धर्म

मनोरथ प्राप्ति के लिए आप भी मनाइए देव दिवाली.. ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री

Written by Vaarta Desk

यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि कार्तिक मास में दो दिवाली के पर्व होते हैं। इनमें से एक मनुष्य मनाते हैं और दूसरी दिवाली देवों द्वारा मनाई जाती है, जिसे देव दिवाली भी कहा जाता है। गौरतलब है कि दोनों दिवाली को देशभर में बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है। ज्योतिषाचार्य पण्डित अतुल शास्त्री जी कहते हैं, “कार्तिक मास की अमावस्या को धरती पर दिवाली का पर्व मनाया जाता है और कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्वर्ग में देवताओं द्वारा दिवाली का पर्व मनाया जाता है। इस साल ये पर्व 19 नवंबर के दिन मनाई जाएगी।

पूर्णिमा तिथि शुरू : 18 नवंबर, गुरुवार को दोपहर 12 बजे से पूर्णिमा तिथि समाप्त : 19 नवंबर, शुक्रवार को दोपहर 02:26 मिनट तक
मान्यता है कि इस दिन देवी-देवता स्वर्ग से गंगा नदी में स्नान के लिए आते हैं। अतः वाराणसी के गंगा घाट को दीयों से जगमग कर दिया जाता है। इतना ही नहीं, इस दिन दीपदान का भी विशेष महत्व है। यही वजह है कि लोग घरों में और घर के बाहर दीप जलाते हैं। मान्यता है कि इस दिन दीप जालकर मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना की जाती है। कार्तिक पूर्णिमा का दिन दान, पुण्य के हिसाब से शुभ माना जाता है। इस दिन अलग-अलग मनोकामना के लिए अलग-अलग देवी-देवताओं के आगे दीप प्रज्जवलित किए जाते हैं।”

क्यों मनाई जाती है देव दिवाली जानिए पौराणिक कथा-

एक बार त्रिपुरासुर राक्षस ने अपने आतंक से मनुष्यों सहित देवी-देवताओं और ऋषि मुनियों सभी को त्रस्त कर दिया था, उसके त्रास के कारण हर कोई त्राहि त्राहि कर रहा था। तब सभी देव गणों ने भगवान शिव से उस राक्षस का अंत करने हेतु निवेदन किया। जिसके बाद भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध कर दिया। इसी खुशी में सभी इससे देवता अत्यंत प्रसन्न हुए और शिव जी का आभार व्यक्त करने के उनकी नगरी काशी में पधारे। देवताओं ने काशी में अनेकों दीए जलाकर खुशियां मनाई थीं। यह कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि थी। यही कारण है कि हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा पर आज भी काशी में दिवाली मनाई जाती है।

इन शुभ घटनाओं का भी दिन है कार्तिक पूर्णिमा

कार्तिक पूर्णिमा यह इस दिन का महत्व और भी ज्यादा बढ़ गया. माना जाता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने सतयुग में मत्स्य अवतार लिया था. द्वापरयुग में भी कृष्ण को आत्मबोध भी इसी दिन हुआ था. ये भी कहा जाता है कि इसी दिन देवी तुलसीजी का प्राकट्य हुआ था.
इसी के साथ ज्योतिषाचार्य पण्डित अतुल शास्त्री जी से जानते हैं कि किस मनोरथ के लिए किस देवता की पूजा करें:
अगर आपको धन का अभाव है और धन की तंगी में जीवनयापन कर रहे है. तो इसके लिए आपको ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं है. देव दिवाली के दिन भगवान कुबेर के आगे दीप जला सकते हैं. ऐसा करने से धन की प्राप्ति के साथ फंसा हुआ धन भी वापस आ जाएगा.

अपने साथी का प्यार पाने या फिर जीवन में प्रेम पाने के लिए देव दिवाली के दिन श्री कृष्ण के समक्ष गाय के घी का दीप जलाएं. ऐसा करने से साथी का प्रेम तो मिलेगा ही. साथ ही, साथी के प्रति विश्वास भी बढ़ेगा.

मान्यता है कि अगर आप या परिवार का कोई सदस्य लंबे समय से बीमार है तो देव दिवाली के दिन सूर्य देव की मूर्ति या फिर सूर्य यंत्र स्थापित करके उनके आगे दीपक जलाएं. ऐसा करने से रोग से जल्दी छुटकारा मिलेगा.

यदि बिजनेस या कारोबार सही से नहीं चल रहा या फिर घाटा हो रहा है. तो इस दिन गणेश जी की प्रतिमा के आगे दीपक जलाने से बिजनेस में धन की प्राप्ति होगी. व्यापार में वृद्दि के साथ-साथ विस्तार भी होगा.

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