऐसा लगता है यह चाटुकार अधिकारियों की मनमानी का नतीजा है कि वह किसी अच्छी सरकारी योजना को गलत दिशा प्रदान कर रहे हैं।

जिन बड़े अधिकारियों को एक वर्ष का सर्विस लाभ मिला है वह निश्चित रूप से सरकार को दिखाना चाहते हैं कि वह कितनी योग्य है और बिना किसी संसाधन के भी उन्होंने सरकारी योजना को लागू करवा दिया परंतु इस सब काम में सेंडविच बनाया जा रहा है बेसिक का मास्टर।

एक तरफ़ यदि विद्यालय पहुंचने में पांच मिनट की देरी होती है यह तय समय से पांच मिनट पहले विद्यालय शिक्षक किसी कारण से छोड़ता है तो उसे विभागीय कार्यवाहीयों का सामना करना पड़ता है उसका एक दिन का वेतन अवरुद्ध कर दिया जाता है। वहीं दूसरी तरफ विद्यालय समय में 12:00 से 2:00 बजे तक महानिदेशक ऑफिस स्तर से डाटा फीडिंग मीटिंग कराई जाती है जिसमें सभी शिक्षकों का प्रतिभाग करना अनिवार्य है आप कल्पना करें!! ..विद्यालय चल रहा है, सैकड़ों बच्चे आपके इर्द-गिर्द हैं क्या इस गतिविधि से बच्चों की पढ़ाई का नुकसान नहीं हो रहा, दो घंटे तक बच्चे किसके भरोसे रहेंगे यह भगवान ही जानता है??? और इन परिस्थितियों में मास्टर को ट्रेनिंग में कितना समझ में आ रहा है यह तो भगवान ही जानता है।
इस तरह देश के नौनिहालों के भविष्य के साथ खिलवाड़ क्या रोका नहीं जा सकता ???

यदि ट्रेनिंग करानी है तो या तो बच्चों को अर्ध अवकाश दे या फिर इस तरह की फील्डिंग के लिए शिक्षकों को अवकाश प्रदान करें। ताकि शिक्षकों को बच्चों के सामने रहकर ना पढ़ाने का दंश महसूस ना हो और सरकारी कामों को शिक्षक साइबर कैफे में बैठकर फीड करा सके।

बताते चलें डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर की डाटा फीडिंग एक विशेष ऐप में करनी है जिसके लिए शिक्षकों को कोई प्रोपर प्रशिक्षण नहीं दिया गया, यदि एक भी अंक की त्रुटि होती है तो लाभार्थी को लाभ नहीं मिलेगा तथा सरकार की महत्वाकांक्षी योजना का लाभ लाभार्थी तक नहीं पहुंच सकेगा।

फीडिंग के इन महत्वपूर्ण जोखिमों को देखते हुए सरकारी अधिकारियों को बेसिक शिक्षक को इन कार्यों से मुक्त रखते हुए यह काम बाबू और बीआरसी के अन्य कर्मचारियों(ए.आर.पी )के द्वारा कराया जाना चाहिए।
आज शिक्षक जो की बेसिक शिक्षा विभाग में कार्यरत है तीस से अधिक रजिस्ट्रो को मेंटेन करता है जहां मिड डे मील बनकर आता है वहां क्या खाया और क्या नहीं, बच्चों की संख्या, सहित बहुत से प्रश्नों के आंकड़े और जहां खाना बेसिक के मास्टर को बनवाना पड़ता है वहां क्या बना कितना गेहूं ,चावल और सब्जी आई इसका विवरण बाजार से लेकर अधिकारियों तक उपलब्ध कराना पड़ता है। चलिए खाना तो सीधे बच्चों को मिल रहा था संतोष करना पड़ा कि शायद इस प्रक्रिया से बच्चे पढ़ेंगे।

इसी तरह प्रतिदिन कई आंकड़े और कई रजिस्टर तैयार करने के बाद भी सही समय बच्चों को बढ़ाने की प्रक्रिया शिक्षक द्वारा की जाती रही है।

आज कल दिखावे के युग में शिक्षकों से डायरेक्ट बेनिफिट के नाम पर बनी सरकारी योजना की फील्डिंग कराना वाकई यह एहसास कराता है कि शिक्षा विभाग को शिक्षकों की नहीं बाबू की जरूरत है।…………. विकल्प मौजूद होने के बाद भी शिक्षक का शोषण और बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ जारी है।

शिक्षा विभाग के विभिन्न संगठनों ने इस प्रक्रिया को शिक्षक से ना कराए जाने हेतु ज्ञापन दिया है इसके बाद भी अधिकारी आम शिक्षकों को कार्यवाही किए जाने की धमकी दे रहे हैं।

शिक्षक की वेदना

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